नदी सा बहता हुआ दिन – सत्यनारायण

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कहां ढूंढें नदी सा बहता हुआ दिन

वह गगन भर धूप‚ सेनुर और सोना
धार का दरपन‚ भंवर का फूल होना

हां किनारों से कथा कहता हुआ दिन।

सूर्य का हर रोज नंगे पांव चलना
घाटियों में हवा का कपड़े बदलना

ओस‚ कोहरा‚ घाम सब सहता हुआ दिन।

कौन देगा मोरपंखों से लिखे छन
रेतियों पर सीप शंखों से लिखे छन

आज कच्ची भीत सा ढहता हुआ दिन।

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