बलराम स्तुति || Balaram Stuti
पालने में विराजमान बलरामजी (शेषजी) का दर्शन करके सत्यवतीनन्दन ने उन्हें प्रणाम किया और उनकी स्तुति की-
बलरामजी अथवा शेषजी की स्तुति
बलराम स्तवन
श्रीव्यास उवाच –
देवाधिदेव भगवन्कामपाल नमोऽस्तु ते ।
नमोऽनन्ताय शेषाय साक्षाद्रामाय ते नमः ॥ ३६ ॥
धराधराय पूर्णाय स्वधाम्ने सीरपाणये ।
सहस्रशिरसे नित्यं नमः संकर्षणाय ते ॥ ३७ ॥
रेवतीरमण त्वं वै बलदेवोऽच्युताग्रजः ।
हलायुधः प्रलंबघ्नः पाहि मां पुरुषोत्तम ॥ ३८ ॥
बलाय बलभद्राय तालांकाय नमो नमः ।
नीलांबराय गौराय रौहिणेयाय ते नमः ॥ ३९ ॥
धेनुकारिर्मुष्टिकारिः कुम्भाण्डारिस्त्वमेव हि ।
रुक्म्यरिः कूपकर्णारिः कूटारिर्बल्वलान्तकः ॥ ४० ॥
कालिन्दीभेदनोऽसि त्वं हस्तिनापुरकर्षकः ।
द्विविदारिर्यादवेन्द्रो व्रजमण्डलमंडनः ॥ ४१ ॥
कंसभ्रातृप्रहन्ताऽसि तीर्थयात्राकरः प्रभुः ।
दुर्योधनगुरुः साक्षात्पाहि पाहि जगत्प्रभो ॥ ४२ ॥
जयजयाच्युत देव परात्पर
स्वयमनन्त दिगन्तगतश्रुत ।
सुरमुनीन्द्रफणीन्द्रवराय ते
मुसलिने बलिने हलिने नमः ॥ ४३ ॥
इह पठेत्सततं स्तवनं तु यः
स तु हरेः परमं पदमाव्रजेत् ।
जगति सर्वबलं त्वरिमर्दनं
भवति तस्य जयः स्वधनं धनम् ॥ ४४ ॥
बलरामजी अथवा शेषजी की स्तुति
बलराम स्तवन भावार्थ सहित
श्रीव्यास उवाच –
देवाधिदेव भगवन्कामपाल नमोऽस्तु ते ।
नमोऽनन्ताय शेषाय साक्षाद्रामाय ते नमः ॥ ३६ ॥
श्रीव्यासजी बोले-हे भगवन् ! आप देवताओं के भी अधिदेवता और कामपाल (सबका मनोरथ पूर्ण करनेवाले) हैं, आपको नमस्कार है । आप साक्षात् अनन्तदेव शेषनाग हैं, बलराम हैं, आपको मेरा प्रणाम है ॥ ३६॥
धराधराय पूर्णाय स्वधाम्ने सीरपाणये ।
सहस्रशिरसे नित्यं नमः संकर्षणाय ते ॥ ३७ ॥
आप धरणीधर, पुर्णस्वरूप, स्वयंप्रकाश, हाथ में हल धारण करनेवाले, सहस्र मस्तकों से सुशोभित तथा संकर्षंणदेव हैं, आपको नमस्कार है ॥ ३७ ॥
रेवतीरमण त्वं वै बलदेवोऽच्युताग्रजः ।
हलायुधः प्रलंबघ्नः पाहि मां पुरुषोत्तम ॥ ३८ ॥
हे रेवतीरमण ! आप ही बलदेव तथा श्रीकृष्ण के अग्रज हैं । हलायुध एवं प्रलम्बासुर के नाशक हैं । हे पुरुषोत्तम ! आप मेरी रक्षा कीजिये ॥ ३८ ॥
बलाय बलभद्राय तालांकाय नमो नमः ।
नीलांबराय गौराय रौहिणेयाय ते नमः ॥ ३९ ॥
आप बल, बलभद्र तथा ताल के चिह्न से युक्त ध्वजा धारण करनेवाले हैं; आपको नमस्कार है । आप नीलवस्त्रधारी, गौरवर्ण तथा रोहिणी के सुपुत्र हैं; आपको मेरा प्रणाम है ॥ ३९ ॥
धेनुकारिर्मुष्टिकारिः कुम्भाण्डारिस्त्वमेव हि ।
रुक्म्यरिः कूपकर्णारिः कूटारिर्बल्वलान्तकः ॥ ४० ॥
आप ही धेनुक, मुष्टिक, कुम्भाण्ड, रुक्मी, कुपकर्ण, कुट तथा बल्वल के शत्रु हैं ॥ ४० ॥
कालिन्दीभेदनोऽसि त्वं हस्तिनापुरकर्षकः ।
द्विविदारिर्यादवेन्द्रो व्रजमण्डलमंडनः ॥ ४१ ॥
कालिन्दी की धारा को मोड़नेवाले और हस्तिनापुर को गङ्गा की ओर आरक्षित करनेवाले आप ही हैं । आप द्विविद के विनाशक, यादवों के स्वामी तथा ब्रजमण्डल के मण्डन ( भूषण ) हैं ॥ ४१ ॥
कंसभ्रातृप्रहन्ताऽसि तीर्थयात्राकरः प्रभुः ।
दुर्योधनगुरुः साक्षात्पाहि पाहि जगत्प्रभो ॥ ४२ ॥
आप कंस के भाइयों का वघ करनेवाले तथा तीर्थयात्रा करनेवाले प्रभु हैं । दुर्योधन के गुरु भी साक्षात् आप ही हैं । हे प्रभो ! जगत की रक्षा कीजिये, रक्षा कीजिये ॥ ४२॥
जयजयाच्युत देव परात्पर स्वयमनन्त दिगन्तगतश्रुत ।
सुरमुनीन्द्रफणीन्द्रवराय ते मुसलिने बलिने हलिने नमः ॥ ४३ ॥
अपनी महिमा से कभी च्युत न होनेवाले परात्पर देवता साक्षात् अनन्त ! आपकी जय हो, जय हो । आपका सुयश समस्त दिगन्त में व्याप्त है । आप सुरेन्द्र, मुनिन्द्र और फणीन्द्रों में सर्वश्रेष्ठ हैं आप मुसलधारी, हलधर तथा बलवान् हैं; आपको नमस्कार है ॥४३॥
इह पठेत्सततं स्तवनं तु यः स तु हरेः परमं पदमाव्रजेत् ।
जगति सर्वबलं त्वरिमर्दनं भवति तस्य जयः स्वधनं धनम् ॥ ४४ ॥
जो इस जगत्में सदा इस स्तवन का पाठ करेगा, वह श्रीहरि के परमपद को प्राप्त होगा। संसार में उसे शत्रुओं का संहार करनेवाला सम्पूर्ण बल प्राप्त होगा । उसकी सदा जय होगी और वह प्रचुर धन का स्वामी होगा ॥ ४४॥
इस प्रकार सत्यवतीनन्दन श्रीव्यास द्वारा बलरामजी अथवा शेषजी की स्तुति अथवा बलराम स्तवन सम्पूर्ण हुआ॥