योगनिद्रा का अभ्यास गहरी नींद व विश्राम के लिए आसन Yognidra ka Abhyas Gahri Nind v Vishram ke liye Asana
योग निद्रा करने के लिए सबसे पहले पीठ के बल सीधे भूमि पर लेट जाइए। दोनों पैरों में लगभग 1 फुट का अंतर हो ,तथा दोनों हाथों को भी जंघाओ से थोड़ी दूरी पर रखते हुए हाथों को ऊपर की ओर खोल कर रखें।
आंखें बंद कर ले ,गर्दन को सीधा कर ले, पूरे शरीर में तनाव रहित अवस्था को महसूस करें। धीरे-धीरे चार से पांच बार लंबी-लंबी श्वास भरें व धीरे-धीरे श्वास को छोड़ें ।अब मन के द्वारा शरीर के प्रत्येक अवयव को देखते हुए, शरीर के प्रत्येक अंग को तनाव रहित अवस्था में अनुभव करते हुए शिथिल छोड़ दें।
जीवन के समस्त कार्य व महान उद्देश्य की सफलता के पीछे संकल्प की शक्ति मुख्य होती है। अब हमें इस शरीर को पूर्ण विश्राम देना है। इसके लिए भी हमें शरीर के विश्राम अथवा शिथिलीकरण का संकल्प करना होगा।
सबसे पहले अपनी आंखों को बंद करके ,मन की संकल्प शक्ति के द्वारा पैरों के अंगूठे एवं अंगुलियों को देखते हुए उनको नितांत ढीला व तनाव रहित अनुभव करें। पंजों के बाद पैर की एड़ियों को देखते हुए उनको भी शिथिल अवस्था में अनुभव कीजिए। अब पिंडलियों को देखें और यह विचार करें कि मेरी पिंडलियों को स्वस्थ है, तनाव रहित व पूर्ण विश्राम की अवस्था में है।
और फिर अनुभव करें कि शिथिलीकरण के विचार मात्र से ही शरीर को पूर्ण विश्राम मिल रहा है ।
पिंडलियों के बाद अब घुटनों को देखते हुए उनको स्वस्थ व तनाव रहित पूर्ण विश्राम की अवस्था में अनुभव करें। मन ही मन जंघाओं को देखें और उनको भी पूर्ण विश्राम की दशा में अनुभव करें।
जंघाओं के बाद धीरे-धीरे शरीर के ऊपरी भाग को कमर, पेडू ,पेट व पीठ को सहायता पूर्वक देखते हुए पूर्ण स्वस्थ व तनाव रहित अवस्था में अनुभव करें। अब शांत भाव से मन को हृदय पर केंद्रित करते हुए हृदय की धड़कन को सुनने का प्रयास करें।
हृदय के धड़कनों का श्रवण करते हुए विचार करें, कि मेरा हृदय पूर्ण स्वस्थ तनाव रहित व पूर्ण विश्राम की अवस्था में है। कोई रोग या विकार मेरे हृदय में नहीं है। पूर्ण विश्राम की अवस्था में अनुभव करें।
अब अपने चेहरे को देखिए और विचार कीजिए कि मेरे मुख पर चिंता, तनाव, निराशा का कोई भी अशुभ विचार नहीं है। मेरे मुख पर प्रसन्नता, आनंद ,आशा व शांति का दिव्य भाव है। आंखें, नाक, कान, मुख सहित पूरे चेहरे पर असीम आनंद का भाव है ।
अब तक हमने मन के शुभ का दिव्य संकल्प के द्वारा शरीर को पूर्ण विश्राम प्रदान किया है। अब मन को विश्राम प्रदान करना है। मन को भी शिथिल करना है। मन में उठते हुए संकल्प के भी हमें पार जाना है । इसके लिए हमें अपनी आत्मा का आश्रय लेना होगा।
विचार करें मैं सुध, बुध, निर्मल, पावन, शांति में आनंदमय ज्योतिर्मयी अमृत पुत्र आत्मा हूं। मैं सदा ही पूर्ण व शाश्वत हूं। मुझ में किसी चीज का अभाव नहीं है। अपितु में सदा ही भाव व श्रद्धा से परिपूर्ण हूं। मैं सच्चिदानंद भगवान का अंश हूं। मैं भगवान का अमृत पुत्र हूं। मैं प्रकृति, शरीर, इंद्रियों एवं मन के बंधन से रहित हूं।
मेरा वास्तविक आश्रय मेरा प्रभु है। बाहर की समृद्धि के घटने से व बढ़ने से मैं दरिद्र, दीनानाथ, अथवा सनातन अथवा राजा नहीं हो जाता। मैं तो सदा एकरस हूं। जो परिवर्तन हो रहे हैं वह जगत के धर्म हैं। आत्मा के धर्म नहीं है, इस प्रकार आत्मा की दिव्यता का अनुभव करें। आत्मा की दिव्यता का अनुभव करते हुए अपने मन से समस्त प्रकार के नकारात्मक चिंतन को हटा दें। नकारात्मक चिंतन से व्यक्ति आत्मा को भी पूर्ण विश्राम प्रदान करेंगे।
अपने मन में विचार कीजिए मेरी आत्मा, मेरे शरीर से बाहर निकल आई है। और शरीर के ऊपर आकाश में स्थिर होकर आत्मा भाव से शरीर को ऐसा अनुभव कर रहे हैं ।जैसे कि कोई शव भूमि पर लेटा हुआ है ।
इसीलिए इस स्थिति को शवासन भी कहा गया है। अब आप अपनी चेतना, आत्मा को अनंत आकाश में व्याप्त सच्चिदानंद स्वरुप भगवान के प्रति समर्पित कर दीजिए। विचार कीजिए कि आपकी आत्मा को चारों ओर से भगवान का दिव्य आनंद प्राप्त हो रहा है। भगवान की सृष्टि का जो दिव्य सुख है उसका अनुभव करें।
भगवान से समर्पित होकर जो भी शुभ संकल्प किया जाता है, वह संकल्प पूर्ण अवश्य होता है। अब विचार कीजिए भगवान की सृष्टि की देवताओं का और इस अद्भुत प्रकृति, रूप ,रचना का ध्यान करते हुए भगवान की दिव्यता का संकल्प कीजिए।
विचार कीजिए कि आप सुंदर मनोहारी फूलों की घाटी में हैं। जिसके तरह-तरह के पुष्पों की सुंदर कलियों के मनभावन सुगंध से पूरा वातावरण सुरभित हो रहा है। महक रहा है । चारों ओर दिव्यता फैली हुई है। भगवान की एक-एक लीला को देखते ही बनता है। कोई अंत नहीं है ।
भगवान की महिमा का, इन्हीं पुष्प वाटिकाओं के साथ विभिन्न प्रकार के वृक्ष लगे हुए हैं ।जिस पर सुंदर फल लगे हुए हैं ,जो विधाता ने उन में अलग-अलग रसों से भरा है ,चारों ओर मंद से मंद मनभावन पवन बहता हुआ आनंद प्रदान कर रहा है।
इस सुंदर उपवन में पक्षी अपने मधुर स्वर से भगवान की महिमा का गान कर रहे हैं। हर गली, हर फूल व फल से भगवान का जीवंत का दर्शन हो रहा है। आकाश की ओर आंखें उठाकर देखें तो चांद व् तारे तथा सूरज भगवान के विशाल ब्रह्मांड रूपी मंदिर में दीपक की भांति जलकर सब को प्रकाशित कर रहे हैं।
नदियां बहती हुई मानो भगवान के चरणों का प्रचालन कर रही हैं। कितना महान असीम अपरिमित अनंत है वह ब्रह्मा। हे प्रभु , हे जगत जननी मां, मुझे पुत्र को अपनी शरण में ले लो। अपना दिव्य आनंद मां मुझे प्रदान करो।
प्रभु मुझे सदा तुम्हारी दिव्यता शांति व ज्योति प्राप्त होती रहे, मैं सदा तेरी ही अनंत महिमा का चिंतन करता रहूं ।तुझ में ही रमण करता रहूं, तेरे ही अनंत आनंद में मग्न रहूं, हे प्रभु मुझे जगत के विकार भाव से सदा के लिए हटाकर अपने आनंदमई गोद में ले लीजिए।
इस प्रकार भगवान की दिव्यता का अनुपम आनंद ले कर पुनः अपने आप को इस शरीर में अनुभव करें, विचार करें कि आप योगनिद्रा से पुनः इस शरीर में आ गए हैं। आपका स्वास चल रहा है ।स्वास् के साथ जीवनी प्राण की महान शक्ति आपके भीतर प्रवेश कर रही है। अपने आप को स्वस्थ प्रसन्न आनंदित अनुभव करें।
और जिस तरह से शरीर को संकल्प के द्वारा शिथिल किया था ,उसी तरह से नए संकल्प के साथ पूरे शरीर में नई शक्ति आरोग्य व दिव्य चेतना के आनंद का अनुभव करें।
पैर से ,अंगूठे से लेकर सिर के पर्यंत प्रत्येक अंग को देखें ,और जिस- जिस अंग को देखते हुए जाएं उस -उस अंग का पूर्ण स्वस्थ का अनुभव करें। ऐसे किसी को घुटनों अथवा कमर में दर्द है, तो आप विचार करें कि मेरा दर्द बिल्कुल दूर हो गया है।
योगनिद्रा के अभ्यास से ,भगवान की कृपा से, मेरे घुटनों एवं कमर में कोई पीड़ा नहीं है। क्योंकि योगनिद्रा के अभ्यास से इन रोगों का मूल कारण का ही अंत हो गया है। दर्द बाहर निकल रहा है, इसी प्रकार पेट व हृदय का भी कोई रोग हो तो उसे ठीक होने का विचार करें।
यदि कोई हृदय की नलिकाओं में अवरोध है, तो उसे ठीक होने का अनुभव करें। और संकल्प करें, कि हमारे शरीर से समस्त प्रकार के विजातीय तत्व, रोग, विकार निकल रहे हैं। मैं पूरी तरह से स्वस्थ हो रहा हूं। इस तरह विचार करते हुए अपने आप को शारीरिक व मानसिक रूप से पूर्ण स्वस्थ अनुभव करें।
अंत में दोनों हाथों को पूर्ण स्वस्थ व शक्तिशाली अनुभव करते हुए ,दोनों हाथों को आपस में रगड़े व गर्म हथेलियों को आंख पर रखकर धीरे-धीरे आंखों को खोलें। यह सब आसन और योगनिद्रा की संक्षिप्त विधि है। यदि किसी को नींद ना आती हो तो सोने से पहले शवासन ,योगनिद्रा करें।
योग निद्रा के लाभ
यदि किसी को नींद नहीं आती है तो सोने से पहले योगनिद्रा करने से नींद अच्छी आने लगती है।
यदि किसी को बुरे स्वप्न आते हैं, तो वह योगनिद्रा के समय ओमकार का जाप करते हुए उल्टी गिनती गिनना आरंभ कर दे। उसे गहरी नींद आने लगेगी और बुरे सपनों से छुटकारा मिल जाएगा।
रोगियों को योग निद्रा नियमित रूप से करना चाहिए
किसी भी प्रकार की दुर्बलता, थकान व नकारात्मक विचार है।योगनिद्रा इसके करने से समस्त प्रकार के नकारात्मक विचार दूर हो जाते हैं। और सकारात्मक चिंतन होने लगता है।
योगनिद्रा से शरीर, मन, मस्तिष्क एवं आत्मा को पूर्ण विश्राम मिलता है शक्ति उत्साह व आनंद मिलता है।
योगनिद्रा करते हुए बीच-बीच में थोड़े ही समय में शरीर की थकान दूर हो जाती है व शरीर में एक नई ऊर्जा का संचार हो जाता है।
योगनिद्रा करने से समस्त प्रकार के शारीरिक व मानसिक विकारों का नाश हो जाता है ।एक स्वस्थ जीवन शारीरिक, मानसिक संपूर्ण स्वास्थ्य योगनिद्रा के द्वारा मिलता है। हमें इसको अपने दैनिक जीवन में अपनाकर योगनिद्रा के द्वारा समस्त प्रकार के रोगों से मुक्ति प्राप्त करना चाहिए।
योगनिद्रा कब करना चाहिए
योग निद्रा सुबह के समय या शाम के समय करने से अत्यंत लाभ होता है।