परशुराम का वंश और कैसे ब्राह्माण से क्षत्रिय बनकर परशु उठाया, Parshuram’s lineage and how he became a Kshatriya from a Brahmin and took up Parashu

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भगवान श्री नारायण के अवतारों में छठवां अवतार श्री परशुराम जी का माना जाता है जिनका जन्म वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हुआ था. इनका जन्म स्थल जम्मू कोटि सिन्धु वन सिरमौर राज्य में है जहाँ इनके जन्म से पहले ही वहां देवी देवता आकर बसने लगे थे. 

पौराणिक शास्त्रों के मतानुसार जब संसार में आर्य मर्यादा का उल्लंघन करने वाले नारकीय क्षत्रि ब्राह्मणों को सताने लगते हैं  और अपने ही नाश के लिए दैववश बहुत बढ़ जाते हैं तो तब भगवान महापराक्रमी परशुरामजी के रूप में अवतीर्ण होते हैं और अपने तीखी धार वाले फरसे से  इक्कीस बार उनका संहार करके पृथ्वी का भार हल्का करते हैं.

भगवान परशुराम का अवतार दुष्ट राजाओं विशेषकर पापात्मा हैह्यवंशियों का नाश करने के ही हुआ था. इस सन्दर्भ में विष्णु पुराण, स्कन्द पुराण , हरिवंश पुराण और भविष्य पुराण में विस्तार से जिक्र है. परशुराम जी रूद्र और नारायण दोनों के अंशावतार हैं. वे क्रोधी नहीं बल्कि क्रांतिकारी है.

क्रोध रूद्र है और संहार रूद्र ही कर सकता है. परशुराम जी के बारे यह बात बहुत अधिक प्रचलित है कि पिता के कहने पर उन्होंने पनी माता का वध कर दिया था. क्या कोई अपनी माँ का वध कर सकता है? क्या ऐसा साहस अथवा अपराध किया जा सकता है वो भी उस युग में? वो भी एक अवतार के हाथों?

यदि परशुराम मातृ –हन्ता हैं तो वो क्रोध के कारण नहीं अपितु पितृ –आज्ञा की कारण. परशुराम अपने पिता ऋषि जद्ग्नी की शक्तियों से परिचित थे. परशुराम के बारे में जो बात आती है कि उन्होंने 21 बार अपने परशु से क्षत्रियों का नाश किया था तो आपको बता दें कि वे क्षत्रिय हैहेयवंशीय क्षत्रिय थे. 

माहिष्मती के राजा सहस्त्रबाहू अर्जुन ने ऋषि जमदग्नि से उनकी कामधेनु गौ हथियाने के लिए परशुराम के माता पिता रेणुका और जमदग्नि का वध कर दिया था जिसके बाद परशुराम ने उन क्षत्रियों को धरती से समूल नाश कर देने की प्रतिज्ञा ले ली. परशुराम हजारों अश्वमेध यज्ञ करके पूरी धरती के स्वामी बन चुके थे. 

जिसके बाद ऋषि कश्यप ने एक यज्ञ में उनसे दान में धरती मांग ली. जिसके बाद परशुराम ने समुद्र में बाण चलाया जो दो भागों में विभक्त हो गए और बीच से जो स्थान बाहर आया वो महेंद्रगिरी कहलाया. परशुराम उसी महेंद्रगिरी पर्वत पर वास करने लगे. परशुराम को चिरंजीवी माना जाता है.

परशुराम जी का पितृ वंश –

ब्रह्मा जी के पुत्र हुए अत्री. ऋषि अत्री के तीन पुत्र हुए-  दत्त, चंद्रमा और दुर्वासा. चंद्रमा के पुत्र हुए  बुध और उनके पुत्र का नाम हुआ पुरुरवा. इनके फिर छ: पुत्र हुए- आयु, श्रुतायु, सत्यायु, रय,विजय,जय . इनमे विजय के पुत्र हुए भीम, पुत्र कांचन, पुत्र होत्र, पुत्र जह्नु, पुत्र पुरु, पुत्र बलाक, पुत्र अजक,पुत्र कुश. इसके बाद कुश का वंश चला. कुश के चार पुत्र हुए- कुशाम्बू, तनय, वसु,कुशनाभ. कुशनाभ के पुत्र हुए गाधि, गाधि पुत्र कुश. कुश के पुत्र हुए विश्वमीत्र, पुत्री सत्यवती. सत्यवती का विवाह हुआ ऋषि ऋचीक से जिनके पुत्र हुए जमदग्नि. और ऋषि जमदग्नि के पुत्र हुए परशुराम जी. 

परशुराम जी की माता देवी रेणुका एक क्षत्राणी थी और पिता एक ऋषि..पशुराम में माता के गुण कैसे आये और वे ब्राह्मण होकर भी क्षत्रिय की भांति क्यूँ परशु उठाये इसके पीछे भी एक कथा है उसे भी हम आगे विस्तार से जानेंगे.

माता रेणुका को मिला है देवी का स्थान.

परशुराम की माता और जमदग्नि की पत्नी देवी रेणुका जिनकी पतिव्रत धर्म का प्रताप ऐसा था कि वो रोज़ सुबह कच्चे घड़े से जल भरकर लाती थी. वो वंश से अवश्य क्षत्राणी थी किन्तु उन्होंने पति की सेवा करके एक दिव्य स्त्री बन गयी थी. एक दिन उन्होंने नदी किनारे गन्धर्व कुमारों और राजकुमारियों को जल क्रीडा करते देखा और उनका भी मन ऐसी ही क्रीडा करने का हुआ. 

ऋषिवर जमदग्नि अपने अंतर्मन से सब जान गए और उन्होंने रेणुका के घर आते ही पुत्र राम से कहा कि वो अपनी माँ की शीश काट दे.. पशुराम बिना कोई प्रश्न किये झट से माँ की शीश काट देता है. तब पिता जमदग्नि पुत्र को वरदान मांगने के लिए कहते हैं. तब परशुराम वरदान में अपनी माँ के प्राण वापस मांग लेता है. 

मैं ऊपर ही लिखा चुका था कि परशुराम को अपने पिता की सिद्धियों पर संदेह था ना माता के विचारों पर. देवी रेणुका को श्रेष्ठ माता का दर्ज़ा प्राप्त हुआ है. उन्हें बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी भी माना जाता है . भारत में कई स्थानों पर रेणुका माता मंदिर हैं जहाँ उनकी पूजा होती है.    

कैसे आया ब्राह्मण से क्षत्रिय व्यवहार?

राजा कुंश की पुत्री सत्यवती को देखते ही ऋषिवर ऋचीक ने उनसे विवाह का मन बना लिया. किन्तु कुश इस विवाह के समर्थन में नहीं थे. क्यूँ कि सत्यवती उनकी एक एकलौती पुत्री था. कुश का कोई पुत्र नहीं था इसलिए वे अपनी पुत्री का विवाह किसी क्षत्रिय से करवाना चाहते थे. मगर ऋचीक ने इस समस्या के समाधान के लिए अपने विवाह बाद सत्यवती और उनकी माँ को एक एक पुत्र का वरदान देते हुए दो चरु दिए . और दोनों को एक – एक तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया. 

मगर माँ ने अधिक तेजस्वी पुत्र प्राप्त करने के लोभ में अपनी पुत्री के चरु का भोग का लिया जिसके बाद जब उनके संतान हुए तो उनके संतानों पर उन्ही वरदानों का उल्टा प्रभाव हुआ. विश्वामित्र एक राज ऋषि हो गए और परशुराम एक ब्राह्मण होकर क्षत्रिय की भांति परशु धारण कर लिया. किन्तु ये सब ईश्वर की लीला थी. परशुराम को नारयण के अंशावतार रूप में जन्म लेना था ताकि वो दुष्ट क्षत्रियो का संहार करते.

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