महर्षि भृगु कौन थे | who was maharishi bhrigu in hindi

0

भारतवर्ष कई साधु महात्माओं की भूमि रह चुकी है और ऋषि मुनियों ने हर मनुष्य जाति के कल्याण के लिए हर एक संभव कार्य किये, ऋषि मुनियों ने मनुष्यों को हमेशा सत्मार्ग पर चलने का

और दया परोपकार का पाठ पढ़ाया है. तो दोस्तों आइये जानते है ऎसे ही एक महान ऋषि महर्षि भृगु के बारे में:-

भृगु ऋषि का इतिहास History of bhrigu rishi

महर्षि भृगु कौन थे – महर्षि भृगु पौराणिक कालीन एक महान ऋषि थे, जो आपने तप तथा त्रिदेवों की परीक्षा लिए जाने के कारण जाने जाते हैं, महर्षि भृगु ऋषि जो सप्तर्षियों में एक माने जाते हैं।

तथा इन्होंने ही महर्षि भृगु भृगु संहिता के रचयिता तथा अपने गुरु मनु द्वारा रचित मनुस्मृति के संरक्षित कर्ता के नाम से भी प्रसिद्ध है।

महर्षि भृगु को भार्गव वंश से संबंधित माना जाता है, तथा महादेव जी स्वयं और भार्गव वंश के कुछ अन्य मंत्रों के दृष्टा और रचयिता भी हैं।

ऋग्वेद में भी कई भार्गव वंशीय विष्णु द्वारा रचित है। मंत्रों का उल्लेख देखने को मिलता है, जिनमें प्रमुख रूप से वेन, सोमहति, भार्गव आदि का नाम वर्णित है।

भृगु ऋषि का जन्म Bhrigu rishi ka janm

वेद पुराणों के अनुसार बताया जाता है कि महर्षि भृगु का जन्म ब्रह्मलोक सुसानगर (Susanagar) जो वर्तमान में इराक में स्थित है।

मैं 38 ईशा लाख वर्ष पूर्व हुआ था। पौराणिक धर्म ग्रंथों के आधार पर बताया जाता है कि भृगु ऋषि के पिता का नाम प्रणेता ब्रह्मा तथा माता का नाम वीरणी था।

महर्षि भृगु दो भाई थे जिनमें उनके बड़े भाई का नाम ऋषि अंगिरा था इन ऋषि अंगरा के ही पुत्र थे बृहस्पति जो देवताओं के राजगुरु तथा उनके पथ प्रदर्शक के रूप में आसीन थे।

भृगु ऋषि के कितने पुत्र थे how many child had bhrigu rishi

पौराणिक धर्म ग्रंथों में महर्षि भृगु की दो पत्नियों का उल्लेख है जिनमें से इनकी पहली पत्नी हिरणकश्यप की पुत्री दिव्या थी. जिनसे उनके दो पुत्रों का जन्म हुआ जिनका जिनका नाम शुक्राचार्य

और देवशिल्पी विश्वकर्मा था। दोनों पुत्र सुसा ब्रह्मलोक में उत्पन्न होने के कारण अपनी अपनी प्रतिभा के धनी थे। शुक्राचार्य खगोल विज्ञान ज्योतिष के महान ज्ञाता थे तो वही देव शिल्पी विश्वकर्मा वास्तु के कुशल निपुण और शिल्पकार हुए.

महर्षि भृगु की दूसरी पत्नी का नाम पौलमी था, जो दानवों के अधिपति पुलोम ऋषि (Pulom Rishi) की पुत्री थी, जिनसे च्यवन और

ऋचीक (Riseech) नाम के दो महान पुत्रों का जन्म हुआ, जिनमें ऋचीक का विवाह गांधी नरेश की पुत्री सत्यवती से हुआ था।

तथा इनके आशीर्वाद के कारण ही महान ऋषि तथा तपस्वी गुरु विश्वामित्र का जन्म हुआ था, जबकि च्यवन का विवाह राजा शरयन्ति की पुत्री सुकन्या से हुआ था।

भृगु ऋषि की पत्नी का वध Bhrigu rishi ki patni ka vadh

भृगु ऋषि की पत्नी का नाम ख्याति था, जो देत्यों के महान गुरु शुक्राचार्य की पत्नी थी। भृगु ऋषि की पत्नी का नाम ख्याति का वध श्रीहरि विष्णु ने किया था।

यह घटना उस समय की है जब देवासुर संग्राम चल रहा था और असुर सैनिक मारे जा रहे थे, किन्तु तभी दैत्य गुरु शुक्राचार्य की माँ ख्याति वहाँ आयी

और उन्होंने योग विद्या से असुर सैनिको को जीवित करना शुरू कर दिया जिससे देव सेना के पाँव उखड़ने लगे। ख्याति के इस कृत्य को देख भगवान श्रीविष्णु ने सुदर्शन से उनका वध कर दिया।

जिससे रुष्ट होकर भृगु ऋषि ने श्रीहरि विष्णु (Shri hari Vishnu) को श्राप दिया की तुम्हे बार – बार स्त्री के पेट से जन्म लेना पड़ेगा। इसके बाद भृगु ऋषि ने अपनी पत्नी ख्याति को तपोबल से जीवित किया और गंगा नदी के तट पर आ गए।

भृगु ऋषि की कथा Story of bhrigu rishi

महर्षि भृगु की सबसे प्रसिद्ध कहानी उस समय की है जब एक बार सरस्वती नदी के तट पर कई ज्ञानी और महान ऋषि मुनियों की मंडली एक महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा कर रही थी

और वह विषय यह था कि त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु, महेश में सबसे महान कौन है? समस्त ऋषि-मुनियों ने अपने-अपने विचार विमर्श प्रस्तुत किए किंतु फिर भी वे इस निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाए थे।

कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश में से सबसे महान कौन है? फिर सभी ऋषि-मुनियों ने यह निष्कर्ष निकाला की ब्रह्मा विष्णु महेश की परीक्षा ली जाए तथा इस परीक्षा के आधार पर ही स्पष्ट किया जाएगा।

कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश में से सबसे महान कौन है? लेकिन अब विषय यह था कि इस परीक्षा का उत्तरदायित्व किसे दिया जाए सभी ऋषि मुनियों ने इस विषय पर विचार विमर्श करके यह उत्तरदायित्व

महर्षि भृगु को सौंपा और महर्षि भृगु ने इस उत्तरदायित्व को बखूबी निभाया महर्षि भृगु सबसे पहले परमपिता परमात्मा ब्रह्मा जी के पास पहुँचे तथा ब्रह्मा जी से अपशब्द कहे तथा उनका अपमान किया

जिससे ब्रह्माजी क्रोध के वशीभूत होकर महर्षि भृगु को श्राप देने लगे तभी अचानक ब्रह्मा जी को याद आया कि महर्षि भृगु उनके ही मानस पुत्र हैं।

इसलिए उन्होंने श्राप नहीं दिया और जाने दिया। इसके बाद महर्षि भृगु कैलाश पर्वत पहुँचे जहाँ पर शिव शंकर उपस्थित थे।

जब शिव शंकर को यह ज्ञात हुआ की महर्षि भृगु कैलाश पर पधारे हैं, तो वह उनका स्वागत करने के लिए तुरंत उठके खड़े हो गए

किंतु महर्षि भृगु ने महाशिव का आदर सत्कार का तिरस्कार कर दिया और बड़े ही कठोर शब्दों में उन्हें सृष्टि की होने वाली विनाशकारी घटनाओं का उत्तरदाई कहने लगे इससे बहुत क्रोध में आ गए

और उन्होंने महर्षि भृगु को मारने के लिए त्रिशूल उठा लिया किंतु तभी माता पार्वती आ गई और उन्होंने शिव शंकर को शांत किया।

इसके बाद महर्षि भृगु क्षीरसागर (Ksheersagar) में पहुँचे जहाँ पर भगवान विष्णु अपने शेषनाग की सैय्या पर सुप्त अवस्था में थे।

महर्षि भृगु ने वहाँ पहुँचते ही भगवान विष्णु की छाती पर लात मार दी जिससे भगवान विष्णु की आँख खुली तो उन्होंने महर्षि भृगु का बड़े ही मीठे शब्दों में स्वागत सत्कार किया और कहने लगे !हे

ऋषिवर कहीं आपके कोमल पैरों में चोट तो नहीं आई और उनके पैरों को अपने हाथों में लेकर स्पर्श करने लगे भगवान विष्णु का व्यवहार देखकर महर्षि भृगु को बड़ा ही आश्चर्य हुआ तथा

सभी ऋषि मुनियों के पास पहुँचे और यह निष्कर्ष निकला कि भगवान विष्णु ही त्रिदेवों में सबसे महान हैं. क्योंकि उन्होंने स्वयं छाती पर लात खाने के पश्चात भी महर्षि भृगु का आदर सत्कार किया,

जो एक महान व्यक्तित्व करता है, इसलिए त्रिदेवों में सबसे महान भगवान विष्णु ही है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *