फूल और मिट्टी – वीरबाला भावसार
मिट्टी को देख फूल हँस पड़ा मस्ती से लहरा कर पंखुरियाँ बोला वह मिट्टी से– उफ मिट्टी! पैरों के नीचे...
मिट्टी को देख फूल हँस पड़ा मस्ती से लहरा कर पंखुरियाँ बोला वह मिट्टी से– उफ मिट्टी! पैरों के नीचे...
है मन का तीर्थ बहुत गहरा। हंसना‚ गाना‚ होना उदास‚ ये मापक हैं न कभी मन की गहराई के। इनके...
रुक रुक चले बयार, कि झुक झुक जाए बादल छाँह कोई मन सावन घेरा रे, कोई मन सावन घेरा रे...
नींद बड़ी गहरी थी, झटके से टूट गई तुमने पुकारा, या द्वार आकर लौट गए। बार बार आई मैं, द्वार...