वैदिक हवन-यज्ञ विधि, Vedic Havan Yagy Vidhi

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सर्वदेव वैदिक हवन विधि – सर्वप्रथम यजमान को पूर्व या उत्तराभिमुख बैठाकर सामने चौक बनाकर उसके ऊपर गौरी-गणेश, नवग्रह , कलश, सर्वतोभद्र, क्षेत्रपाल व प्रधान वेदी और अन्य वेदी का निर्माण कर स्थापित करे । अब

पवित्रीकरण: सबसे पहले यजमान अपने ऊपर और सभी सामाग्री पर पवित्र जल छिढ़के आचार्य मंत्र पढ़े –

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।

यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ॥

आचमन: निम्न मंत्र पढ़ते हुए तीन बार आचमन करें –

‘ॐ केशवाय नम:, ॐ नारायणाय नम:, ॐ माधवाय नम: ।

फिर यह मंत्र बोलते हुए हाथ धो लें – ॐ हृषीकेशाय नम: ।

तिलक : यजमान को तिलक करें –

ॐ चंदनस्य महत्पुण्यं पवित्रं पापनाशनम ।

आपदां हरते नित्यं लक्ष्मी: तिष्ठति सर्वदा ॥

रक्षासूत्र (मौली) बंधन : हाथ में मौली बाँध लें –

येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल: ।

तेन त्वां प्रतिबंध्नामि रक्षे मा चल मा चल ॥

दीप पूजन : दीपक जला लें –

दीपो ज्योति: परं ब्रम्ह दीपो ज्योति: जनार्दन: ।

दीपो हरतु में पापं दीपज्योति: नमोऽस्तु ते ॥

अब गौरी- गणेश सहित सभी वेदी का क्रमशः प्राणप्रतिष्ठा, आवाहन-स्थापन व पूजन लाब्धोपच्चार विधि से पूर्ण करावें तत्पश्चात हवं वेदी का निर्माण कर कुशकंडिका और अग्निस्थापन करें। इसके बाद हवन सामग्री एकत्र कर हवन प्रारंभ करें –

सर्वदेव वैदिक हवन विधि
अथ सर्वदेव वैदिक हवन विधि:

ततः आवाहितानां, देवनाम्, हवनम्।। (नाममंत्रेण वा वेदोक्तमंत्रेण) तत्र नाममंत्रा:।।

यहाँ केवल नाम हवन दिया जा रहा है जहाँ ॐ न लिखा हो तो मन्त्र के आरंभ में ॐ तथा अंत में इदं न मम। अर्थात् हमारा कुछ नहीं है जो भी है वह आपका है कहना या बोलना है।
सर्वदेव वैदिक हवन विधि

ॐ गणानांत्वा गणपति ँ हवामहे प्रियाणान्त्वा प्रियपति ँ हवामहे निधीनांत्वा निधिपति ँ हवामहे व्वसोमम। आहमजानि गर्भधमात्वमजासि गर्भधम् स्वाहा। इदं गणपतये न मम।

ॐ अम्बेऽअम्बिकेऽबालिके न मानयति कश्चन।

ससस्त्यश्वक: सुभद्रिकां का पीलवासिनीम् स्वाहा। इदमम्बिकायै न मम।

॥ अथ नवग्रहनाम हवनम्॥

ॐ सूर्याय स्वाहा। इदं सूर्याय न मम ।।1।। ॐ चन्द्रमसे स्वाहा। इदं चन्द्रमसे न मम ।।2।।

ॐ भौमाय स्वाहा। इदं भौमाय न मम ।।3।।ॐ बुधाय स्वाहा। इदं बुधाय न मम ।।4।।

ॐ बृहस्पतये स्वाहा। इदं बृहस्पतये न मम ।।5।। ॐ शुक्राय स्वाहा। इदं शुक्राय न मम ।।6।।

ॐ शनिश्चराय स्वाहा। इदं शनिश्चराय न मम ।।7।। ॐ राहवे स्वाहा। इदं राहवे न मम ।।8।।

ॐ केतवे स्वाहा। इदं केतवे न मम ।।9।।

अथ पञ्चलोकपाल होमः

ॐ गणपतये स्वाहा।। इदं गणपतये न मम ।।1।। ॐ अम्बिकाय स्वाहा। इदं अम्बिकायै न मम ।।2।। ॐ वायवे स्वाहा। इदं वायवे न मम ।।3।। ॐ आकाशाय स्वाहा। इदं आकाशाय न मम ।।4।। ॐ अश्विनीभ्यां स्वाहा। इदमश्विनीभ्यां न मम ।।5।। ॐ वास्तोष्पतये स्वाहा। इदं वास्तोष्पतये न मम ।।6।। ॐ क्षेत्रपालाय स्वाहा। इदं क्षेत्रपालाय न मम ।।7।।

अथ दशदिक्पाल होमः

ॐ इन्द्राय स्वाहा। इदमिन्द्राय न मम ।।।।। ॐ अग्नये स्वाहा। इदमग्नये न मम ।।2।। ॐ यमाय स्वाहा। इदं यमाय न मम ।।3।। ॐ नैऋत्ये स्वाहा। इदं नैर्ऋत्ये न मम ।।4।। ॐ वरुणाय स्वाहा। इदं वरुणाय न मम ।।5।। ॐ वायवे स्वाहा। इदं वायवे न मम ।।6।। ॐ सोमाय स्वाहा। इदं सोमाय न मम ।।7।। ॐ ईशानाय स्वाहा। इदमीशानाय न मम ।।8।। ॐ ब्रह्मणे स्वाहा। इदं ब्रह्मणे न मम ।।9।। ॐ अनन्ताय स्वाहा। इदं अनन्ताय न मम ।।10।।

॥ अथाधिदेवता हवनम् ॥

ॐ ईश्वराय स्वाहा। इदमीश्वराय न मम ।।1।। ॐ उमायै स्वाहा। इदं उमायै न मम ।।2।।

ॐ स्कंदाय स्वाहा। इदं स्कन्दाय न मम ।।3।। ॐ विष्णवे स्वाहा। इदं विष्णवे न मम ।।4।।

ॐ इन्द्राय स्वाहा। इदमिन्द्राय न मम ।।5।। ॐ ब्रह्मणे स्वाहा। इदं ब्रह्मणे न मम ।।6।।

ॐ यमाय स्वाहा। इदं यमाय न मम ।।7।। ॐ कालाय स्वाहा। इदं कालाय न मम ।।8।।

ॐ चित्रगुप्ताय स्वाहा। इदं चित्रगुप्ताय न मम ।।9।।

अथ प्रत्यधिदेवता होम

ॐ अग्नये स्वाहा। इदमग्नये न मम ।।1।। ॐ अद्भय स्वाहा। इदमद्भयो न मम ।।2।।

ॐ पृथिव्यै स्वाहा। इदं पृथिव्यै न मम ।।3।। ॐ विष्णवे स्वाहा। इदं विष्णवे न मम ।।4।।

ॐ इन्द्राय स्वाहा। इदमिद्राय न मम ।।5।। ॐ इद्राण्यै स्वाहा। इदमिन्द्राण्यै न मम ।।6।।

ॐ प्रजापतये स्वाहा। इदं प्रजापये न मम ।।7।। ॐ सर्पेभ्यः स्वाहा। इदं सर्पेभ्यो न मम ।।8।।

ॐ ब्रह्मणे स्वाहा। इदं ब्रह्मणे न मम ।।9।।

॥ अथ पञ्चोङ्काराणां हवनम्॥

ॐ ब्रह्मणे स्वाहा। इदं ब्रह्मणो नमम।।1।। ॐ विष्णवे स्वाहा। इदं विष्णवे न मम ।।2।।

ॐ गायत्र्यै स्वाहा। इदं गायत्र्यै न मम ।।3।। ॐ पृथिव्यै स्वाहा। इदं पृथिव्यै न मम ।।4।।

ॐ गोवर्धनाय स्वाहा। इदं गोवर्धनाय न मम।।5।।

॥ अथ षोडशमातृका नाम् हवनम् ॥

ॐ गणपतये स्वाहा। इद गणपतये न मम ।।1।। ॐ गोर्ये स्वाहा। इदं गौर्ये न मम ।।2।।

ॐ पद्मायै स्वाहा। इदं पद्मायै न मम ।।3।। ॐ शच्यै स्वाहा। इदं शच्यै न मम ।।4।।

ॐ मेधायै स्वाहा। इदं मेघाय न मम ।।5।। ॐ सावित्र्यै स्वाहा। इदं सावित्र्य न मम ।।6।।

ॐ विजयायै स्वाहा। इदं विजयायै न मम ।।7।। ॐ जयायै स्वाहा। इदं जयायै न मम ।।8।।

ॐ देवसेनायै स्वाहा। इदं देव सेनायै न मम ।।9।।ॐ स्वधायै स्वाहा। इदं स्वधायै न मम ।।10।।

ॐ स्वाहायै स्वाहा। इदं स्वाहाय न मम ।।1।। ॐ मातृभ्यः स्वाहा। इदं मातृभ्यो न मम ।।।2।।

ॐ लोकमातृभ्यः स्वाहा। इदं लोकमातृभ्यो न मम ।।13।। ॐ धृत्यै स्वाहा। इदं धृत्यै न मम ।।।4।।

ॐ पुष्ट्यै स्वाहा। इदं पुष्ट्यै न मम ।।।5।। ॐ तुष्ट्यै स्वाहा। इदं तुष्ट्यै न मम ।।।6।।

ॐ आत्मनः कुलदेवतायै स्वाहा। इदं आम्नः कुलदेवतायै न मम।।17।।

॥ अथ सप्तघृतमातृकानाम् हवनम् ॥

ॐ श्रियै स्वाहा। इदं श्रियै न मम।।1।। ॐ लक्ष्म्यै स्वाहा। इदं लक्ष्म्यै न मम ।।2।।

ॐ घृत्यै स्वाहा। इदं घृत्यै न मम ।।3।। ॐ मेधायै स्वाहा। इदं मेधायै न मम ।।4।।

ॐ स्वाहायै स्वाहा। इदं स्वाहायै न मम ।।5।। ॐ प्रज्ञायै स्वाहा। इदं प्रज्ञायै न मम ।।6।।

ॐ सरस्वत्यै स्वाहा। इदं सरस्वत्यै न मम।।7।।

।। अथ ६४ योगिनी नाम हवनम् ।।

ॐ महाकाल्यै नमः स्वाहा। इदं महाकाल्यै न मम ।।

ॐ महालक्ष्म्यै नमः स्वाहा। इदं महालक्ष्म्यै न मम ।।

ॐ महा सरस्वत्यै नमः स्वाहा। इदं महा सरस्वत्यै न मम ।।

१.ॐ दिव्ययोगायै नमः स्वाहा ॥२. ॐ महायोगायै नमः स्वाहा ॥३. ॐ सिद्धयोगायै नमः स्वाहा ॥ ४. ॐ महेश्वर्यै नमः स्वाहा ॥५. ॐ पिशाचिन्यै नमः स्वाहा ॥६. ॐ डाकिन्यै नमः स्वाहा ॥७.ॐ कालरात्र्यै नमः स्वाहा ॥८.ॐ निशाचर्यै नमः स्वाहा ॥९.ॐ कंकाल्यै नमः स्वाहा ॥१०. ॐ रौद्रवेताल्यै नमः स्वाहा ॥११.ॐ हुँकार्यै नमः स्वाहा ॥१२. ॐ ऊर्ध्वकेश्यै नमः स्वाहा ॥१३.ॐ विरुपाक्ष्यै नमः स्वाहा ॥१४.ॐ शुष्काङ्ग्यै नमः स्वाहा ॥१५. ॐ नरभोजिन्यै नमः स्वाहा ॥१६. ॐ फट्कार्यै नमः स्वाहा ॥१७.ॐ वीरभद्रायै नमः स्वाहा ॥१८. ॐ धूम्राक्ष्यै नमः स्वाहा ॥१९.ॐ कलहप्रियायै नमः स्वाहा ॥२०. ॐ रक्ताक्ष्यै नमः स्वाहा ॥२१.ॐ राक्षस्यै नमः स्वाहा ॥२२.ॐ घोरायै नमः स्वाहा ॥२३.ॐ विश्वरुपायै नमः स्वाहा ॥२४. ॐ भयङ्कर्यै नमः स्वाहा ॥२५. ॐ कामाक्ष्यै नमः स्वाहा ॥२६. ॐ उग्रचामुण्डायै नमः स्वाहा ॥२७.ॐ भीषणायै नमः स्वाहा ॥२८. ॐ त्रिपुरान्तकायै नमः स्वाहा ॥२९. ॐ वीरकौमारिकायै नमः स्वाहा ॥३०.ॐ चण्ड्यै नमः स्वाहा ॥३१.ॐ वाराह्यै नमः स्वाहा ॥३२. ॐ मुण्डधारिण्यै नमः स्वाहा ॥३३. ॐ भैरव्यै नमः स्वाहा ॥३४.ॐ हस्तिन्यै नमः स्वाहा॥ ३५. ॐ क्रोधदुर्मुख्यै नमः स्वाहा ॥३६.ॐ प्रेतवाहिन्यै नमः स्वाहा ॥३७.ॐ खट्वाङ्गदीर्घलम्बोष्ठ्यै नमः स्वाहा ॥ ३८.ॐ मालत्यै नमः स्वाहा ॥३९.ॐ मन्त्रयोगिन्यै नमः स्वाहा ॥४०. ॐ अस्थिन्यै नमः स्वाहा ॥४१. ॐ चक्रिण्यै नमः स्वाहा ॥४२.ॐ ग्राहायै नमः स्वाहा ॥४३.ॐ भुवनेश्वर्यै नमः स्वाहा ॥४४.ॐ कण्टक्यै नमः स्वाहा ॥४५. ॐ कारक्यै नमः स्वाहा ॥४६. ॐ शुभ्रायै नमः स्वाहा ॥४७.ॐ क्रियायै नमः स्वाहा ॥४८.ॐ दूत्यै नमः स्वाहा ॥४९. ॐ करालिन्यै नमः स्वाहा ॥५०. ॐ शङ्खिन्यै नमः स्वाहा ॥५१. ॐ पद्मिन्यै नमः स्वाहा ॥५२. ॐ क्षीरायै नमः स्वाहा ॥५३. ॐ असन्धायै नमः स्वाहा ॥५४. ॐ प्रहारिण्यै नमः स्वाहा ॥ ५५.ॐ लक्ष्म्यै नमः स्वाहा ॥५६.ॐ कामुक्यै नमः स्वाहा ॥५७. ॐ लोलायै नमः स्वाहा ॥५८.ॐ काकदृष्ट्यै नमः स्वाहा ॥५९. ॐ अधोमुख्यै नमः स्वाहा ॥६०. ॐ धूर्जट्यै नमः स्वाहा ॥ ६१.ॐ मालिन्यै नमः स्वाहा ॥६२. ॐ घोरायै नमः स्वाहा ॥६३. ॐ कपाल्यै नमः स्वाहा ॥६४. ॐ विषभोजिन्यै नमः स्वाहा ॥

सर्वदेव वैदिक हवन विधि

॥ अथ सर्वतोभद्रमण्डल देवतानां होमः ॥

ॐ ब्रह्मणे स्वाहा। इदं ब्रह्मणे न मम।।1।। ॐ सोमाय स्वाहा।। इदं सोमाय न मम ।।2।।

ॐ ईशानाय स्वाहा। इदमीशानाय न मम ।।3।। ॐ इन्द्राय स्वाहा।। इदमिन्द्राय न मम ।।4।।

ॐ अग्नये स्वाहा। इदंमानये न मम ।।5।। ॐ यमाय स्वाहा। इदं यमाय न मम ।।6।।

ॐ निर्ऋतये स्वाहा। इदं नैर्ऋत्ये न मम ।।7।। ॐ वरुणाय स्वाहा। इदं वरुणाय न मम ।।8।।

ॐ वायवे स्वाहा।। इदं वायवे न मम ।।9।। ॐ अष्टवसुभ्यः स्वाहा। इदं अष्टवसुभ्यो न मम ।।10।।

ॐ एकादशरुद्रेभ्यः स्वाहा। इदं एकादशरुद्रभ्यो न मम ।।11।।

ॐ द्वादशादित्येभ्यः स्वाहा। इदं द्वादशादित्येभ्यो न मम ।।12।।

ॐ अश्विनीभ्यां स्वाहा। इदमश्विनीभ्यां न मम ।।13।।

ॐ सपैतृकविश्वेभ्योदेवभ्यः स्वाहा:! इदं सपैत्रिक विश्वेभ्योदेवेभ्यो न मम ।।14।।

ॐ सप्तयक्षेभ्य: स्वाहा। इदं सप्तेक्षेभ्यो न मम ।।15।।

ॐ अष्टकुलनागेभ्य: स्वाहा। इदं अष्टकुलनागेभ्यो न मम ।।16।।

ॐ गन्धर्वाप्सरोभ्यः स्वाहा। इदं गन्धर्याप्सरोभ्यो न मम ।।17।।

ॐ स्कन्दाय स्वाह। इदं स्कन्दाय न मम ।।18।। ॐ वृषभाय स्वाहा। इदं वृषभाय न मम ।।।9।।

ॐ शूलायः स्वाहा। इदं शूलाय न मम ।।20।। ॐ महाकालाय स्वाहा। इदं महाकालाय न मम ।।21।।

ॐ दक्षादि सप्तगणेभ्यः स्वाहा। इदं दक्षादिसप्तगणेभ्यो न मम ।।22।।

ॐ दुर्गायै स्वाहा। इदं दुर्गायै न मम ।।23।। ॐ विष्णवे स्वाहा। इदं विष्णवे न मम ।।24।।

ॐ स्वधायै स्वाहा। इदं स्वधायै न मम ।।25।। ॐ मृत्युरोगेभ्यः स्वाहा। इदं मृत्युरोगेभ्यो न मम ।।26।।

ॐ गणपतये स्वाहा इदं गणपतये न मम ।।27।। ॐ अद्भयः स्वाहा। इदंमद्भय न मम ।।28।।

ॐ मरुद्भयः स्वाहा। इदं मरुद्भयो न मम ।।29।। ॐ पृथिव्यै स्वाहा।। इदं पृथिव्यै न मम ।।30।।

ॐ गङ्गादिनदीभ्यः स्वाहा। इदं गंगादिनदीभ्यो न मम ।।31।।

ॐ सप्तसागरेभ्यः स्वाहा। इदं सप्तसागरेभ्यो न मम ।।32।।

ॐ मेरवे स्वाहा। इदं मेरवे न मम ।।33।। ॐ गदायै स्वाहा। इदं गदायै न मम ।।34।।

ॐ त्रिशूलाय स्वाहा। इदं त्रिशूलाय न मम ।।35।। ॐ वज्राय स्वाहा। इदं वज्राय न मम ।।36।।

ॐ शक्तये स्वाहा।। इदं शक्तये न मम ।।37।। ॐ दण्डाय स्वाहा। इदं दण्डाय न मम ।।38।।

ॐ खड्गाय स्वाहा। इदं खड्गाय न मम ।।39।। ॐ पाशाय स्वाहा। इदं पाशाय न मम ।।40।।

ॐ अंकुशाय स्वाहा। इदं अंकुशाय न मम ।।41।। ॐ गौतमाय स्वाहा। इदं गौतमाय न मम ।।42।।

ॐ भरद्वाजाय स्वाहा। इदं भरद्वाजाय न मम ।।43।। ॐ विश्वामित्राय स्वाहा। इदं विश्वामित्राय न मम ।।44।।

ॐ कश्यपाय स्वाहा। इदं कश्यपाय न मम ।।45।। ॐ वशिष्ठाय स्वाहा। इदं वशिष्ठाय न मम ।।47।।

ॐ अत्रये स्वाहा। इदमत्रये न मम ।।48।। ॐ ऐन्द्रयै स्वाहा। इदं ऐन्द्रयै न मम ।।50।।

ॐ कौमार्यै स्वाहा। इदं कौमार्यै न मम ।।51।। ॐ ब्राह्मयै स्वाहा। इदं ब्राह्मयै न मम ।।52।।

ॐ वाराह्यै स्वाहा। इदं वाराह्यै न मम ।।53।। ॐ चामुण्डायै स्वाहा। इदं चामुण्डायै न मम ।।54।।

ॐ वैष्णव्यै स्वाहा। इदं वैष्णव्यै न मम ।।55।। ॐ माहेश्वर्यै स्वाहा। इदं माहेश्वर्यै न मम ।।56।।

ॐ वैनायक्यै स्वाहा। इदं वैनायक्यै न मम ।।57।।

अथ क्षेत्रपाल देवतानां हवनम्॥

क्षेपापालाय स्वाहा ।। अजराय स्वाहा ।। व्यापकाय स्वाहा ।। इन्द्रचौराय स्वाहा ।। इन्द्रमूर्तये स्वाहा ।।

उक्षाय स्वाहा ।। कूष्माण्डाय स्वाहा ।। वरुणाय स्वाहा ।। बटुकाय स्वाहा ।। विमुक्ताय स्वाहा ।।

लिप्तकायाय स्वाहा ।। लीलाकाय स्वाहा ।। एकदंष्ट्राय स्वाहा ।। ऐरावताय स्वाहा ।।

ओषधिधाय स्वाहा ।। बन्धनाय स्वाहा ।। दिव्यकाय स्वाहा ।। कम्बलाय स्वाहा ।।

भीषणाय स्वाहा ।। गदयाय स्वाहा ।। घण्टाय स्वाहा ।। व्यालाय स्वाहा ।।

आणवे स्वाहा ।। चन्द्रवारुणाय स्वाहा ।। पटाटोपाय स्वाहा ।। जटिलाय स्वाहा ।।

क्रतवे स्वाहा ।। घण्टेश्वराय स्वाहा ।। विटङ्काय स्वाहा ।। मणिमानाय स्वाहा ।।

गणबन्धवे स्वाहा ।। डामराय स्वाहा ।। दुण्डिकर्णाय स्वाहा ।। स्थविराय स्वाहा ।।

दन्तुराय स्वाहा ।। नागकर्णाय स्वाहा ।। महाबलाय स्वाहा ।। फेत्काराय स्वाहा ।।

चीकराय स्वाहा ।। सिंहाय स्वाहा ।। मृगाय स्वाहा ।। यक्षाय स्वाहा ।। मेघावाहनाय स्वाहा ।।

तीक्ष्णोष्ठाय स्वाहा ।। अनलाय स्वाहा ।। शुक्ल तुण्डाय स्वाहा ।। सुधालायाय स्वाहा ।।

बर्बरकाय स्वाहा ।। नवनाय स्वाहा ।। पावनाय स्वाहा ।।

नक्षत्रः आहुति

1. अश्विन्यै स्वाहा 2. भरण्यै स्वाहा 3. कृत्तिकायै स्वाहा 4. रोहिण्यै स्वाहा 5. मृगशीर्षे स्वाहा 6. आर्द्रायै स्वाहा 7. पुनर्वसवे स्वाहा 8. पुष्याय स्वाहा 9. आश्लेषाये स्वाहा 10. मेघायै स्वाहा 11. पूर्वा फालगुन्यै स्वाहा 12. उत्तरा फालगुन्यै स्वाहा 13. हस्ताय स्वाहा 14. चित्राय स्वाहा 15. स्वात्यै स्वाहा 16. विशाखायै स्वाहा 17. अनुराधायै स्वाहा 18. ज्येष्ठाय स्वाहा 19. मूलाय स्वाहा 20. पूर्वा षाढायै स्वाहा 21. उत्तरा षाढायै स्वाहा -22. अभिजिते स्वाहा 23. श्रवणाय स्वाहा 24. धनिष्ठायै स्वाहा 25. शतभिषायै स्वाहा 26. पूर्वा भाद्रपदे स्वाहा 27. उत्तरा भाद्रपदे स्वाहा 28. रेवत्यै स्वाहा।।

अथ योगाः

1. विष्कुम्भाय स्वाहा 2. प्रीत्यै स्वाहा 3. आयुष्मते स्वाहा 4. सौभाग्याय स्वाहा 5. शोभनाय स्वाहा 6. अतिगंडाय स्वाहा 7. सुकर्मणे स्वाहा 8. घृत्यै स्वाहा 9. शूलाय स्वाहा 10. गंडाय स्वाहा 11. वृहदयै स्वाहा 12. ध्रुवाय स्वाहा 13. व्याघाताय स्वाहा 14. हर्षणे स्वाहा 15. वज्राय स्वाहा 16. सिद्धयै स्वाहा 17. व्यतिपाताय स्वाहा 18. वरीयानाय स्वाहा 19. परिघाय स्वाहा 20. शिवाय स्वाहा 21. सिद्धाय स्वाहा 22. साध्याय स्वाहा 23. शुभाय स्वाहा 24. शुक्लाय स्वाहा 25. ब्रह्मणे स्वाहा 26. इन्द्राय स्वाहा 27. वैधृत्यै स्वाहा

सर्वदेव वैदिक हवन विधि

वास्तुहोमः

आचार्य शिख्यादि देवताओं के निम्न नाम मन्त्रों से अग्निकुण्ड में यजमान से आहुति प्रदान करावें-

ॐ शिखिने स्वाहा। ॐ पर्जन्याय स्वाहा। ॐ जयन्ताय स्वाहा। ॐ कुलिशायुधाय स्वाहा । ॐ सूर्याय स्वाहा । ॐ सत्याय स्वाहा। ॐ भृशाय स्वाहा । ॐ आकाशाय स्वाहा । ॐ वायवे स्वाहा। ॐ पूष्णे स्वाहा। ॐ वितथाय स्वाहा। ॐ गृहक्षताय स्वाहा । ॐ यमाय स्वाहा । ॐ गन्धर्वाय स्वाहा । ॐ भृङ्गराजाय स्वाहा । ॐ मृगाय स्वाहा । ॐ पितृभ्य : स्वाहा । ॐ दौवारिकाय स्वाहा । ॐ सुग्रीवाय स्वाहा। ॐ पुष्पदन्ताय स्वाहा । ॐ वरुणाय स्वाहा । ॐ असुराय स्वाहा। ॐ शेषाय स्वाहा । ॐ पापाय स्वाहा । ॐ रोगाय स्वाहा । ॐ अहये स्वाहा । ॐ मुख्याय स्वाहा । ॐ भल्लाटाय स्वाहा । ॐ सोमाय स्वाहा । ॐ सर्पेभ्य: स्वाहा । ॐ अदित्यै स्वाहा। ॐ दित्यै स्वाहा। ॐ अभ्दय : स्वाहा । ॐ सावित्राय स्वाहा । ॐ जयाय स्वाहा । ॐ रुद्राय स्वाहा । ॐ अर्यम्णे स्वाहा । ॐ सवित्रे स्वाहा । ॐ विवस्वते स्वाहा । ॐ विबुधाधिपाय स्वाहा । ॐ मित्राय स्वाहा । ॐ राजयक्ष्मणे स्वाहा । ॐ पृथ्वीधराय स्वाहा । ॐ आपवत्साय स्वाहा। ॐ ब्रह्मणे स्वाहा । ॐ चरक्यै स्वाहा । ॐ विदार्यै स्वाहा । ॐ पूतनायै स्वाहा । ॐ पापराक्षस्यै स्वाहा । ॐ स्कन्दाय स्वाहा । ॐ अर्यम्णे स्वाहा। ॐजृम्भकाय स्वाहा। ॐ पिलिपिच्छाय स्वाहा । ॐ इन्द्राय स्वाहा । ॐ अग्नये स्वाहा । ॐ यमाय स्वाहा । ॐ निऋतये स्वाहा । ॐ वरुणाय स्वाहा। ॐ वायवे स्वाहा । ॐ कुबेराय स्वाहा । ॐ ईशानाय स्वाहा। ॐ ब्रह्मणे स्वाहा। ॐ अनन्ताय स्वाहा।

अथ लिंगतोभद्रमंडलदेवता होमः

असिताङभैरवाय स्वाहा। रुरुभैरवाय स्वाहा।। चण्डभैरवाय स्वाहा।। क्रोधभैरवाय स्वाहा।। उन्मत्तभैरवाय स्वाहा।। कालभैरवाय स्वाहा।। भीषणभैरवाय स्वाहा।। संहारभैरवाय स्वाहा।।

सर्वदेव वैदिक हवन विधि

प्रधान होमः

अब जिस देवता का यज्ञ अनुष्ठान हो रहा हो,उसी देवता मूलमन्त्र या विशेष मन्त्रों से प्रधान होम करें।

पीठदेवताहोम: जिस देवता का यज्ञ हो रहा हो,उसी देवता का पीठहोम करें।

आवरण देवता होम: जिस देवता का यज्ञ हो रहा हो,उसी देवता का आवरण होम करें।

अष्टोत्तरशत या नामहोम: जिस देवता का यज्ञ हो रहा हो,उसी देवता का अष्टोत्तरशत या नामहोम करें।

अब हम हंस मुद्रा से आहुति निम्न मंत्र की देंगे :

ॐ श्रीमन्महागणाधिपतये नमः स्वाहा । ॐ लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः स्वाहा । ॐ उमामहेश्वराभ्यां नमः स्वाहा । ॐ वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नमः स्वाहा । ॐ शचीपुरन्दराभ्यां नमः स्वाहा । ॐ मातृपितृचरणकमलेभ्यो नमः स्वाहा । ॐ इष्टदेवताभ्यो नमः स्वाहा । ॐ कुलदेवताभ्यो नमः स्वाहा । ॐ ग्रामदेवताभ्यो नमः स्वाहा । ॐ वास्तुदेवताभ्यो नमः स्वाहा । ॐ स्थानदेवताभ्यो नमः स्वाहा । ॐ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः स्वाहा । ॐ सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमः स्वाहा । ॐ सिद्धिबुद्धिसहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः स्वाहा ।

अब खीर या मिठाई से आहुति देवें-

ॐ आद्यलक्ष्म्यै नमः स्वाहा । ॐ विद्यालक्ष्म्यै नमः स्वाहा । ॐ सौभाग्यलक्ष्म्यै नमः स्वाहा । ॐ अमृतलक्ष्म्यै नमः स्वाहा । ॐ कामलक्ष्म्यै नमः स्वाहा । ॐ सत्यलक्ष्म्यै नमः स्वाहा । ॐ भोगलक्ष्म्यै नमः स्वाहा । ॐ योगलक्ष्म्यै नमः स्वाहा । ॐ अन्नपूर्णा देव्यै नमः स्वाहा ।

भूरादि नवाहुति :

(1). ॐ भूः स्वाहा, इदमग्नये न मम।

(2). ॐ भूवः स्वाहा, इदं वायवे न मम।

(3). ॐ स्वः स्वाहा, इदं सूर्याय न मम।

(4). ॐ त्वं नो अग्ने वरुणस्य विद्वान् देवस्य हेडो अव यासिसीष्ठा:। यजिष्ठो वह्नितमः शोशुचानो विश्वा द्वेषा ् सि प्रमुमुग्ध्स्मत् स्वाहा॥ इदमग्नयीवरुणाभ्यां न मम।

(5). ॐ स त्वं नो अग्नेऽवमो भवोती, नेदिष्ठो अस्या ऽ उषसो व्युष्टौ। अवयक्ष्व नो वरुण ् रराणो, वीहि मृडीक ् सुहवो न ऽ एधि स्वाहा॥ इदमग्नीवरुणाभ्यां इदं न मम।

(6). ॐ अयाश्चाग्नेऽस्यनभिशस्तिपाश्च सत्यमित्वमयाऽअसि। अया नो यज्ञं वहास्यया नो धेहि भेषज ् स्वाहा॥ इदमग्नये अयसे इदं न मम।

(7). ॐ ये ते शतं वरुण ये सहस्रं यज्ञियाः पाशा वितता महान्तः।

तेभिर्नोऽअद्य सवितोत विष्णुर्विश्वे मुञ्चन्तु मरुतः स्वर्का: स्वाहा॥

इदं वरुणाय सवित्रे विष्णवे विश्वेभ्यो देवेभ्यो मरुद्भ्यः स्वर्केभ्यश्च न मम।

(8). ॐ उदुत्तमं वरुण पाशमस्मदवाधमं वि मध्यमं श्रथाय। अथा वयमादित्य व्रते तवानागसोऽअदितये स्याम स्वाहा॥ इदं वरुणायादित्यायादितये न मम।

(9). ॐ प्रजापतये स्वाहा, इदं प्रजापतये न मम (यह मौन रहकर पढ़ें)।

सर्वदेव वैदिक हवन विधि

स्विष्टकृत् आहुति :

इसके बाद ब्रह्मा द्वारा कुश से स्पर्श किये जाने की स्थिति में (ब्रह्मणान्वारब्ध) निम्न मन्त्र से घी के द्वारा स्विष्टकृत् आहुति दें :-

ॐ अग्नये स्विष्टकृते स्वाहा, इदमग्नये स्विष्टकृते न मम।

सर्वदेव वैदिक हवन विधि

अथ बलिदान कर्म:

अब दीप, उड़द व दही से बलिदान देवें-

एकतन्त्रेण दशदिक्पालबलिः

ॐ प्राच्यै दिशे स्वाहार्वाच्यै दिशे स्वाहा दक्षिणायै दिशे स्वाहार्वाच्यै दिशे स्वाहा प्रतीच्यै दिशे स्वाहार्वाच्यै दिशे स्वाहोदीच्यै दिशे स्वाहार्वाच्यै दिशे स्वाहोर्ध्वायै दिशे स्वाहार्वाच्यै दिशे स्वाहार्वाच्यै दिशे स्वाहार्वाच्यै दिशे स्वाहा॥

ॐ इन्द्रादिभ्यो दशभ्यो दिक्पालेभ्यो नमः। ॐ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यः साङ्गेभ्य सपरिवारेभ्य सायुधेभ्यः सशक्तिकेभ्यः इमान् सदीपदधिमाषभक्तबलीन् समर्पयामि। भो भो इन्द्रादिदशदिक्पाला:! स्वां स्वां दिशं रक्षत बलिं भक्षत मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य आयुःकर्तारः क्षेमकर्तारः शान्तिकर्तारः पुष्टिकर्तारः तुष्टिकर्तारः वरदाः भवत।

अनेन बलिदानेन इन्द्रादिदशदिक्पालाः प्रीयन्ताम्।

एकतन्त्रेण नवग्रहादिबलिः

ॐ ग्रहा ऽऊर्जाहुतयो व्वयन्तो विप्प्राय मतिम्। तेषां विशिप्प्रियाणां व्वोऽहमिषमूर्ज ् समग्ग्रभमुपयामगृहीतोऽसीन्द्राय त्त्वा जुष्टं गृह्णाम्येष ते योनिरिन्द्राय त्त्वा जुष्टतमम्॥

ॐ सूर्यादिनवग्रहेभ्यो नमः । सूर्यादिनवग्रहेभ्यः साङ्गेभ्यः सपिरवारेभ्यः सायुधेभ्य: सशक्तिकेभ्यः अधिदेवता-प्रत्यधिदेवता-गणपत्यादिपञ्चलोकपालवास्तोष्पतिसहितेभ्यः इमं सदीपदधिमाषभक्तबलिं समर्पयामि।

भो भो सूर्यादिनवग्रहाः! साङ्गाःसपरिवाराः सायुधाः सशक्तिकाः अधिदेवता-प्रत्यधिदेवताः गणपत्यादिपञ्चलोकपाल-वास्तोष्पतिसहिताः इमं बलिं गृहीत मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य आयुःकर्तारः क्षेमकर्तारः शान्तिकर्तारः पुष्टिकर्तारः तुष्टिकर्तारो वरदा भवत्।

अनेन बलिदानेन साङ्गाः सूर्यादिनवग्रहाः प्रीयन्ताम्।

वास्तुबलिः

ॐ वास्तोष्पते प्रति जानीह्यस्मान् स्वावेशो अनमीवोभवा नः। यत्वे महे प्रति तं नो जुषस्व शं नो भव द्विपदे शं चतुष्पदे।

शिख्यादिसहितवास्तोष्पतये साङ्गाय सपरिवाराय सायुधाय सशक्तिकाय इमं सदिपदधिमाषभक्तबलिं समपर्यामि।

भो शिख्यादिसहितवास्तोष्यते! इमं बलि गृह्णीत मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य आयुकर्ता क्षेमकर्ता पुष्टिकर्ता तुष्टिकर्ता वरदो भवत्।

अनेन बलिदानेन शिख्यादिसहितवास्तोष्पतिः प्रीयताम्॥

योगिनीबलिः

ॐ योगे योगे तवस्तरं वाजे वाजे हवामहे। सखाय इन्द्रमूतये॥ महाकाली – महालक्ष्मी – महासरस्वती सहित गजाननाद्यावाहितचतुः षष्टियोगिनीभ्यः साङ्गाभ्यः सपरिवाराभ्यः सायुधाभ्यः सशक्तिकाभ्यः इमं सदीपदधिमाषभक्तबलिं समर्पयामि।

भो महाकाली – महालक्ष्मी – महासरस्वतीसहितचतुःषष्टियोगिन्यः! इमं बलिं गृहीत मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य आयुकर्ता क्षेमकर्ता शान्तिकर्ता पुष्टिकर्ता तुष्टिकर्ता वरदो भवत्।

अनेन बलिदानेन महाकाली – महालक्ष्मी – महासरस्वतीसहितगजाननाद्यावाहितचतुःषष्टियोगिन्यः प्रीयन्ताम्।

असंख्यातरुद्रबलिः

ॐ नमस्ते रुद्र मन्यव उतो त इषवे नमः। बाहुभ्यामुत ते नमः॥

ॐ असंख्यात रुद्राय नमः! रुद्राय साङाय सपरिवाराय सायुधाय सशक्तिकाय इमं सदिपदधिमाषभक्तबलिं समपर्यामि।

भो असंख्यात रुद्र! इमं बलि गृह्णाण मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य, आयुकर्ता क्षेमकर्ता पुष्टिकर्ता तुष्टिकर्ता वरदो भवत्।

अनेन बलिदानेन असंख्यातरुद्रः प्रीयताम्॥

प्रधानदेवताबलिः

जिस देवता का यज्ञ हो रहा हो, उसी प्रधान देवता की बलि उसके मन्त्र का उच्चारण करते हुए आचार्य करावें।

क्षेत्रपालबलिः

अब आरती करें।

पूर्ण पात्र दान :

पूर्व में स्थापित पूर्णपात्र में द्रव्य-दक्षिणा रखकर निम्न संकल्प के साथ दक्षिणा सहित पूर्ण पात्र ब्राह्मण-पुरोहित को प्रदान करें।

ॐ अद्य होमकर्मणि कृताकृतावेक्षणरूपब्रह्मकर्मप्रतिष्ठार्थमिदं वृषनिष्क्रयद्रव्यसहितं पूर्णपात्रं प्रजापतिदैवतं …गोत्राय…शर्मणे ब्रह्मणे भवते सम्प्रददे।

ब्राह्मण “स्वस्ति” कहकर उस पूर्ण पात्र को ग्रहण करें।

प्रणीता पात्र को ईशान कोण में उलटकर रख दें।

त्र्यायुष्करण :

तत्प्श्चात आचार्य स्त्रुवा से भस्म लेकर दायें हाथ की अनामिका के अग्रभाग से निम्न मंत्रों से निर्दिष्ट अंगों में भस्म लगायें :-

ॐ त्र्यायुषं जमदग्नेः – ललाट-माथे पर लगायें।

ॐ कश्यपस्य त्र्यायुषम् – ग्रीवा पर लगायें।

ॐ यद्देवेषु त्र्यायुषम् – दक्षिण बाहुमूल पर लगायें।

ॐ तन्नो अस्तु त्र्यायुषम् – हृदय-छाती पर लगायें।

गोदान :

इसके बाद अपने आचार्य की विधिवत पूजाकर उन्हें दक्षिणा के रूप में द्रव्यादि के अतिरिक्त गौ अथवा तन्निष्क्रयभूत द्रव्य प्रदान करने के लिये निम्न संकल्प करे :-

ॐ अद्य…गोत्र:…शर्मा कृतस्य अमुक यज्ञादि कर्मण:संगतासिद्धयर्थं मम मनोकामना सिद्धये गोनिष्क्रयद्रव्यमाचार्याय दातुमहमुत्सृज्ये।

आचार्य ब्राह्मण दक्षिणा दान :

इसके बाद यजमान हाथ में गन्ध, पुष्प, अक्षत, ताम्बूल तथा दक्षिणा लेकर निम्न संकल्प वाक्य बोलकर आचार्य को दक्षिणा दे :-

ॐ अद्य कृतानां अमुक कर्मणा साङ्गतासिद्धयर्थं हिरण्यनिष्क्रयभूतं द्रव्यं आचार्याय भवते सम्प्रददे।

भूयसी दक्षिणा का संकल्प :

इसके बाद भूयसी दक्षिणा का संकल्प करे :-

ॐ अद्य कृतानां अमुक कर्मणा साङ्गतासिद्धयर्थं तन्मध्ये न्यूनातिरिक्तदोषपरिहारार्थं इमां भूयसी दक्षिणां विभज्य दातुमहमुत्सृज्ये।

ब्राह्मण भोजन संकल्प :

निम्न संकल्प वाक्य बोलकर ब्राह्मण भोजन का संकल्प करे :-

ॐ अद्य कृतानां अमुक कर्मणा साङ्गतासिद्धयर्थं यथासंख्याकान् ब्राह्मणान् भोजयिष्ये। तेभ्यो ताम्बूल दक्षिणा च दास्ये।

तदनन्तर ब्राह्मणों के माथे पर रोली-अक्षत लगाये।

विसर्जन :

इसके बाद अग्नि तथा आवाहित देवताओं का अक्षत छोड़ते हुए निम्न मंत्र पढ़कर विसर्जन करे :-

यान्तु देवगणा: सर्वे पूजामादाय मामकीम्।

इष्टकार्यसमृद्ध्यर्थं पुनरागमनाय च॥

गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठ स्वस्थाने परमेश्वर।

यत्र ब्रह्मादयो देवास्तत्र गच्छ हुताशन॥

भगवत्स्मरण :

इसके बाद हाथ में अक्षत-पुष्प लेकर भगवान् का ध्यान करते हुए समस्त कर्म उन्हें समर्पित करें :-

ॐ प्रमादात्कुर्वतां कर्म प्रच्यवेताध्वरेषु यत्।

स्मरणादेव तद्विष्णोः सम्पूर्ण स्यादिति श्रुतिः॥

यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या तपोयज्ञक्रियादिषु।

न्यूनं सम्पूर्णतां याति सद्यो वन्दे तमच्युतम्॥

यत्पादपङ्कज स्मरणात् यस्य नामजपादपि।

न्यूनं कर्मं भवेत् पूर्णं तं वन्दे साम्बमीश्वरम्॥

कायेन वाचा मनसेन्द्रियैर्वा बुध्यात्मना वा प्रकृति स्वभावात्।

करोमि यद्यत् सकलं परस्मै नारायणायेति समर्पयामि॥

ॐ विष्णवे नमः। ॐ विष्णवे नमः। ॐ विष्णवे नमः।

ॐ साम्बसदाशियाय नमः। ॐ साम्बसदाशियाय नमः। ॐ साम्बसदाशियाय नमः।

ॐ भं भाद्रकलिकायै नमः। ॐ भं भाद्रकलिकायै नमः। ॐ भं भाद्रकलिकायै नमः।

इति सर्वदेव वैदिक हवन विधि: ॥

 

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