तुम जानो या मैं जानूँ – शंभुनाथ सिंह
जानी अनजानी‚ तुम जानो या मैं जानूँ। यह रात अधूरेपन की‚ बिखरे ख्वाबों की सुनसान खंडहरों की‚ टूटी मेहराबों की...
जानी अनजानी‚ तुम जानो या मैं जानूँ। यह रात अधूरेपन की‚ बिखरे ख्वाबों की सुनसान खंडहरों की‚ टूटी मेहराबों की...