Abadi Bano Begum Autobiography | आबादी बानो बेगम का जीवन परिचय : अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद करनेवाली सेनानी

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आबादी बानो बेगम उन पहली मुस्लिम महिलाओं में शामिल थीं जिन्होंने भारत की राजनीति में दिलचस्पी से हिस्सा लिया था। वह उन निडर मुस्लिम महिलाओं में से एक थीं, जिन्हें अपने देश को अंग्रेज़ों की गुलामी से मुक्त देखने की उत्सुकता थी। इसी लिए वह भारत की आज़ादी की लड़ाई में एक क्रांतिकारी बनकर कूद पड़ी थीं।आबादी बानो बेगम लोगों के बीच बड़ी लोकप्रिय थीं, लोग उन्हें ‘अम्मा बी’ के नाम से भी जानते थे। भारतीय उप-महाद्वीप में स्वतंत्रता संग्राम की ऊंची आवाज़ों में एक आवाज उनकी भी थी, वह जब तक जीवित रही भारत की आज़ादी के लिए लड़ती रही। उनका जन्म 1850 में उत्तर प्रदेश में हुआ। इनकी शादी रामपुर रियासत के एक अफ़सर अब्दुल अली खान से हुई थी। इन दोनों की एक बेटी और पांच बेटे थे। छोटी उम्र में ही आबादी बानो के पति की मृत्यु हो जाने के बाद, बच्चों की देखभाल करने की जिम्मेदारी उन पर आ गई। भले ही उसके पास सीमित संसाधन थे, उनके पास कोई औपचारिक शिक्षा नहीं थी, लेकिन फिर भी उन्होंने अपने बच्चों को उत्तर प्रदेश के बरेली शहर में एक अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में पढ़ाया।

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आबादी बानो के बेटे, मौलाना मोहम्मद अली जौहर और मौलाना शौकत अली, खिलाफत आंदोलन और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख चेहरे थे जिनसे ब्रिटिश सरकार भी डरती थी। बेटों को यह प्रेरणा उनकी मां से विरासत में मिली थी। उन्हें ब्रिटिश राज के खिलाफ़ असहयोग आंदोलन के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए गिरफ्तार कर लिया गया था। आबादी बानो ने भी ख़िलाफ़त आंदोलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस आंदोलन के लिए चंदा इकट्ठा करने में भी उनकी एक बड़ी भूमिका रही थी। अपने दोनों बेटों के जेल चले जाने के बाद उन्होंने एक बड़ी भीड़ को संबोधित किया था, ऐसा पहली बार हुआ था जब एक मुस्लिम महिला ने बुर्क़ा पहनकर अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ बुलंद की थी। आबादी बानो बेगम ने राजनीति में खुलकर हिस्सा लिया और खिलाफ़त समिति का हिस्सा बनीं। साल 1917 में जब एनी बेसेंट और अपने दो बेटों को जेल हो गई तो वह उनको रिहा करने के लिए आंदोलन में शामिल हो गई। महात्मा गांधी ने भी उन्हें राजनीति में आने के लिए प्रोत्साहित किया क्योंकि बी अम्मा के आने से उन्हें स्वतंत्रता आंदोलन में मुस्लिम महिलाओं का समर्थन मिल सकता था। ख़िलाफ़त आंदोलन के समर्थन के लिए इन्होंने पूरे भारत में बड़े पैमाने पर यात्रा की।

आबादी बानो बेगम हमेशा शिक्षा के लिए अग्रसर रही वह प्रगतिशील विचारक दूरदर्शी महिला थीं। भले ही उन्हें कभी कोई औपचारिक शिक्षा नहीं मिली, लेकिन वह आधुनिक शिक्षा ग्रहण करने वाले लोगों से काफी प्रभावित रही।

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आबादी बानो बेगम ने खिलाफ़त आंदोलन और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिए घर-घर जाकर चंदा इकट्ठा किा और उसे देशहित में लगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह अधिकतर बेगम हसरत मोहानी, बसंती देवी, सरला देवी चौधरानी और सरोजिनी नायडू के साथ महिला-सभाओं को संबोधित करती थीं। उन्होंने खिलाफत आंदोलन और स्वतंत्रता आंदोलन में दूसरी महिलाओं को जुड़ने के लिए प्रोत्साहित किया। वह लोगों से लगातार विदेशी सामान का बहिष्कार करने की अपील करती रहती। उनके अथक प्रयासों के परिणामस्वरूप, पूरे देश में मुस्लिम महिलाएं आज़ादी की इस लहर में कूद पड़ी। आबादी बानो बेगम हमेशा शिक्षा के लिए अग्रसर रही वह प्रगतिशील विचारक दूरदर्शी महिला थीं। भले ही उन्हें कभी कोई औपचारिक शिक्षा नहीं मिली, लेकिन वह आधुनिक शिक्षा ग्रहण करने वाले लोगों से काफी प्रभावित रही। आबादी बानो बेगम का सारा जीवन, देश की सेवा में बीता, मगर अफसोस भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन आज़ाद भारत के सपने देखने वाली इस पूरा होता न देख पाई।13 नवंबर, 1924 को खिलाफत आंदोलन की समाप्ति के तुरंत बाद ही उनका निधन हो गया।

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