Singh Sankranti 2023: तिथि, पूजा विधि, सिंह संक्रांति का महत्व, सिंह संक्रांति पर स्नान दान का महत्व

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भाद्रपद या भादो के महीने में जब सूरज अपनी राशि परिवर्तन करते हैं, तो उस संक्रांति को सिंह संक्रांति कहा जाता है। दक्षिण भारत में इस संक्रांति को सिंह संक्रमण के नाम से भी जाना जाता है। सिंह संक्रांति के दिन भगवान विष्णु, सूर्य देव और भगवान नरसिंह की पूजा की जाती है। इस दिन घी का सेवन लाभकारी माना जाता है। सिंह संक्रांति के दिन विधिवत पूजा पाठ किया जाता है।

पर्व सिंह संक्रांति 2023
तिथि 17 अगस्त, 2023
दिन गुरुवार

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, नवग्रहों के राजा सूर्य देव माह में एक बार राशि परिवर्तन करते हैं। सूर्य जब किसी राशि में प्रवेश करते हैं, तो उस दिन को राशि की संक्रांति कहा जाता है। आज यानी 17 अगस्त 2022 को सूर्य देव सिंह राशि में प्रवेश में करने जा रहे हैं। सूर्य का सिंह राशि में प्रवेश सिंह संक्रांति कहलाता है। सिंह संक्रांति पर सूर्य देव, श्री हरि विष्णु और भगवान नरसिंह की पूजा की जाती है। इस दिन स्नान, दान का विशेष महत्व होता है। इसके साथ ही इस दिन घी के सेवन का बहुत महत्व है। मान्यता है कि सिंह संक्रांति के दिन विशेषतौर पर घी खाने से मानसिक और शारीरिक विकास में बढ़ोत्तरी होती है। साथ ही स्वास्थ के लिहाज से भी ये बहुत लाभदायक होता है। तो चलिए जानते हैं सिंह संक्रांति का पुण्यकाल और सूर्य पूजा विधि…

सिंह संक्रांति 2022 मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, भाद्रपद सिंह संक्रांति का पुण्यकाल 17 अगस्त को दोपहर 12 बजकर 15 मिनट पर शुरू हो जाएगा। इस समय सूर्य कर्क राशि में हैं। सूर्य 17 अगस्त को कर्क राशि से निकलकर अपनी स्वराशि सिंह में आ जाएंगे।

Singh Sankranti Importance (सिंह संक्रांति का महत्व)

मान्यता है कि सिंह संक्रांति के दिन गाय का घी खाने का विशेष महत्व माना जाता है। कहा जाता है कि घी स्मरण शक्ति, बुद्धि, ऊर्जा और ताकत बढ़ाता है। घी को वात, पित्त, बुखार और विषैले पदार्थों का नाशक माना जाता है।

दूध से बने दही और उसे मथ कर तैयार किए गए मक्खन को धीमी आंच पर पिघलाकर घी तैयार किया जाता है। सिंह संक्रांति को घी संक्रांति (घीया संक्रांत) कहा जाता है। गढ़वाल में इसे आम भाषा में घीया संक्रांत कहा जाता है। उत्तराखंड में लगभग सिंह संक्रांति के दिन हर जगह घी खाना जरूरी माना जाता है।

कहा जाता है; वैसे तो प्रत्येक महीने की संक्रांति और कोई से हार मनाया जाता है। इसी तरह भाद्रपद या भादो महीने की संक्रांति का भी बहुत महत्व माना जाता है।

सिंह संक्रांति के दिन सूर्य पूजा का महत्व 

सूर्य देव को पंच देवों में से एक माना जाता है। किसी भी शुभ काम की शुरुआत में गणेश जी, शिव जी, विष्णु भगवान, दुर्गा देवी और सूर्य की पूजा की जाती है। सिंह संक्रांति के दिन सूर्य पूजा का बहुत महत्व माना जाता है।

इस दिन पूजा करने से पहले स्नान किया जाता है। स्नान करने के बाद साफ कपड़े पहने जाते हैं। इस के बाद गाय के दूध, गंगाजल, पुष्प, चावल, कुमकुम आदि से सूर्य भगवान की मूर्ति की विधिवत पूजा की जाती है।

पूजा के बाद सूर्य देव को तांबे के लोटे में जल अर्पित किया जाता है। सूरज देव को जल अर्पित करते समय ओम सूर्याय नमः  का जाप किया जाता है। इस मंत्र का जाप 108 बार किया जाता है ।

सिंह संक्रांति मनाने का तरीका 

सिंह संक्रांति के दिन कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं। जिसमें दाल की भरवा रोटी, खीर, गाबा को प्रमुख माना जाता है। मान्यता है कि दाल की भरवा रोटी के साथ घी का सेवन किया जाता है। एक रोटी को बेटू रोटी भी कहा जाता है। उड़द की दाल पीसकर पीठा बनाया जाता है और उसे पकाकर घी से खाया जाता है।

अरबी नाम की सब्जी के खिले पत्तों की सब्जी रोटी के साथ खाने के लिए बनाई जाती है। इन पत्तों की सब्जी को गाबा कहा जाता है। इसके साथ ही समाज के अन्य वर्ग जैसे वस्तुकार, शिल्पकार, दस्तकार, लोहार, बढ़ई द्वारा हाथ से बनी हुई चीजों को तोहफे के रूप में दान दिया जाता है।

चीजों को तोहफे के रूप में देने की इस परंपरा को ओलगी कहा जाता है। इसलिए सिंह संक्रांति को ओलगी संक्रांति भी कहा जाता है।

सिंह संक्रांति के दिन घी खाने का महत्व 

सिंह संक्रांति के दिन घी खाने का बहुत महत्व बताया जाता है। सिंह संक्रांति के दिन घी का सेवन करने से ऊर्जा, तेज, यादाश्त और बुद्धि में वृद्धि होती है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार जो व्यक्ति सिंह संक्रांति के दिन घी का सेवन नहीं करता है। वह अगले जन्म में घोंघा के रूप में जन्म लेता है।

यही कारण है कि इस दिन घी का सेवन करना फायदेमंद बताया जाता है। इसके इलावा घी का सेवन करने से राहु और केतु के बुरे प्रभाव से बचा जा सकता है।

सिंह संक्रांति की पूजा विधि (Singh Sankranti Puja Vidhi)

  • सिंह संक्रांति के दिन भगवान विष्णु, सूर्य देव और नरसिंह भगवान की पूजा की जाती है।
  •  इस दिन भक्त पवित्र नदी में स्नान करने के लिए जाते हैं।
  •  स्नान करने के बाद देवताओं का नारियल पानी और दूध से अभिषेक किया जाता है।
  •  पूजा के लिए ताजा नारियल पानी पानी प्रयोग किया जाता है।
  •  इस दिन भगवान गणेश जी की पूजा की जाती है ।
  • सिंह संक्रांति के दिन पूजा करने के बाद गरीबों में दान पुण्य किया जाता है।

सिंह संक्रांति की कथा (Singh Sankranti Katha)

एक गांव में एक ब्राह्मण निवास करता था। इसकी साध्वी स्त्री प्रदोष व्रत किया करती थी। इस गरीब ब्राह्मण का एक ही पुत्र था। एक समय की बात है कि ब्राह्मण का पुत्र गंगा स्नान करने के लिए जाता है। दुर्भाग्यवश रास्ते में चोर उसे  घेर लेते हैं और उसे कहते हैं कि वह उसे नहीं मारेंगे। उससे उसके पिता के गुप्त दान के बारे में पूछते हैं।

तब ब्राह्मण का पुत्र दीन भाव से कहने लग जाता है कि वह बहुत दुखी हैं और उनके पास धन नहीं है। सब चोरों ने उससे पूछा कि उसने इस पोटली में क्या बांध रखा है। तब बालक ने कहा कि उसमें उसक मां ने रोटियां बांधी है। यह सुनकर चोरों ने कहा कि यह बहुत ही दीन दुखी मनुष्य है। इसलिए वह उसे नहीं लूटेंगे।

इतना कह कर चोर ने बालक को जाने दिया। ब्राह्मण का पुत्र वहां से चलते हुए एक नगर में पहुंच जाता है। नगर के पास उसे एक बरगद का पेड़ दिखाई देता है। वह उस पेड़ की छाया में सो जाता है। तब उस समय उस नगर के सिपाही चोरों को खोजते हुए, उस बरगद के पेड़ के पास पहुंच जाते हैं।

पर उस बालक को चोर समझकर बंदी बनाकर राजा के पास ले जाते हैं। राजा ने उसे दंड स्वरूप जेल में बंद करने का आदेश दे दिया। जब ब्राह्मणी का लड़का घर नहीं लौटा। तब उसे अपने पुत्र की चिंता होने लग जाती है।

अगले दिन प्रदोष व्रत होता है। ब्राह्मणी ने प्रदोष व्रत बड़ी ही श्रद्धा पूर्वक किया और भगवान शंकर से मन ही मन अपने पुत्र की कुशलता से प्रार्थना करने लग जाती हैं। भगवान शंकर उस ब्राह्मणी की प्रार्थना को स्वीकार कर लेते हैं।

उसी रात भगवान शंकर ने उस राजा को सपने में आदेश दिया कि वह बालक चोर नहीं है और उसे सुबह छोड़ दिया जाए, नहीं तो उसका सारा राजपाट नष्ट हो जाएगा। सुबह उठकर राजा ने शिवजी के आदेश अनुसार बालक को जेल से मुक्त कर दिया। बालक ने अपनी सारी कथा राजा को सुनाई।

बालक का सारा हाल सुनकर राजा ने अपने सिपाहियों को आदेश दिया कि बालक को घर भेज दिया जाए और उसके माता-पिता को राज दरबार में बुलाया जाता है। बालक के माता-पिता बहुत डर जाते हैं। राजा ने उन्हें देख कर कहा कि उन्हें डरने की जरूरत नहीं है। उनका बालक निर्दोष है, राजा ने ब्राह्मण को 5 गांव दान में दिए।

जिससे कि वह अपना जीवन सुख पूर्वक व्यतीत कर सकें। भगवान शिव की कृपा से ब्राह्मण और उसका परिवार आनंद से रहने लग जाता है। मान्यता है कि जो भी मनुष्य प्रदोष व्रत करता है। वह प्रसन्न और निरोग होकर अपना पूरा जीवन व्यतीत करता है।

सिंह संक्रांति के दिन प्रदोष व्रत करने की विधि 

  • Pradosh vrat का पूजन करने के लिए शाम का समय अच्छा माना जाता है।
  • पंचांग के अनुसार शाम के समय शिव मंदिरों में प्रदोष मंत्र का जाप किया जाता है।
  • भगवान शिव की पूजा करने के लिए बेलपत्र, अक्षत, दीया, धूपऔर गंगाजल का प्रयोग किया जाता है।
  • इस व्रत में भोजन ग्रहण नहीं किया जाता।
  • पूरा दिन व्रत रखने के बाद सूर्य अस्त से कुछ देर पहले स्नान किया जाता है।
  • स्नान करने के बाद सफेद रंग के वस्त्र धारण किए जाते हैं।
  • पूजा के स्थान को साफ पानी गंगाजल से शुद्ध किया जाता है ।
  • इसके बाद गाय के गोबर से मंडप तैयार किया जाता है।
  • 5 अलग-अलग रंगों की मदद सेमंडप में रंगोली बनाई जाती है।
  • पूजा की सारी तैयारी करने के बादभगवान शिव की पूजा की जाती है और ओम नमः शिवाय का जाप किया जाता है।
  • जाप करते हुए शिवजी को जल चढ़ाया जाता है।

सिंह संक्रांति के दिन प्रदोष व्रत करने के फायदे

  • सिंह संक्रांति के दिन प्रदोष व्रत करने से जीवन में सुख, शांति, निरोग जीवन और लंबी आयु प्राप्त की जा सकती है।
  • प्रदोष व्रत का संबंध सूरज से होता है और चंद्रमा के साथ सूर्य भी मनुष्य के जीवन में सक्रिय रहता है।
  • इसलिए चंद्रमा और सूर्य से दोनों अच्छे फल देते हैं ।
  • जिस व्यक्ति की कुंडली में सूरज कमजोर होता है। उस व्यक्ति को यह व्रत करने से सूरज से संबंधित सारी परेशानियों से छुटकारा मिल जाता है।
  • जो व्यक्ति प्रदोष व्रत करता है वह संकटों से दूर रहता है।

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