चलो चल कर बैठें उस ठौर, – हरिवंश राय बच्चन
चलो चल कर बैठें उस ठौर, बिछी जिस थल मखमल सी घास, जहाँ जा शस्य श्यामला भूमि, धवल मरु के...
चलो चल कर बैठें उस ठौर, बिछी जिस थल मखमल सी घास, जहाँ जा शस्य श्यामला भूमि, धवल मरु के...
क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी? क्या करूँ? मैं दुखी जब-जब हुआ संवेदना तुमने दिखाई, मैं कृतज्ञ हुआ हमेशा, रीति दोनो...
देखो, टूट रहा है तारा। नभ के सीमाहीन पटल पर एक चमकती रेखा चलकर लुप्त शून्य में होती-बुझता एक निशा...
है अंधेरी रात पर दीपक जलाना कब मना है। कल्पना के हाथ से कमनीय जो मंदिर बना था भावना के...
जीवन में एक सितारा था माना यह बेहद प्यारा था यह डूब गया तो डूब गया अंबर के आनन को...
साँस चलती है तुझे चलना पड़ेगा ही मुसाफिर! चल रहा है तारकों का दल गगन में गीत गाता, चल रहा...
कौन यह तूफान रोके! हिल उठे जिनसे समुंदर‚ हिल उठे दिशि और अंबर हिल उठे जिससे धरा के! वन सघन...
मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला‚ प्रियतम‚ अपने ही हाथों से आज पिलाऊंगा प्याला‚ पहले भोग लगा...
जिसके पीछे पागल हो कर मैं दौड़ा अपने जीवन भर, जब मृगजल में परिवर्तित हो, मुझ पर मेरा अरमान हँसा!...
छोड़ घोंसला बाहर आया‚ देखी डालें‚ देखे पात‚ और सुनी जो पत्ते हिलमिल‚ करते हैं आपस में बात; माँँ‚ क्या...