जब जब सिर उठाया – सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
जब-जब सिर उठाया
अपनी चौखट से टकराया।
मस्तक पर लगी चोट,
मन में उठी कचोट,
अपनी ही भूल पर मैं,
बार-बार पछताया।
जब-जब सिर उठाया
अपनी चौखट से टकराया।
दरवाजे घट गए या
मैं ही बडा हो गया,
दर्द के क्षणों में कुछ
समझ नहीं पाया।
जब-जब सिर उठाया
अपनी चौखट से टकराया।
“शीश झुका आओ” बोला
बाहर का आसमान,
“शीश झुका आओ” बोली
भीतर की दीवारें,
दोनों ने ही मुझे
छोटा करना चाहा,
बुरा किया मैंने जो
यह घर बनाया।
जब-जब सिर उठाया
अपनी चौखट से टकराया।