मन पाखी टेरा रे – वीरबाला भावसार
रुक रुक चले बयार, कि झुक झुक जाए बादल छाँह कोई मन सावन घेरा रे, कोई मन सावन घेरा रे...
रुक रुक चले बयार, कि झुक झुक जाए बादल छाँह कोई मन सावन घेरा रे, कोई मन सावन घेरा रे...
इसमे क्या आश्चर्य? प्रीति जब प्रथम–प्रथम जगती है‚ दुर्लभ स्वप्न–समान रम्य नारी नर को लगती है। कितनी गौरवमयी घड़ी वह...
हाय, मानवी रही न नारी लज्जा से अवगुंठित, वह नर की लालस प्रतिमा, शोभा सज्जा से निर्मित! युग युग की...
हो गया पूर्ण अज्ञातवास, पांडव लौटे वन से सहास, पावक में कनक सदृश तप कर, वीरत्व लिये कुछ और प्रखर।...
मैं हुआ धनुर्धर जब नामी, सब लोग हुए हित के कामीऌ पर, ऐसा भी था एक समय, जब यह समाज...
क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल सबका लिया सहारा, पर नर-व्याघ्र सुयोधन तुमसे कहो, कहाँ, कब हारा? क्षमाशील हो रिपु-समक्ष तुम...
स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से और हम खड़े-खड़े बहार...
घोर धनुर्धर‚ बाण तुम्हारा सब प्राणों को पार करेगा‚ तेरी प्रत्यंचा का कंपन सूनेपन का भार हरेगा। हिमवत‚ जड़‚ निःस्पंद...
सखी वे मुझ से कह कर जाते, कह तो क्या वे मुझको अपनी पग बाधा ही पाते? मुझको बहुत उन्होंनें...
बुनी हुई रस्सी को घुमाएं उल्टा तो वह खुल जाती है और अलग अलग देखे जा सकते हैं उसके सारे...
चलती चक्की देख कर‚ दिया कबीरा रोए दुई पाटन के बीच में‚ साबुत बचा न कोए बुरा जो देखण मैं...
(जटायु का बड़ा भाई गिद्ध जो प्रथम बार सूर्य तक पहुचने के लिए उड़ा पंख झुलस जाने पर समुद्र-तट पर...