कुछ मैं कहूं कुछ तुम कहो – रमानाथ अवस्थी
जीवन कभी सूना न हो
कुछ मैं कहूं‚ कुछ तुम कहो।
तुमने मुझे अपना लिया
यह तो बड़ा अच्छा किया
जिस सत्य से मैं दूर था
वह पास तुमने ला दिया
अब जिंदगी की धार में
कुछ मैं बहूं‚ कुछ तुम बहो।
जिसका हृदय सुन्दर नहीं
मेरे लिये पत्थर वही
मुझको नई गति चाहिये
जैसे मिले‚ वैसे सही
मेरी प्रगति की सांस में
कुछ मैं रहूं‚ कुछ तुम रहो।
मुझको बड़ा सा काम दो
चाहो न कुछ आराम दो
लेकिन जहां थक कर गिरूं
मुझको वहीं तुम थाम लो
गिरते हुए इंसान को
कुछ मैं गहूं‚ कुछ तुम गहो।
संसार मेरा मीत है
सौंदर्य मेरा गीत है
मैंने कभी समझा नहीं
क्या हार है‚ क्या जीत है
सुख दुख मुझे जो भी मिलें
कुछ मैं सहूं‚ कुछ तुम सहो।