सूर्य कवच स्तोत्रं अर्थ सहित Surya Kavach Stotra with meaning

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सभी ग्रहों में सबसे उच्च पद सूर्यदेवजी को दिया है, इस तरह समस्त ग्रहों के ऊपर अपना आधिपत्य रखने वाले होते है, जो कि ग्रहों के कारकत्व के रूप में आत्मा के कारक माने गए है, इसलिए समस्त तरह के विकारों को समाप्त करने के लिए सूर्यदेवजी की अर्चना करनी चाहिए। क्योंकि जब आत्मा में किसी तरह के बुरे विकार नहीं जागृत होते है तब तक कोई भी अपना कार्य एवं जीवन को सही दिशा में चला सकता है, जब आत्मा में विकृति आ जाती है तब किसी भी तरह से राहत नहीं मिलती हैं। सूर्य ग्रह को व्यवसाय एवं नौकरी का कारकेश माना जाता हैं। जिस किसी के व्यवसाय एवं नौकरी में परेशानी आ रही हो उनको सूर्य कवच स्तोत्रं का वांचन नियमित रूप से करते रहना चाहिए।

|| सूर्य कवच स्तोत्रं अर्थ सहित ||

श्री सूर्य कवच स्तोत्रम् का विनियोग:-याज्ञवल्क्य ऋषिवर ने मन्त्रों के वांचन से पूर्व देवी-देवताओं के निमित मनुष्य को अपने शुद्ध दाएँ हाथ में आचमनी में जल भरकर लें, बाएँ हाथ से दायीं भुजा को स्पर्श करते हुए निम्न प्रकार से विनियोग या संकल्प के लिए विनियोग करने के बारे में बताया हैं।

अथ विनियोगः-

ऊँ अस्य श्री सूर्य-कवचस्य ब्रह्मा ऋषिः,

अनुष्टुप् छन्दः, श्री सूर्यो देवताः।

आरोग्य च प्रापत्यर्थं, अहम्,

पुत्रो श्री, पौत्रो श्री, गोत्रे जन्मौ,

श्रीसूर्य-कवच-पाठे विनियोगः।

अर्थात्:-श्री सूर्य-कवच स्तोत्रम् श्लोकों में वर्णित मंत्रों की रचना ब्रह्मा ऋषिवर ने की थी, जिसमें अनुष्टुप छंद हैं एवं सूर्य देवता के रूप में हैं, जो कोई सूर्य-कवच स्तोत्रं के श्लोकों में वर्णित मंत्रों के द्वारा इनके देवता को याद करते हुए वांचन का संकल्प करता हैं, सभी जगहों पर विजय पाने और देह को व्याधियों से मुक्ति पाने एवं निरोग्यता कि प्राप्ति हेतु-मैं पुत्र श्री- पौत्र श्री-गोत्र में जन्मा हुआ~श्री सूर्य-कवच स्तोत्रं के पाठ के निमित्त स्वयं को नियोजित करता हूँ।

ऐसा कहकर आचमनी के जल को~हाथ को सीधा अर्थात् ऊपर की ओर रखते हुए ही~तीन बार थोड़ा-थोड़ा करके पृथ्वी पर छोड़ दें। उसके बाद निम्नलिखित श्री सूर्य कवच का अपने अभीष्ट अंगों को स्पर्श करते हुए जाप करें

श्री सूर्य ध्यानम:-

रक्तांबुजासनमशेषगुणैकसिन्धुं

भानुं समस्तजगतामधिपं भजामि।

पद्मद्वयाभयवरान् दधतं कराब्जैः

माणिक्यमौलीमरुणाङ्गरुचिं त्रिनेत्रम्।।

श्री सूर्य प्रणामः-

जपाकुसुमसङ्काशं काश्यपेयं महाद्युतिम्।

ध्वान्तारिं सर्वपापघ्नं प्रणतोsस्मि दिवाकरम।।

ऊँ गणेशाय नमः:-भगवान गणेश जी की वंदना करते हुए श्रीसूर्यकवच स्तोत्रं का विवरण लिख रहा हो।

याज्ञवल्क्य उवाच:-याज्ञवल्क्य ऋषि के अनुसार सूर्य कवच स्त्रोतं के बारे में उनके ग्रन्थ में जो विवरण दिया गया है, वह इस तरह है, इस स्तोत्रं का जाप करके अपने जीवन में उन्नति को प्राप्त कर सकते हैं।

श्रुणुष्व मुनिशार्दूल सूर्यस्य कवचं शुभम्।

शरीरारोग्यदं दिव्यं सर्व सौभाग्यदायकम्।।1।।

याज्ञवल्क्यजी ने कहा-हे उत्तम मुनियों! आप सभी ध्यानपूर्वक सूर्य के कवच स्तोत्रं के बारे में अपना मन को एक जगह पर स्थिर करते हुए सुनिए। सूर्य कवच स्तोत्रं देह में व्याधियों को नष्ट करते हुए देह को स्वस्थ रखने वाला होता हैं और देवतुल्य सौभाग्य को देने वाला होता है, इसलिए इस स्त्रोतं से समस्त तरह के ऐश्वर्य की प्राप्ति होती हैं

दैदिप्यमानं मुकुटं स्फ़ुरन्मकरकुण्डलम्।

ध्यात्वा सहस्रकिरणं स्तोत्रमेतदुदीरयेत्।।2।।

भावार्थ्:-हे मुनियों! आप सूर्य कवच स्तोत्रं का वांचन कीजिए। जो तेज से भरा हुआ या मंडित हो या जिसमें चमक या चमकीले रंग से जगमगाते हुए किरीट हो जो हिलते हुए मछली के आकार वाले कर्णफूल को धारण करने वाले होते है, जो अपने तेज से हजारों किरणों को उत्पन्न करते है उन भास्करदेव जी को स्मरण करते हुए सूर्य कवच स्तोत्रं का वांचन शुरू कीजिए।

शिरो मे भास्करः पातु ललाटे मेsमितद्दुतिः।

नेत्रे दिनमणिः पातु श्रवणे वासरेश्वरः।।3।।

भावार्थ्:-हे भास्कर देवजी! आपसे अरदास करता हूँ कि आप मेरे मस्तिष्क की रक्षा कीजिए, आप अगणित चमक वाले भाल की भी रक्षा कीजिए। सूर्यदेव आप मेरे चक्षुओं की आपके तीव्र ताप से बचाव कीजिए और मेरे श्रवण की रक्षा भी दिन के परमात्मा कीजिए।

घ्राणं धर्म धृणिः पातु वदनं वेदवाहनः।

जिह्वां मे मानदः पातु कंठं मे सुरवंदितः।।4।।

भावार्थ्:-हे सूर्यदेवजी! आपसे आग्रह करता हूँ की आप मेरे नासा का बचाव आपके प्रकाश से धर्मघृणि जी कीजिए, देव की वंदना करने से आनन की रक्षा कीजिए, वाचा का बचाव मान प्रतिष्ठा देने पर और देव की वंदना करने से ग्रीवा की रक्षा कीजिए।

स्कंधौ प्रभाकरं पातु वक्षः पातु जनप्रियः।

पातु पादौ द्वादशात्मा सर्वागं सकलेश्वरः।।5।।

भावार्थ्:- हे भास्कर देवजी! आपसे आग्रह करता हूँ कि आप मेरे कंधे का बचाव कीजिए, उरुस्थल का बचाव सबसे प्रेम रखने वाले भास्करदेवजी कीजिए, मेरे पादों का बचाव सूर्यदेवजी कीजिए और मेरे समस्त शरीर के समस्त अंगों की रक्षा सकलेश्वर जी कीजिए।

सूर्यरक्षात्मकं स्तोत्रं लिखित्वा भूर्जपत्रके।

दधाति यः करे तस्य वशगाः सर्वसिद्धयः।।6।।

भावार्थ्:-जो कोई भी सूर्य रक्षात्मक कवच स्तोत्रं को भोजपत्र पर अपने हाथों से लिखकर जो हाथ में पहनता है, तो पहनने वाले को समस्त सिद्धियों की प्राप्ति होकर वे समस्त सिद्धियां को अपने अनुसार कार्य करवा सकता हैं।

सुस्नातो यो जपेत्सम्यक् योsधीते स्वस्थ मानसः।

स रोगमुक्तो दीर्घायुः सुखं पुष्टिं च विंदति।।7।

भावार्थ्:-जो भी कोई प्रातःकाल जल्दी उठकर अपनी दैनिकचर्या जैसे स्नानादि करने के बाद साफ-शुद्ध वस्त्र को धारण करके अपने इष्ट का ध्यान करते हुए इस सूर्य कवच स्तोत्रं का निर्मल मन से वांचन करता है, वह समस्त तरह की व्याधियों से छुटकारा पाकर बहुत समय तक जीवन को जीता है और उसकी प्रसिद्ध चारो तरफ फैल जाती है जिससे उसको सवर्त्र मान-सम्मान की प्राप्ति होती हैं।

।।इति श्री माद्याज्ञवल्क्यमुनिविरचितं सूर्यकवचस्तोत्रं।

।।अथ श्रीसूर्यकवचस्तोत्रम्।।

श्रुणुष्व मुनिशार्दूल सूर्यस्य कवचं शुभम्।

शरीरारोग्यदं दिव्यं सर्व सौभाग्यदायकम्।।1।।

दैदिप्यमानं मुकुटं स्फ़ुरन्मकरकुण्डलम्।

ध्यात्वा सहस्रकिरणं स्तोत्रमेतदुदीरयेत्।।2।।

शिरो मे भास्करः पातु ललाटे मेsमितद्दुतिः।

नेत्रे दिनमणिः पातु श्रवणे वासरेश्वरः।।3।।

घ्राणं धर्म धृणिः पातु वदनं वेदवाहनः।

जिह्वां मे मानदः पातु कंठं मे सुरवंदितः।।4।।

स्कंधौ प्रभाकरं पातु वक्षः पातु जनप्रियः।

पातु पादौ द्वादशात्मा सर्वागं सकलेश्वरः।।5।।

सूर्यरक्षात्मकं स्तोत्रं लिखित्वा भूर्जपत्रके।

दधाति यः करे तस्य वशगाः सर्वसिद्धयः।।6।।

सुस्नातो यो जपेत्सम्यक् योsधीते स्वस्थ मानसः।

स रोगमुक्तो दीर्घायुः सुखं पुष्टिं च विंदति।।7।।

।।इति श्री माद्याज्ञवल्क्यमुनिविरचितं सूर्यकवचस्तोत्रं।

सूर्य कवच स्तोत्रं के वांचन के फायदे:- सूर्य कवच स्तोत्रं एक तरह से जीवन की रक्षा करने वाला होता है, इसलिए इसके नियमित वांचन करके फायदा प्राप्त कर सकते है।

1.जिस किसी को किसी भी तरह की व्याधि हो उनको सूर्य देव के इस स्तोत्रं का पाठ करने से निश्चित हो व्याधि से मुक्ति मिल जाती हैं।

2.जिनको रोजगार एवं राजसेवा में परेशानी होतो इस स्तोत्रं का जाप करने से फायदा मिलता है।

3.जिनको बहुत कुछ करने के बाद भी मान-सम्मान नहीं मिलता हैं, तो इस स्तोत्र का वांचन करें।

4.जो इस स्तोत्रं का पाठ करता है उसको सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

5.सूर्य कवच को धारण करते है तो उनको किसी भी तरह के बाह्य-आंतरिक आघात कुछ नहीं बिगाड़ कर सकता है।

6.सूर्य कवच स्तोत्रं का वांचन करने से अपने जीवन में सभी जगहों पर विजय की प्राप्ति होती हैं।

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