तुमुल कोलाहल कलह में मैं हृदय की बात रे मन – जयशंकर प्रसाद
तुमुल कोलाहल कलह में, मैं हृदय की बात रे मन। विकल हो कर नित्य चंचल खोजती जब नींद के पल...
तुमुल कोलाहल कलह में, मैं हृदय की बात रे मन। विकल हो कर नित्य चंचल खोजती जब नींद के पल...
हिम गिरी के उत्तंग शिखर पर‚ बैठ शिला की शीतल छांह‚ एक पुरुष‚ भीगे नयनों से‚ देख रहा था प्र्रलय...