रोते रोते बहल गई कैसे – बेकल उत्साही
रोते रोते बहल गई कैसे
रुत अचानक बदल गई कैसे
मैंने घर फूँका था पड़ौसी का
झोपड़ी मेरी जल गई कैसे
जिस पे नीयत लगी हो मौसम की
सूखी टहनी वो फल गई कैसे
बात जो मुद्दतों से दिल में थी
आज मुँह से निकल गई कैसे
जिन्दगी पर बड़ा भरोसा था
जिन्दगी चाल चल गई कैसे
दोस्ती है चटान वादों की
मोम बन कर पिघल गई कैसे
चढ़ते सूरज को पूजता ही रहा
फिर जवानी यह ढल गई कैसे
आप रसिया हैं गीत के बेकल
आप के घर गज़ल गई कैसे!