राही के मुक्तक – बालस्वरूप राही

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मेरे आँसू तो किसी सीप का मोती न बने
साथ मेरे न कभी आँख किसी की रोई
ज़िन्दगी है इसकी न शिकायत मुझको
गम तो इसका है की हमदर्द नहीं है कोई।

आप आएं हैं तो बैठें जरा, आराम करें
सिलसिला बात का चलता है तो चल पड़ता है
आप की याद में खोया हूँ, अभी चुप रहिये
बात करने में ख्यालों में खलल पड़ता है।

रात भर जग के इन्तजार कौन करे
झूठी उम्मीद पे दिल बेक़रार कौन करे
तेरी उल्फत पे तो मुझ को यकीं है पूरा
तेरे वादों का मगर एतबार कौन करे।

वादा करता है किनारे का, लहर देता है
लाख गम सुख का महज एक पहर देता है
उम्र की राह कटी तब यह कहीं राज खुला
प्यार अमृत के बहाने ही जहर देता है।

रात आती है तेरी यादों में काट जाती है
आँख रह रह के सितारों सी डबडबाती है
इतना बदनाम हो गया हूँ की मेरे घर में
आजकल नींद भी आते हुए शरमाती है।

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