सुरभी देवी || Surabhi Devi

0

देवी सुरभी गोलोक में प्रकट हुई। वह गौओं की अधिष्ठात्री देवी, गौओं की आदि, गौओं की जननी तथा सम्पूर्ण गौओं में प्रमुख है। पूर्वकाल में वृन्दावन में उस सुरभी का ही जन्म हुआ था।

आदि गौ सुरभी देवी का उपाख्यान

एक समय की बात है। गोपांगनाओं से घिरे हुए राधापति भगवान श्रीकृष्ण कौतूहलवश श्रीराधा के साथ पुण्य-वृन्दावन में गये। वहाँ वे विहार करने लगे। उस समय कौतुकवश उन स्वेच्छामय प्रभु के मन में सहसा दूध पीने की इच्छा जाग उठी। तब भगवान ने अपने वामपार्श्व से लीलापूर्वक सुरभी गौ को प्रकट किया। उसके साथ बछड़ा भी था। वह दुग्धवती थी। उस सवत्सा गौ को सामने देख सुदामा ने एक रत्नमय पात्र में उसका दूध दुहा। वह दूध सुधा से भी अधिक मधुर तथा जन्म और मृत्यु को दूर करने वाला था। स्वयं गोपीपति भगवान श्रीकृष्ण ने उस गरम-गरम स्वादिष्ट दूध को पीया। फिर हाथ से छूटकर वह पात्र गिर पड़ा और दूध धरती पर फैल गया। उस दूध से वहाँ एक सरोवर बन गया। उसकी लंबाई और चौड़ाई सब ओर से सौ-सौ योजन थी। गोलोक में वह सरोवर ‘क्षीरसरोवर’ नाम से प्रसिद्ध हुआ है। गोपिकाओं और श्रीराधा के लिये वह क्रीड़ा-सरोवर बन गया। भगवान की इच्छा से उस क्रीड़ावापी के घाट तत्काल अमूल्य दिव्य रत्नों द्वारा निर्मित हो गये। उसी समय अकस्मात असंख्य कामधेनु प्रकट हो गयीं। जितनी वे गौएँ थीं, उतने ही बछड़े भी उस सुरभी गौ के रोमकूप से निकल आये। फिर उन गौओं के बहुत-से पुत्र-पौत्र भी हुए, जिनकी संख्या नहीं की जा सकती। यों उस सुरभी देवी से गौओं की सृष्टि कही गयी, जिससे सम्पूर्ण जगत व्याप्त है।

पूर्वकाल में भगवान श्रीकृष्ण ने देवी सुरभी की पूजा की थी। तत्पश्चात् त्रिलोकी में उस देवी की दुर्लभ पूजा का प्रचार हो गया। दीपावली के दूसरे दिन भगवान श्रीकृष्ण की आज्ञा से देवी सुरभी की पूजा सम्पन्न हुई थी।

देवी सुरभी का ध्यान, स्तोत्र, मूलमन्त्र तथा पूजा की विधि

देवी सुरभी का मूलमन्त्र

‘ऊँ सुरभै नमः’

सुरभी देवी का यह षडक्षर-मन्त्र है। एक लाख जप करने पर मन्त्र सिद्ध होकर भक्तों के लिये कल्पवृक्ष का काम करता है।

देवी सुरभी ध्यान

ऋद्धिदां वृद्धिदां चैव मुक्तिदो सर्वकामदाम् ।

लक्ष्मीस्वरूपां परमां राधासहचरीं पराम् ।।

गवामधिष्ठातृदेवीं गवामाद्यां गवां प्रसूम् ।

पवित्ररूपां पूज्यां च भक्तानां सर्वकामदाम् ।।

यया पूतं सर्वविश्वं तां देवीं सुरभीं भजे ।।

जो ऋद्धि, वृद्धि, मुक्ति और सम्पूर्ण कामनाओं को देने वाली हैं; जो लक्ष्मीस्वरूपा, श्रीराधा की सहचरी, गौओं की अधिष्ठात्री, गौओं की आदि जननी, पवित्ररूपा, पूजनीया, भक्तों के अखिल मनोरथ सिद्ध करने वाली हैं तथा जिनसे यह सारा विश्व पावन बना है, उन भगवती सुरभी की मैं उपासना करता हूँ।

कलश, गाय के मस्तक, गौओं के बाँधने के खंभे, शालग्राम की मूर्ति, जल अथवा अग्नि में देवी सुरभी की भावना करके द्विज इनकी पूजा करें। जो दीपमालिका के दूसरे दिन पूर्वाह्नकाल में भक्तिपूर्वक भगवती सुरभी की पूजा करेगा, वह जगत में पूज्य हो जाएगा।
सुरभी स्तोत्रम्

एक बार वाराहकल्प में देवी सुरभी ने दूध देना बंद कर दिया। उस समय त्रिलोकी में दूध का अभाव हो गया था। तब देवता अत्यन्त चिन्तित होकर ब्रह्मलोक में गये और ब्रह्मा जी की स्तुति करने लगे। तदनन्तर ब्रह्मा जी की आज्ञा पाकर इन्द्र ने देवी सुरभी की स्तुति आरम्भ की।

महेन्द्र उवाच ।।

नमो देव्यै महादेव्यै सुरभ्यै च नमो नमः ।

गवां बीजस्वरूपायै नमस्ते जगदम्बिके ।।

इन्द्र ने कहा– देवी एवं महादेवी सुरभी को बार-बार नमस्कार है। जगदम्बिके! तुम गौओं की बीजस्वरूपा हो; तुम्हें नमस्कार है।

नमो राधाप्रियायै च पद्मांशायै नमो नमः ।

नमः कृष्णप्रियायै च गवां मात्रे नमो नमः ।।

तुम श्रीराधा को प्रिय हो, तुम्हें नमस्कार है। तुम लक्ष्मी की अंशभूता हो, तुम्हें बार-बार नमस्कार है। श्रीकृष्ण-प्रिया को नमस्कार है। गौओं की माता को बार-बार नमस्कार है।

कल्पवृक्षस्वरूपायै प्रदात्र्यै सर्वसंपदाम् ।

श्रीदायै धनदायै च बुद्धिदायै नमो नमः ।।

जो सबके लिये कल्पवृक्षस्वरूपा तथा श्री, धन और वृद्धि प्रदान करने वाली हैं, उन भगवती सुरभी को बार-बार नमस्कार है।

शुभदायै प्रसन्नायै गोप्रदायै नमो नमः ।

यशोदायै सौख्यदायै धर्मज्ञायै नमो नमः ।।

शुभदा, प्रसन्ना और गोप्रदायिनी सुरभी देवी को बार-बार नमस्कार है। यश और कीर्ति प्रदान करने वाली धर्मज्ञा देवी को बार-बार नमस्कार है।

इस प्रकार स्तुति सुनते ही सनातनी जगज्जननी भगवती सुरभी संतुष्ट और प्रसन्न हो उस ब्रह्मलोक में ही प्रकट हो गयीं। देवराज इन्द्र को परम दुर्लभ मनोवांछित वर देकर वे पुनः गोलोक को चली गयीं। देवता भी अपने-अपने स्थानों को चले गये। फिर तो सारा विश्व सहसा दूध से परिपूर्ण हो गया। दूध से घृत बना और घृत से यज्ञ सम्पन्न होने लगे तथा उनसे देवता संतुष्ट हुए।

जो मानव इस महान पवित्र स्तोत्र का भक्तिपूर्वक पाठ करेगा, वह गोधन से सम्पन्न, प्रचुर सम्पत्ति वाला, परम यशस्वी और पुत्रवान हो जाएगा। उसे सम्पूर्ण तीर्थों में स्नान करने तथा अखिल यज्ञों में दीक्षित होने का फल सुलभ होगा। ऐसा पुरुष इस लोक में सुख भोगकर अन्त में भगवान श्रीकृष्ण के धाम में चला जाता है। चिरकाल तक वहाँ रहकर भगवान की सेवा करता रहता है। नारद! उसे पुनः इस संसार में नहीं आना पड़ता।

इति सुरभी देवी उपाख्यान।।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *