पंचवटी – मैथिली शरण गुप्त
चारु चंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में, स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बरतल में।...
चारु चंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में, स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बरतल में।...
छोड़ घोंसला बाहर आया‚ देखी डालें‚ देखे पात‚ और सुनी जो पत्ते हिलमिल‚ करते हैं आपस में बात; माँँ‚ क्या...
देख कर बाधा विविध बहु विघ्न घबराते नहीं रह भरोसे भाग के दुख भोग पछताते नहीं काम कितना ही कठिन...
ज्ञान के सामने धन की महत्वहीनता सुदाम पत्नी को बताते हैंः सिच्छक हौं सिगरे जग के तिय‚ ताको कहां अब...