बिल्ली मौसी चलीं बनारस – सूर्य कुमार पांडेय
बिल्ली मौसी चलीं बनारस लेकर झोला डंडा गंगा तट पर मिला उसे तब मोटा चूहा पंडा चूहा बोला बिल्ली मौसी...
बिल्ली मौसी चलीं बनारस लेकर झोला डंडा गंगा तट पर मिला उसे तब मोटा चूहा पंडा चूहा बोला बिल्ली मौसी...
सूट पहन कर हाथी दादा चौराहे पर आए, रिक्शा एक इशारा कर के वे तुरंत रुकवाए। चला रही थी हाँफ–हाँफ...
ज्ञान के सामने धन की महत्वहीनता सुदाम पत्नी को बताते हैंः सिच्छक हौं सिगरे जग के तिय‚ ताको कहां अब...
बहुत तेज गर्मी है आजा सुस्ता लें कुछ पीपल की छैयां में पसीना सुख लें कुछ थका हुआ लगता है...
काका वेटिंग रूम में, फँसे देहरा–दून नींद न आई रात भर, मच्छर चूसें खून मच्छर चूसें खून, देह घायल कर...
आसमान को हरा बना दें धरती नीली, पेड़ बैंगनी गाड़ी ऊपर, नीचे लाला फिर क्या होगा – गड़बड़ झाला! कोयल...
कुछ की काली कुछ की भूरी कुछ की होती नीली आँख जिसके मन में दुख होता है उसकी होती गीली...
मैं भारत गुण–गौरव गाता, श्रद्धा से उसके कण–कण को, उन्नत माथ नवाता। प्र्रथम स्वप्न–सा आदि पुरातन, नव आशाओं से नवीनतम,...
पास हुए हम, हुर्रे हुर्रे! दूर हुए गम, हुर्रे हुर्रे! रोज नियम से किया परीश्रम और खपाया भेजा, धीरे–धीरे, थोड़ा–थोड़ा...
हम बच्चे हैं छोटे–छोटे, काम हमारे बड़े–बड़े। आसमान का चाँद हमी ने थाली बीच उतारा है, आसमान का सतरंगा वह...
‘मैं तो वही खिलौना लूँगा’ मचल गया दीना का लाल खेल रहा था जिसको लेकर राजकुमार उछाल–उछाल। व्यथित हो उठी...
बैठ पेड़ पर मछली सोचे अब क्या होगा राम, नज़ला हुआ मगर मामा को मुझको हुआ जु.काम। छाँय छाँय कर...