Sri Raghuveera Gadyam (Sri Mahaveera Vaibhavam) – रघुवीर गद्यम् (श्री महावीर वैभवम्)
श्रीमान्वेङ्कटनाथार्य कवितार्किक केसरि ।
वेदान्ताचार्यवर्योमे सन्निधत्तां सदाहृदि ॥
जयत्याश्रित सन्त्रास ध्वान्त विध्वंसनोदयः ।
प्रभावान् सीतया देव्या परमव्योम भास्करः ॥
जय जय महावीर महाधीर धौरेय,
देवासुर समर समय समुदित निखिल निर्जर निर्धारित निरवधिक माहात्म्य,
दशवदन दमित दैवत परिषदभ्यर्थित दाशरथि भाव,
दिनकर कुल कमल दिवाकर,
दिविषदधिपति रण सहचरण चतुर दशरथ चरम ऋणविमॊचन,
कोसल सुता कुमार भाव कञ्चुकित कारणाकार,
कौमार केलि गोपायित कौशिकाध्वर,
रणाध्वर धुर्य भव्य दिव्यास्त्र बृन्द वन्दित,
प्रणत जन विमत विमथन दुर्ललित दोर्ललित,
तनुतर विशिख विताडन विघटित विशरारु शरारु ताटका ताटकेय,
जडकिरण शकलधर जटिल नटपति मकुट तट नटनपटु विबुधसरिदतिबहुल मधुगलन ललितपद
नलिनरज उपमृदित निजवृजिन जहदुपल तनुरुचिर परम मुनिवर युवति नुत,
कुशिक सुत कथित विदित नव विविध कथ,
मैथिल नगर सुलोचना लोचन चकोर चन्द्र,
खण्डपरशु कोदण्ड प्रकाण्ड खण्डन शौण्ड भुजदण्ड,
चण्डकर किरण मण्डल बोधित पुण्डरीक वन रुचि लुण्टाक लोचन,
मोचित जनक हृदय शङ्कातङ्क,
परिहृत निखिल नरपति वरण जनक दुहितृ कुचतट विहरण समुचित करतल,
शतकोटि शतगुण कठिन परशुधर मुनिवर करधृत दुरवनमतम निज धनुराकर्षण प्रकाशित पारमेष्ठ्य,
क्रतुहर शिखरि कन्तुक विहृत्युन्मुख जगदरुन्तुद जितहरि दन्ति दन्त दन्तुर दशवदन दमन कुशल दशशतभुज मुख नृपतिकुल रुधिर झर भरित पृथुतर तटाक तर्पित पितृक भृगुपति सुगति विहतिकर नत परुडिषु परिघ,
अनृत भय मुषित हृदय पितृ वचन पालन प्रतिज्ञावज्ञात यौवराज्य,
निषाद राज सौहृद सूचित सौशील्य सागर,
भरद्वाज शासन परिगृहीत विचित्र चित्रकूट गिरि कटक तट रम्यावसथ,
अनन्यशासनीय,
प्रणत भरत मकुटतट सुघटित पादुकाग्र्याभिषेक, निर्वर्तित सर्वलोक योग क्षेम,
पिशित रुचि विहित दुरित वलमथन तनय बलिभुगनुगति सरभस शयन तृण शकल परिपतन भय चकित सकल सुर मुनिवर बहुमत महास्त्र सामर्थ्य,
द्रुहिण हर वलमथन दुरालक्ष शरलक्ष,
दण्डका तपोवन जङ्गम पारिजात,
विराध हरिण शार्दूल,
विलुलित बहुफल मख कलम रजनिचर मृग मृगयारम्भ सम्भृत चीरभृदनुरोध,
त्रिशिरः शिरस्त्रितय तिमिर निरास वासरकर,
दूषण जलनिधि शोषण तोषित ऋषिगण घोषित विजय घोषण,
खरतर खर तरु खण्डन चण्ड पवन,
द्विसप्त रक्षः सहस्र नलवन विलोलन महाकलभ,
असहाय शूर,
अनपाय साहस,
महित महामृथ दर्शन मुदित मैथिली दृढतर परिरम्भण विभव विरोपित विकट वीरव्रण,
मारीच माया मृग चर्म परिकर्मित निर्भर दर्भास्तरण,
विक्रम यशो लाभ विक्रीत जीवित गृध्रराज देह दिधक्षा लक्षित भक्तजन दाक्षिण्य,
कल्पित विबुधभाव कबन्धाभिनन्दित,
अवन्ध्य महिम मुनिजन भजन मुषित हृदय कलुष शबरी मोक्ष साक्षिभूत,
प्रभञ्जनतनय भावुक भाषित रञ्जित हृदय,
तरणिसुत शरणागति परतन्त्रीकृत स्वातन्त्र्य,
दृढघटित कैलास कोटि विकट दुन्दुभि कङ्काल कूट दूर विक्षेप दक्ष दक्षिणेतर पादाङ्गुष्ठ दरचलन विश्वस्त सुहृदाशय,
अतिपृथुल बहु विटपि गिरि धरणि विवर युगपदुदय विवृत चित्रपुङ्ख वैचित्र्य,
विपुल भुज शैलमूल निबिड निपीडित रावण रणरणक जनक चतुरुदधि विहरण चतुर कपिकुलपति हृदय विशाल शिलातल दारण दारुण शिलीमुख,
अपार पारावार परिखा परिवृत परपुर परिसृत दव दहन जवन पवनभव कपिवर परिष्वङ्ग भावित सर्वस्व दान,
अहित सहोदर रक्षः परिग्रह विसंवादि विविध सचिव विप्रलम्भ (विस्रम्भण) समय संरम्भ समुज्जृम्भित सर्वेश्वर भाव,
सकृत्प्रपन्न जन संरक्षण दीक्षित वीर, सत्यव्रत,
प्रतिशयन भूमिका भूषित पयोधि पुलिन,
प्रलय शिखि परुष विशिख शिखा शोषिताकूपार वारिपूर,
प्रबल रिपु कलह कुतुक चटुल कपिकुल करतल तूलित हृत गिरि निकर साधित सेतुपथ सीमा सीमन्तित समुद्र,
द्रुतगति तरुमृग वरूथिनी निरुद्ध लङ्कावरोध वेपथु लास्य लीलोपदेश देशिक धनुर्ज्याघोष,
गगन चर कनक गिरि गरिम धर निगममय निज गरुड गरुदनिल लव गलित विष वदन शर कदन,
अकृतचर वनचर रणकरण वैलक्ष्य कूणिताक्ष बहुविध रक्षो बलाध्यक्ष वक्षः कवाट पाटन पटिम साटोप कोपावलेप,
कटुरटदटनि टङ्कृति चटुल कठोर कार्मुख विनिर्गत विशङ्कट विशिख विताडन विघटित मकुट विह्वल विश्रवस्तनय विश्रम समय विश्राणन विख्यात विक्रम,
कुम्भकर्ण कुलगिरि विदलन दम्भोलि भूत निश्शङ्क कङ्कपत्र,
अभिचरण हुतवह परिचरण विघटन सरभस परिपतदपरिमित कपिबल जलधि लहरि कलकलरव कुपित मघवजि दभिहननकृदनुज साक्षिक राक्षस द्वन्द्वयुद्ध,
अप्रतिद्वन्द्व पौरुष,
त्र्यम्बक समधिक घोरास्त्राडम्बर,
सारथि हृत रथ सत्रप शात्रव सत्यापित प्रताप,
शित शर कृत लवण दशमुख मुख दशक निपतन पुनरुदय दर गलित जनित दर तरल हरिहय नयन नलिनवन रुचि खचित खतल निपतित सुरतरु कुसुम वितति सुरभित रथ पथ,
अखिल जगदधिक भुज बल दश लपन दशक लवन जनित कदन परवश रजनिचर युवति विलपन वचन समविषय निगम शिखर निकर मुखर मुख मुनि वर परिपणित,
अभिगत शतमख हुतवह पितृपति निरृति वरुण पवन धनद गिरिश मुख सुरपति नुत मुदित,
अमित मति विधि विदित कथित निज विभव जलधि पृषत लव,
विगत भय विबुध परिबृढ विबोधित वीरशयन शायित वानर पृतनौघ,
स्व समय विघटित सुघटित सहृदय सहधर्मचारिणीक,
विभीषण वशंवदीकृत लङ्कैश्वर्य,
निष्पन्न कृत्य,
ख पुष्पित रिपु पक्ष,
पुष्पक रभस गति गोष्पदीकृत गगनार्णव,
प्रतिज्ञार्णव तरण कृत क्षण भरत मनोरथ संहित सिंहासनाधिरूढ,
स्वामिन्, राघव सिंह,
हाटक गिरि कटक सदृश पाद पीठ निकट तट परिलुठित निखिल नृपति किरीट कोटि विविध मणि गण किरण निकर नीराजित चरण राजीव,
दिव्य भौमायोध्याधिदैवत,
पितृ वध कुपित परशु धर मुनि विहित नृप हनन कदन पूर्व काल प्रभव शत गुण प्रतिष्ठापित धार्मिक राज वंश,
शुभ चरित रत भरत खर्वित गर्व गन्धर्व यूथ गीत विजय गाथा शत,
शासित मधुसुत शत्रुघ्न सेवित,
कुश लव परिगृहीत कुल गाथा विशेष,
विधिवश परिणमदमर भणिति कविवर रचित निज चरित निबन्धन निशमन निर्वृत,
सर्व जन सम्मानित,
पुनरुपस्थापित विमान वर विश्राणन प्रीणित वैश्रवण विश्रावित यशः प्रपञ्च,
पञ्चतापन्न मुनिकुमार सञ्जीवनामृत,
त्रेतायुग प्रवर्तित कार्तयुग वृत्तान्त,
अविकल बहुसुवर्ण हयमख सहस्र निर्वहण निर्वर्तित निज वर्णाश्रम धर्म,
सर्व कर्म समाराध्य,
सनातन धर्म,
साकेत जनपद जनि धनिक जङ्गम तदितर जन्तु जात दिव्य गति दान दर्शित नित्य निस्सीम वैभव,
भव तपन तापित भक्तजन भद्राराम,
श्री रामभद्र, नमस्ते पुनस्ते नमः ॥
चतुर्मुखेश्वरमुखैः पुत्रपौत्रादिशालिने ।
नमः सीतासमेताय रामाय गृहमेधिने ॥
कविकथकसिंहकथितं
कठोरसुकुमारगुम्भगम्भीरम् ।
भवभयभेषजमेतत्
पठत महावीरवैभवं सुधियः ॥
इति श्रीमहावीरवैभवम् ॥