Asima Chaterjee Autobiography | असीमा चटर्जी का जीवन परिचय : विज्ञान के क्षेत्र में आनेवाली महिलाओं के लिए जिसने रास्ता बनाया

2

असीमा चटर्जी एक भारतीय जैविक रसायन शास्त्री थीं जिन्हें कार्बनिक रसायन और मेडिसिन के क्षेत्र में अपने अभूतपूर्व योगदान के लिए जाना जाता है। असीमा चटर्जी ने चुनौती दी उन लोगों को जो यह मानते हैं कि महिला और पुरुष के काम के क्षेत्र अलग-अलग होते हैं, महिलाएं विज्ञान के क्षेत्र में इस तरह के काम नहीं कर सकतीं। इन सभी रूढ़िवादी धारणाओं को चुनौती दी, असीमा चटर्जी ने जिन्हें आज एक ऐसी महिला वैज्ञानिक के रूप में देखा जाता है जिन्होंने खतरनाक बीमारियों से लड़ने की दवाएं बनाईं ताकि कई लोगों की जिंदगी बचाई जा सके। बता दें कि वह पहली महिला थीं जिन्हें एक भारतीय यूनिवर्सिटी द्वारा डॉक्टरेट की उपाधि दी गई। भले ही बहुत लोगों को असीमा चटर्जी के बारे में ना पता हो लेकिन उनके शोध से आज इस्तेमाल की जाने वाली कई दवाओं के कारण उनके योगदान को भूला नहीं जा सकता।

असीमा चटर्जी का जन्म 23 सितंबर 1917 को कलकत्ता, बंगाल के एक मध्मवर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता इंद्र नारायण मुखर्जी मेडिकल डॅाक्टर थे। असीमा की रसायन विज्ञान में बढ़ती रुचि की वजह उनके पिता थे जो खुद वनस्पति विज्ञान में बहुत रुचि रखते थे। भारतीय समाज में अक्सर ऐसा देखा जाता है कि लड़की को परिवार का साथ, खासतौर पर करियर के मामले में बहुत ही कम मिलता है। समाज में काफी हद तक लड़कियों की स्थिति सुधर सकती है अगर उन्हें परिवार का साथ मिले, आगे बढ़ने के मौके दिए जाएं। असीमा के पिता इंद्र नारायण मुखर्जी यह जानते थे। असीमा ने खुद की लगन से रसायन विज्ञान क्षेत्र में इतना ऊंचा मुकाम हासिल किया कि उन्हें ऑफ सांइस की उपाधि दी गई लेकिन यहां तक का सफर आसान नहीं था।

और पढ़ें : जानकी अम्माल: वनस्पति विज्ञान में भारत की पहली महिला|

असीमा दो बच्चों में सबसे बड़ी थीं, इसलिए उन्हें घर में मौजूद बड़े-बुजु़र्ग लोगों के ताने सुनने पड़ते थे क्योंकि उस दौर में लड़कियों को इतना पढ़ाना अच्छा नही माना जाता था। वे मानते थे कि अगर असीमा ऐसा करेगी तो बाकि बच्चों पर गलत असर पड़ेगा। परिवार में विरोध के बावजूद उन्हें अपनी मां की मदद से उन्हें साल 1936 में स्कॉटिश चर्च कॉलेज के रसायन विभाग में दाखिला मिल ही गया। महिला शिक्षा का स्तर क्या था इस बात अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि रसायन विभाग में दाखिला लेने वाली असीमा पहली लड़की थीं और ज़ाहिर सी बात है कि विभाग में पहली लड़की होने के नाते उन्हें बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ा होगा। तमाम मुश्किलों का सामना करते हुए उन्होंने साल 1938 में अपना मास्टर्स भी पूरा कर लिया। 1940 में उन्हें कलकत्ता यूनिवर्सिटी के लेडी ब्रेबॉर्न कॉलेज के केमिस्ट्री डिपार्टमेंट का हेड नियुक्त किया गया। 1944 में उन्होंने वह कीर्तिमान स्थापित किया जो आज इतिहास में दर्ज है, उस साल वह भारत की पहली महिला बनीं जिसने साइंस में डॉक्टरेट की उपाधि एक भारतीय यूनिवर्सिटी से हासिल की।

उपलब्धियां

असीमा ने कई दवाईयों की खोज की जिसमें से मिरगी की दवा आयुष 56, मलेरिया से बचाने वाली दवाइयां शामिल हैं। असीमा की दवाओं से कई लोगों की जान बचाई जा सकी। उन्होंने विंका अल्कालॉयड्स (vinca alkaloids) के क्षेत्र में काफी काम किया जो की पौधे से प्राप्त होता है, जिसका उपयोग आज की कीमोथेरेपी में किया जाता है। यह कैंसर की कोशिकाओं को जल्दी बढ़ने नहीं देता। औषधीय पौधों पर उनके गहरे शोध की केवल भारत में ही नहीं दुनिया में भी सराहना की जाती है। उनके करीब 400 पेपर्स राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय जर्नल्स में प्रकाशित हुए। उनके प्रकाशित पेपर्स इतने महत्वपूर्ण थे कि उन्हें कई किताबों में रेफरेंस के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है।

उनके काम के लिए आगे चलकर उन्हें साल 1961 में  शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार से नवाज़ा गया। असीमा रासायनिक विज्ञान में इस पुरस्कार को प्राप्त करने वाली पहली महिला थीं। इसके साथ ही उन्हें सीवी रमन अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया। यह सभी पुरस्कार विज्ञान के क्षेत्र में सबसे सम्मानित स्थान रखते हैं जिसका मिलना आज भी एक बहुत बड़ी उपलब्धि हासिल करने के समान है। साल 1962 में उन्हें इंडियन नैशनल साइंस अकैडमी का फेलो चुना गया। साल 1975 में उन्हें प्रतिष्ठित पद्मभूषण पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। वह भारतीय विज्ञान कांग्रेस एसोसिएशन की महासचिव के रूप में चुनी जाने वाली पहली महिला थी। उसी साल विज्ञान क्षेत्र में उनके दिए गए योगदान के लिए उन्हें बंगाल चैम्बर ऑफ कॅामर्स के द्वारा ‘वुमन ऑफ द ईयर’ का सम्मान भी प्राप्त हुआ। बता दें कि असीमा चटर्जी केवल विज्ञान क्षेत्र में ही नही बल्कि संगीत में भी विशेष रुचि रखती थीं। उन्होंने वोकल म्यूज़िक की ट्रेनिंग भी ली थी। गूगल ने साल 2017 में असीमा चटर्जी के जन्म की 100वीं वर्षगांठ पर उनका डूडल भी बनाया।

बहुत सी ऐसी कंपनियां हैं, क्षेत्र हैं जहां सिर्फ जेंडर के आधार पर महिलाओं का वेतन कम होता है बावजूद इसके की वह काम उतना ही करती हैं। आज केवल कुछ ही नौकरियों को महिलाओं के लिए बेहतर माना जाता है जिसमें टीचर की नौकरी सबसे ऊपर शामिल है ताकि अपने काम के अलावा वे घर भी आसानी से संभाल सकें। अक्सर जब कोई महिला अच्छे मुकाम पर पहुंचती है तो वह उस सम्मान से वंचित हो जाती है जो पुरुषों को दिया जाता है। लेकिन उस दौर में विज्ञान क्षेत्र को चुनकर असीमा चटर्जी  प्रेरित करती हैं उन लड़कियों जो अपने सपनों को उड़ान देना चाहती हैं, मायने नही रखता कि आप मध्यमवर्गीय परिवार से हैं और आप किस क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहती हैं। साल 2006 में 22 नवंबर को 90 साल की उम्र में उनका निधन हो गया।

और पढ़ें : दुर्गाबाई देशमुख : बाल विवाह की बेड़ियों को तोड़ तय किया संविधान सभा तक का सफर

2 thoughts on “Asima Chaterjee Autobiography | असीमा चटर्जी का जीवन परिचय : विज्ञान के क्षेत्र में आनेवाली महिलाओं के लिए जिसने रास्ता बनाया

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *