उम्र बढ़ने पर – महेश चंद्र गुप्त ‘खलिश’

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उम्र बढ़ने पर हमें कुछ यूँ इशारा हो गया‚
हम सफ़र इस ज़िंदगी का और प्यारा हो गया।

क्या हुआ जो गाल पर पड़ने लगी हैं झुर्रियाँ‚
हर कदम पर साथ अब उनका गवारा हो गया।

जुल्फ़ व रुखसार से बढ़ के भी कोई हुस्न है‚
दिल हसीं उनका है ये हमको नज़ारा हो गया।

चुक गई है अब जवानी‚ लड़खड़ाते पैर हैं‚
एक दूजे का मग़र हमको सहारा हो गया।

है खुदा से इल्तज़ा कि साथ उनका ही मिले‚
ग़र खलिश दुनियाँ में फिर आना हमारा हो गया।

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