सुदर्शन शतकम् || Sri Sudarsana Shatkam || Sri Sudarshana Satakam

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श्री सुदर्शन शतकम को ही श्री सुदर्शन कवच कहां जाता है .

इसके द्वारा जीवनशत्रु रहित करें.

‘श्रीसुदर्शन – चक्र ’ भगवान्विष्णु का प्रमुख आयुध है,जिसके माहात्म्य की कथाएँ पुराणों में स्थान – स्थान पर दिखाई देती है।‘मत्स्य -पुराण ’ के अनुसार एक दिन दिवाकर भगवान् ने विश्वकर्मा जी से निवेदन किया कि ‘कृपया मेरे प्रखर
तेज को कुछ कम कर दें , क्योंकि अत्यधिक उग्र तेज के कारण प्रायः सभी प्राणी सन्तप्त
हो जाते हैं।’विश्वकर्मा जी ने सूर्य को चक्र – भूमि ’ पर चढ़ा कर उनका तेज कम कर दिया।
उस समय सूर्य से निकले हुए तेज – पुञ्जों को ब्रह्माजी ने एकत्रित कर भगवान् विष्णु
के ‘सुदर्शन – चक्र ’ के रुप में , भगवान् शिव के ‘ त्रिशूल′- रुप में तथा इन्द्र के ‘वज्र ’ के रुप में परिणत कर दिया।
‘पद्म -पुराण ’ के अनुसार भिन्न – भिन्न देवताओं के तेज से युक्त ‘सुदर्शन – चक्र ’
को भगवान् शिव ने श्रीकृष्ण को दिया था। ‘ वामन -पुराण ’के अनुसार भी इस कथा की पुष्टि होती है। ‘शिव -पुराण ’ के अनुसार खाण्डव -वन ’ को जलाने के लिए भगवान् शंकर ने श्रीकृष्ण को ‘ सुदर्शन -चक्र ’प्रदान किया था। इसके सम्मुख इन्द्र की शक्ति भी व्यर्थ थी।

श्री सुदर्शन शतकम् || Sri Sudarsana Shatkam || Sri Sudarshana Satakam

सहस्रादित्यसङ्काशं सहस्रवदनं प्रभुम्।

सहस्रदोः सहस्रारं प्रपद्येऽहं सुदर्शनम् ॥१॥

हसन्तं हारकेयूरमुकुटाङ्गदभूषणम्।

भूषणैर्भूषिततनुं प्रपद्येऽहं सुदर्शनम् ॥२॥

साकारसहितं मन्त्रं पठन्तं शत्रुनिग्रहम्।

सर्वरोगप्रशमनं प्रपद्येऽहं सुदर्शनम् ॥३॥

रणत्किङ्किणिजालेन राक्षसघ्नं महाद्भुतम्।

व्याप्तकेशं विरूपाक्षं प्रपद्येऽहं सुदर्शनम्॥४॥

हुंकारभैरवं भीमं  प्रणतार्तिहरं प्रभुम्।

सर्वपापप्रशमनं प्रपद्येऽहं सुदर्शनम् ॥५॥

फट्कारान्तमनिर्देश्यं महामंत्रेण संयुतम्।

शुभं प्रसन्नवदनं प्रपद्येऽहं सुदर्शनम् ॥६॥

इसका नित्य प्रातः और रात्री में सोते समय पांच –पांच बार पाठ करने मात्र से ही समस्त शत्रुओं का नाश होता है और शत्रु अपनी शत्रुता छोड़ कर मित्रता का व्यवहार करने
लगते है.

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