श्री अष्टमूर्ति स्तोत्रम् || Sri Ashtamurthy Stotram
अष्टमूर्ति स्तोत्रम् – भविष्यपुराण में शिव की आठ मूर्तियाँ(अष्टमूर्ति शिव) बतलाई गई हैं: पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश, यजमान, सोम और सूर्य। कालिदास ने अभिज्ञानशाकुंतल के नांदीश्लोक में इनका उल्लेख किया है। शैव सिद्धांत में पंच महातत्वों के बने महासाकार पिंड से शिव की निम्नलिखित आठ मूतियों की उत्पति मानी गई है: शिव, भैरव, श्रीकंठ, सदाशिव, ईश्वर, रुद्र, विष्णु, ब्रह्मा। उपनिषदों के अनुसार निराकर ब्रह्म ही जड़चेतनात्मक प्रपंच में साकार होकर प्रतिभासित रहता है। विराट् ब्रह्मंड को पंचतत्व, काल के प्रतीक सूर्य चंद्र तथा आत्मा के यजमान के रूप में विभाजित किया गया है। गीता में यजमान, सोम और सूर्य के स्थान पर मन, बुद्धि, अहंकार की गणना हुई है। इस गणना में कालतत्व का समावेश नहीं होता। अत: काल के प्रतीक सूर्य चंद्र का ग्रहण करना आवश्यक हो गया। मन, बुद्धि, अहंकार ये जीव के धर्म हैं अत: जीव के प्रतीक यजमान में इनका अंतर्भाव हो जाता है। इन तत्वों के अतिरिक्त ब्रह्मंड कुछ भी नहीं है और ब्रह्मांड का ब्रह्म से अभेद है, इसलिए शैवों ने निराकार शिव को इन आठ तत्वों की मूर्ति धारण करनेवाला माना है।
अष्टमूर्ति स्तोत्रम्
ईशा वास्यमिदं सर्वं चक्षोः सूर्यो अजायत ।
इति श्रुतिरुवाचातो महादेवः परावरः ॥ १॥
अष्टमूर्तेरसौ सूर्यौ मूर्तित्वं परिकल्पितः ।
नेत्रत्रिलोचनस्यैकमसौ सूर्यस्तदाश्रितः ॥ २॥
यस्य भासा सर्वमिदं विभातीदि श्रुतेरिमे ।
तमेव भान्तमीशानमनुभान्ति खगादयः ॥ ३॥
ईशानः सर्वविद्यानां भूतानां चेति च श्रुतेः ।
वेदादीनामप्यधीशः स ब्रह्मा कैर्न पूज्यते ॥ ४॥
यस्य संहारकाले तु न किञ्चिदवशिष्यते ।
सृष्टिकाले पुनः सर्वं स एकः सृजति प्रभुः ॥ ५॥
सूर्याचद्रमसौ धाता यथापूर्वमकल्पयत् ।
इति श्रुतेर्महादेवः श्रेष्ठोऽर्यः सकलाश्रितः ॥ ६॥
विश्वं भूतं भवद्भयं सर्वं रुद्रात्मकं श्रुतम् ।
मृत्युञ्जयस्तारकोऽतः स यज्ञस्य प्रसाधनः ॥ ७॥
विषमाक्षोऽपि समदृक् सशिवोऽपि शिवः स च ।
वृषसंस्थोऽध्यतिवृषो गुणात्माऽप्यगुगुणोऽमलः ॥ ८॥
यदाज्ञामुद्वहन्त्यत्र शिरसा सासुराः सुराः ।
अभ्रं वातो वर्षं इतीषवो यस्य स विश्वपाः ॥ ९॥
भिषक्रमं त्वा भिषजां श्रृणोमीति श्रुतेरवम् ।
स्वभक्तसंसारमहारोगहर्ताऽपि शङ्करः ॥ १०॥
इत्यष्टमूर्तिस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।