मैं तो वही खिलौना लूँगा – सियारामशरण गुप्त
‘मैं तो वही खिलौना लूँगा’ मचल गया दीना का लाल खेल रहा था जिसको लेकर राजकुमार उछाल–उछाल। व्यथित हो उठी...
‘मैं तो वही खिलौना लूँगा’ मचल गया दीना का लाल खेल रहा था जिसको लेकर राजकुमार उछाल–उछाल। व्यथित हो उठी...
बैठ पेड़ पर मछली सोचे अब क्या होगा राम, नज़ला हुआ मगर मामा को मुझको हुआ जु.काम। छाँय छाँय कर...
पापा याद बहुत आता है मुझको दादी वाला गाँव, दिन दिन भर घूमना खेत में वह भी बिल्कुल नंगे पाँव।...
उठो धरा के अमर सपूतो पुनः नया निर्माण करो। जन जन के जीवन में फिर से नई स्फूर्ति, नव प्राण...
मुन्ने के सपने में आया लाल बेबी हाथी बहुत बहुत उसके मन भाया लाल बेबी हाथी तीजे तल्ले पर रहता...
गरिमा का था एक मेमना एक मेमना एक मेमना गरिमा का था एक मेमना शुद्ध श्वेत था रंग जहाँ जहाँ...
मानसून काफूर हो गया रावण का भी दहन हो गया ठंडी–ठंडी हवा चली है मतवाली अब गली–गली है पापा, मम्मी,...
हारे थके मुसाफिर के चरणों को धोकर पी लेने से मैंने अक्सर यह देखा है मेरी थकन उतर जाती है।...
नींद बड़ी गहरी थी, झटके से टूट गई तुमने पुकारा, या द्वार आकर लौट गए। बार बार आई मैं, द्वार...
पक्षी और बादल ये भगवान के डाकिये हैं, जो एक महादेश से दूसरे महादेश को जाते हैं। हम तो समझ...