Vidur Neeti : Geeta Press PDF download in Hindi || विदुर नीति : गीता प्रेस पीडीएफ डाउनलोड इन हिंदी

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युक्तो धर्मार्थयोर्ज्ञाने स राज्यमधिगच्छति ॥ ११ ॥
जो इनके प्रमाणोंको ठीक-ठीक जानता है तथा धर्म और अर्थके ज्ञानमें दत्तचित्त रहता है, वह राज्यको प्राप्त करता है ॥ ११॥
न राज्यं प्राप्तमित्येव वर्तितव्यमसाम्प्रतम् । श्रियं ह्यविनयो हन्ति जरा रूपमिवोत्तमम्॥ १२ ॥ ‘अब तो राज्य प्राप्त हो ही गया’—ऐसा समझकर अनुचित बर्ताव नहीं करना चाहिये । उद्दण्डता सम्पत्तिको उसी प्रकार नष्ट कर देती है, जैसे सुन्दर रूपको बुढ़ापा
॥ १२ ॥भक्ष्योत्तमप्रतिच्छन्नं मत्स्यो वडिशमायसम्। लोभाभिपाती असते नानुबन्धमवेक्षते ॥ १३ ॥ मछली बढ़िया चारेसे ढकी हुई लोहेकी काँटीको लोभमें पड़कर निगल जाती है, उससे होनेवाले परिणामपर विचार नहीं करती ।। १३ ।।

Sort-rich persecution 11
The person who knows his evidence is okay and the religion and the meaning of sense, he receives the state. 11
Neither the state’s resistance. Shriban Hywinayo Hanti 12 ‘Now the state has received’ – do not want to behave inappropriate by understanding. The independence is destroyed in the same way, as beautifully old age. 12
Healthy Matsyo Vadishmayam .Balabhipatti Boat Nobrabshmwax 13.

Fish gets covered with a good fury, swallowed and swallows it, the result does not consider. 13

 

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