सोमवती अमावस्या || Somavati Amavasya

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सोमवती अमावस्या- सोम अर्थात् चंद्र। सोमवती = चंद्रवार या सोमवार को होने वाली। ऐसा अमावस्या जो सोमवार को पड़े सोमवती अमावस्या कहलाती है। सोमवार को शिवजी का वार माना जाता है, इस दिन सुहागिन महिलाऐ अपने पति की दीर्घायु की कामना के लिए व्रत रखती है और कुंवारी कन्याऐं सुयोग्य पति की कामना से । यदि वह सोमवार संयोग वश अमावस्या को हो तो उसका फल अनंत गुना पुराणों में कहा गया है।

परंपरा है कि सोमवती अमावस्या के दिन व्रत धारण करके भगवान शिव,माता पार्वती और गणेशजी का पूजन कर पीपल वृक्ष का पूजन भेंट सहित प्रदिक्षणा करें व सोमवती अमावस्या के कथाओं को विधिपूर्वक सुने।

सोमवती अमावस्या का कथा

सोमवती अमावस्या से सम्बंधित कथा-एक गरीब ब्राह्मण परिवार था। उस परिवार में पति-पत्नी के अलावा एक पुत्री भी थी। वह पुत्री धीरे-धीरे बड़ी होने लगी। उस पुत्री में समय और बढ़ती उम्र के साथ सभी स्त्रियोचित गुणों का विकास हो रहा था। वह लड़की बहुत सुंदर, संस्कारवान एवं गुणवान थी। लेकिन गरीबी के कारण उसका विवाह नहीं हो पा रहा था। एक दिन उस ब्राह्मण परिवार के घर एक साधु पधारें।

ब्राह्मण पुत्री उस साधु की सेवा-सत्कार में लग गई, साधु उस कन्या के सेवाभाव से काफी प्रसन्न होकर कन्या को लंबी आयु का आशीर्वाद दिया। जब साधु से ब्राह्मण दम्पति ने अपनी पुत्री के विवाह के विषय में पूछा तो साधु ने कहा कि इस कन्या के हथेली में विवाह योग्य रेखा नहीं है। यह सुनकर ब्राह्मण दम्पति ने दुखी होकर पूछा की साधु महाराज ऐसा कोई तो उपाय बतलाए जिसके करने से हमारी पुत्री का शीघ्र विवाह हो जाए।

साधु ने कुछ देर विचार करने के बाद अपनी अंतर्दृष्टि से ध्यान करके बताया कि कुछ दूरी पर एक गांव में सोना नाम की धोबिन जाति की एक महिला अपने बेटे और बहू के साथ रहती है, जो बहुत ही आचार-विचार और संस्कार संपन्न तथा पति परायण है। यदि यह कन्या उसकी सेवा करे और वह धोबिन स्त्री तुम्हारी पुत्री को अपने मांग का सिन्दूर लगा दे, तो इस कन्या का विवाह हो सकता है और कन्या का वैधव्य योग मिट सकता है।

साधू ने यह भी बताया कि वह महिला कहीं आती जाती नहीं है। यह बात सुनकर ब्राह्मणी ने अपनी कन्या से धोबिन की सेवा करने की बात कही। अब वह ब्राह्मणी कन्या अपनी माँ की बात मानकर अगले दिन प्रात: काल ही उठ कर सोना धोबिन के घर चुपचाप जाकर, साफ-सफाई और अन्य सारे काम करके अपने घर वापस आ जाती थी।

इतनी सुबह घर के सब काम को रोज होता देखकर एक दिन सोना धोबिन अपनी बहू से पूछती है कि- तुम तो सुबह ही उठकर सारे काम कर लेती हो और पता भी नहीं चलता। बहू ने कहा- मां जी, मैंने तो सोचा कि आप ही सुबह उठकर सारे काम खुद ही खत्म कर लेती हैं। मैं तो देर से उठती हूं। अब सास-बहू को जब पता लगता है की दोनों ही घर के काम नहीं कर रही है और सब काम भी हो जा रहा है तो इस पर दोनों सास-बहू निगरानी करने लगी कि कौन है जो सुबह ही घर का सारा काम करके चला जाता है।

कई दिनों के निगरानी बाद धोबिन ने देखा कि एक कन्या अंधेरे में घर आती है और उनके घर के सारे काम करने के बाद चली जाती है। अब जब वह कन्या जाने लगी तो सोना धोबिन उसके पैरों पर गिर पड़ी, पूछने लगी कि आप कौन है और इस तरह छुपकर मेरे घर की चाकरी क्यों करती हैं?

तब कन्या ने साधु वाली सारी बात बताई। सोना धोबिन पतिव्रता थी, पतिव्रता धर्म का निष्ठा पूर्वक पालन करने से उसमें तेज था। ब्राह्मणी कन्या के मद्दत करने को वह तैयार हो गई। सोना धोबिन के पति बीमार थे। अत: उसने अपनी बहू से अपने लौट आने तक घर पर ही रहने को कहा।

सोना धोबिन उस कन्या को लेकर दूर चली गई और जैसे ही अपने मांग का सिन्दूर कन्या की मांग में लगाया, उसके पति मर गया। उसे इस बात का पता चल गया। वह घर से निराजल ही चली थी, यह सोचकर की रास्ते में कहीं पीपल का पेड़ मिलेगा तो उसकी परिक्रमा करके ही जल ग्रहण करेगी, उस दिन सोमवती अमावस्या थी। सौभाग्य से पास ही एक पीपल का पेड़ देखकर सोना धोबिन ने पीपल का पेड़ 108 बार ईंट के टुकड़ों को भेंट करते हुए परिक्रमा की और उसके बाद जल ग्रहण किया। ऐसा करते ही उसके पति के मुर्दा शरीर में कम्पन होने लगा। धोबिन का पति वापस जीवित हो उठा।

इस प्रकार जो स्त्री सोमवती अमावस्या के दिन से व्रत रखकर पीपल का पेड़ को कुछ भी वस्तुए भेंट देते हुए 108 बार परिक्रमा करती है, और गौरी-गणेशका पूजन करती है, उसे अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है, उसके सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है।

सोमवती अमावस्या को क्या करना चाहिए?

सोमवती अमावस्या के दिन तामसिक चीजों का सेवन न करें।
बाल, नाखून आदि न काटे।
घर में शांति का वातावरण बनाए रखें।
क्रोध से बचें।
मौन व्रत का यथा-संभव पालन करें।
तुलसी की प्रदिक्षणा करें।
नदियों, तीर्थों में स्नान, गोदान, अन्नदान, ब्राह्मण भोजन, वस्त्र, दान,गरीबों को भोजन आदि सत्कर्म यथाशक्ति करें।
पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिये इस तिथि को तर्पण, स्नान, दान श्राद्ध आदि करें।जिस जातक की कुंडली में पित्रदोष हो वें इस दिन खासकर पीपल की प्रदिक्षणा करें।
चींटी आदि के लिए वृक्ष के जड़ के पास शक्कर या मीठा रखें।
गाय को रोटी बंदर को गुड़-चना,कुत्ते को भोजन व कौंवा के लिए ग्रास देवें।

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