Yatra Ke panne By Rahul Sankrityayan In Hindi PDF Free Download || राहुल सांकृत्यायन द्वारा यात्रा के पन्ने हिंदी में पीडीएफ मुफ्त डाउनलोड

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मेरी पहिली और दूसरी तिब्बत-यात्राये पहिले ही लिखी जा चुकी है, तीसरी यात्रा का संक्षित वर्णन आया जरूर था, लेकिन उसे कुछ विस्तार के साथ लिखने की आवश्यकता थी, इसीलिये इन पंक्तियों को मैंने लिखा । चौथी यात्रा संक्षेप में “मेरी जीवनयात्रा के द्वितीय भाग में श्राई है, कभी समय मिलने पर उसको भी विस्तार के साथ लिखूगा। मेरी चारों तिब्बत यात्रानो (१९२६, १९३४, १९३६, १९३८ ई०) को हुए आज १३ वर्ष हो चुके हैं, लेकिन तिब्बत ने जैसे अपने भीतर शतान्दियों को ताजा बनाये रखा, उसी तरह से इतिहास की दृष्टि से वह अब भी अचल सिद्ध होता, किन्तु अब वहा शताब्दियो का परिवर्तन वर्षों में होने लगा है। भारत और तिब्बत की जिन सांस्कृतिक अनमोल निधियो को मै वहा के मठो मे देख आया था, अब उनके गुणग्राहक वहा पैदा हो गये हैं, और श्राशा है कि इतिहास के प्रेमियो के लिए, भारत और चीन के संबन्ध को और दृढ़ करने के लिए यह निधियां प्रकाश में आयेगी।

हैपीवेली

राहुल सांकृत्यायन

मसूरी १०-१२-१९५१

My first and second trips to Tibet have already been written, a brief description of the third trip had come, but it needed to be written in some detail, that is why I wrote these lines. The fourth yatra is in a nutshell “Shri in the second part of my life journey, I will write it in detail when I get time. Today, it has been 13 years since all my four travels to Tibet (1926, 1934, 1936, 1938 AD), but Tibet As he kept the centuries fresh within himself, in the same way, it would still prove to be immovable from the point of view of history, but now the change of centuries has started taking place in the years. The cultural precious treasures of India and Tibet which I have in the monasteries there. I had come to see, now their virtuoso has been born there, and it is hoped that for the lovers of history, these funds will come to light to further strengthen the relationship between India and China.
happy holiday
Rahul Sankrityayan
Mussoorie 10-12-1951es.

 

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