गीत का पहला चरण हूं – इंदिरा गौड़

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गुनगुनाओ तो सही तुम तनिक मुझको
मैं तुम्हारे गीत का पहला चरण हूं।

जब तलक अनुभूत सच की
शब्द यात्रा है अधूरी
झेलनी है प्राण को
गंतव्य से तब तलक दूरी
समझ पाया आज तक कोई न जिसको
उस अजानी सी व्यथा का व्याकरण हूं।

अधिकतर संबंध ऐसे
राह में जो छोड़ देते
प्राण तक गहरे न उतरें
सतह पर दम तोड़ देते
बहुत कम होता सही अनुवाद मेरा
प्रश्न पत्रों का अदेखा अवतरण हूं।

कुछ गिनी सांसें मिली हैं
एक भी घट–बढ़ न पाती
जन्म के संग मृत्यु आई
हर समय सांकल बजाती
चल रहा है सृष्टि में हर पल निरंतर
जो कभी रुकता नहीं ऐसा क्षरण हूं।

जन्म से ले मृत्यु तक का
सफर जाने कब कटेगा
रात के अंतिम प्रहर में
कुछ कुहासा तो कटेगा
देव–मंदिर में जले मन आरती–सा
प्रार्थना से पूर्व का वातावरण हूं।

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