एक समय की बात है। एक बरगद के पेड़ पर कौआ दम्पत्ति प्रेमपूर्वक रहते थे। उसी पेड़ के कोटर में एक नाग रहता था। कौवा जब अंडा देती तो नाग उन्हें चट कर जाता। अपनी समस्या उन्होंने अपने मित्र गीदड़ से बताई।

गीदड़ ने विचार कर उन्हें एक युक्ति बताई। कहा, “मित्र, चिंतित मत होओ। जैसा कहता हूं वैसा ही करो। महल से एक हार चुरा लाओ और कोटर में डाल दो। ध्यान रखना हार चुराते हुए तुम्हें राजसेवक अवश्य देखें।”

कौवी महल पर मंडराने लगी। रानी तालाब में सखियों के साथ नहा रही थी। उनका हीरे का हार कपड़ों के पास रखा था। कौवी उसे चोंच में लेकर उड़ चली। रानी ने सेवकों को पुकारा, “देखो, देखो! कौआ मेरा हार ले जा रहा है। जल्दी, उसके पीछे दौड़ो।” पहरेदारों ने देखा और अपने शस्त्रों के साथ उसके पीछे दौड़ चले।

कौवी उड़ती हुई बरगद के पेड़ के पास पहुंची और कोटर में हार को गिराकर स्वयं पेड़ पर बैठ गई। सेवकों ने उसे ऐसा करते हुए देख लिया था। हार निकालने के लिए वे अपना भाला बार-बार कोटर में डालने लगे। नाग बेचारा भाले के वार से घायल होकर बाहर भागा तो सेवकों ने उसे मार डाला। सेवक हार लेकर चले गए। कौआ दम्पत्ति खुशी-खुशी रहने लगे।

शिक्षा (Panchatantra Story): युक्ति बिगड़ी बात भी बना देती है।

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