सोने के हिरन – कन्हैया लाल वाजपेयी
आधा जीवन जब बीत गया
बनवासी सा गाते रोते
तब पता चला इस दुनियां में
सोने के हिरन नहीं होते।
संबंध सभी ने तोड़ लिये
चिंता ने कभी नहीं छोड़े
सब हाथ जोड़ कर चले गये
पीड़ा ने हाथ नहीं जोड़े।
सूनी घाटी में अपनी ही
प्रतिध्वनियों ने यों छला हमे
हम समझ गये पाषाणों के
वाणी मन नयन नहीं होते।
मंदिर मंदिर भटके लेकर
खंडित विश्वासों के टुकड़े
उसने ही हाथ जलाये जिस
प्रतिमा के चरण युगल पकड़े।
जग जो कहना चाहे कह ले
अविरल जल धारा बह ले
पर जले हुए इन हाथों से
अब हमसे हवन नहीं होते।