कुम्हलाये हैं फूल – ठाकुर गोपाल शरण सिंह
कुम्हलाये हैं फूल अभी–अभी तो खिल आये थे कुछ ही विकसित हो पाये थे वायु कहां से आकर इन पर...
कुम्हलाये हैं फूल अभी–अभी तो खिल आये थे कुछ ही विकसित हो पाये थे वायु कहां से आकर इन पर...
ज्ञान के सामने धन की महत्वहीनता सुदाम पत्नी को बताते हैंः सिच्छक हौं सिगरे जग के तिय‚ ताको कहां अब...