भूतडामर तन्त्र पटल ७ – Bhoot Damar Tantra Patal 7, भूतडामरतन्त्रम् सप्तम पटलम्

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तन्त्र श्रृंखला में आगमतन्त्र से भूतडामर महातन्त्र अथवा  भूतडामरतन्त्र के पटल ६ में महामण्डलवर्णन क्रोधमन्त्रवर्णन क्रोधसाधनी मुद्रा क्रोधपति मन्त्र को दिया गया, अब पटल ७ में देवतामारण- प्रकार, भैरवमारण-प्रकार, महाकालमारण-प्रकार का वर्णन हुआ है।

भूतडामरतन्त्रम् सप्तम: पटल:

भूतडामरतन्त्र सातवां पटल 

भूतडामर महातन्त्र

अथ सप्तमं पटलम्

उन्मत्त भैरव्युवाच

त्रिजगद्वन्द्यदेवेश ! सर्वलोकभयङ्कर ! ।

देवतामारणं ब्रूहि वीरं सिध्यति साधने ॥ १ ॥

उन्मत्त भैरवी कहती हैं- हे देवेश्वर ! आप सब लोको में भय का उत्पादन करते हैं और तीनों लोकों में पूज्य हैं। आप देवतामारण-विधि का उपदेश करें, जिससे वीरगण सिद्ध हो जाते हैं ॥। १॥

उन्मत्त भैरव उवाच

अथातः सम्प्रवक्ष्यामि येन सिद्धिर्भवेद् ध्रुवम् ।

देवता म्रियते वापि मूर्ध्नि स्फुटति शुष्यति ॥ २ ॥

उन्मत्तभैरव कहते हैंअब सिद्धि-विधान कहता हूँ, जिससे देवताओं का मारण होता है और उनका शिर फट जाता है; साथ ही शरीर भी सूख जाता है ।। २ ।।

सम्पूज्य ह्ययुतं वामपादेनाक्रम्य सञ्जपेत् ।

स्वयमायात्युमा देवी भार्या भवति यच्छति ।

रसं रसायनं दिव्यं दिव्यकामिकभोजनम् ।

सिद्धाद्यदानपक्षे तु लेपयेद् वृषभध्वजम् ॥ ३ ॥

वामपाद द्वारा आक्रमण करके पूजा तथा १०००० जप करने से उमादेवी आकर नाना रस रसायन, दिव्य भोजन द्रव्य प्रदान करती हैं ॥ ३ ॥

( इस श्लोक का सम्पूर्ण अर्थ नहीं दिया जा रहा है। )

आक्रम्य वामपादेन मन्त्रमुच्चारयेदमुम् ।

आदिबीजं ज्वलयुगं वज्रेणेति पदं ततः ।

मारयद्वयमाभाष्य सकर्म साध्यमुद्धरेत् ।

ततः क्रोधद्वयं चास्त्रं जपेदष्टसहस्रकम् ।

जपमात्रेण सिध्यन्ति भूतिन्या म्रियते तथा ॥ ४ ॥

श्रीदेवीं वामपादेनाक्रम्य मन्त्रायुतं जपेत् ।

श्रीदेव्यायाति दद्याच्च कुसुमासनमुत्तमम् ।

वक्तव्यं स्वागतं भार्या कामिता राज्यदा भवेत् ॥ ५ ॥

गोरोचन से लक्ष्मीदेवी का चित्र बनाये। उसे बायें पैर से मारते हुए १०००० जप करे । इससे लक्ष्मीदेवी स्वयं आती है। तत्क्षण पुष्पासन प्रदान करके स्वागत करे। जब वे वर माँगने को कहें तब उन्हें भार्या कहे। देवी साधक की कामना पूर्ण करके राज्य देती हैं ।। ४-५ ।।

भैरवीं वामपादेनाक्रम्य मन्त्रायुतं जपेत् ।

भैरवी शीघ्रमागत्य चेटीकर्म करोति च ॥ ६ ॥

भैरवी को वाम पाद से आक्रान्त करके इसी प्रकार १०००० जप करे( जैसे श्लोक ६ में है ) । भैरवी शीघ्र आकर दासी बन जाती हैं ।। ६ ।।

चामुण्डां वामपादेनाक्रम्य मन्त्रायुतं जपेत् ।

शीघ्रमागत्य चामुण्डा दासीवद्वश्यतामियात् ॥ ७ ॥

इसी प्रकार चामुण्डा को वाम पाद से आक्रान्त करते हुए १०००० जप करे । इससे वे तत्क्षण आकर दासी की तरह वशीभूता हो जाती है ॥ ७ ॥

अनेनैव विधानेन पूजयेत् सर्वदेवताम् ।

गत्वैकलिङ्गं सम्पूज्य जपेदष्टसहस्रकम् ।

वामपादेन चाक्रम्यान्वहं सप्तदिनानि च ।

महादेवः समागत्य राज्यं यच्छति कामिकम् ।

यदि यच्छति नागत्य म्रियते शुष्यते ध्रुवम् ॥ ८ ॥

इसी प्रकार से समस्त देवताओं की पूजा करे और शिवलिंग की पूजा करके ८००० जप करे । इसी प्रकार से वामपाद से आक्रान्त करते हुए सात दिन जप करने पर महादेव स्वयं आकर साधक की कामना परिपूर्ण करते हुए राज्य प्रदान करते हैं । यदि ऐसा नहीं करते तब देवता की मृत्यु हो जाती है अथवा उनका शरीर शुष्क हो जाता है ॥ ८ ॥

जपेदष्टसहस्रन्तु प्राग्वत् सप्तदिनानि च ।

नारायणं वामपादेनाक्रम्यायाति यच्छति ।

प्रार्थितं किङ्करो भूत्वा म्रियते शुष्यतेऽपि च ।। ९ ।

पूर्ववत् सप्ताह पर्यन्त प्रतिदिन वामपाद से आक्रमण करते हुए ८००० नारायण मन्त्र नित्य जपे । इससे देवता साधक के दास होकर प्रार्थित वस्तु देते हैं। यदि ऐसा नहीं करते तब उनका शरीर सूख जाता है अथवा वे मृत्यु को प्राप्त होते हैं ।। ९ ।।

ब्रह्माणं वामपादेनाक्रम्य प्राग्वत् जपेत् सदा ।

आगत्य किङ्करः स स्यादन्यथा म्रियते ध्रुवम् ॥ १० ॥

पूर्ववत् वामपद से आक्रमण करके ब्रह्मा का मन्त्र जपे । इससे ब्रह्मा साधक के दास हो जाते हैं। यह अन्यथा होने पर वे मृत्यु को प्राप्त होते हैं अथवा उनका शरीर सूख जाता है ॥ १० ॥

आदित्यं वामपादेनाक्रम्य सप्तदिनानि च ।

जपेदष्टसहस्र वागत्य सिद्धि प्रयच्छति ।

अन्यथा म्रियते जप्त एवं चन्द्रः प्रयच्छति ।

शतं स्वर्णपलं दद्यादन्यथा म्रियते ध्रुवम् ।। ११ ।।

वामपाद से आक्रमण करते हुए ७ दिन आदित्यमन्त्र जपे ( प्रतिदिन ८००० ) । इससे आदित्य सिद्धि देते हैं, अन्यथा उनकी मृत्यु हो जाती हैं । इसी तरह चन्द्रमन्त्र का ७ दिन जप करने से वे साधक को प्रतिदिन एक पल सुवर्ण देते हैं, अन्यथा देवता की मृत्यु अवश्य हो जाती है ।। ११ ।।

भैरवं वामपादेनाक्रम्य सप्तदिनानि च ।

जपेदष्टसहस्रन्तु पूजयेच्च प्रयत्नतः ।

दीपं मनुष्यतैलेन धूपं मासेन दापयेत् ।

आमिषेणैव नैवेद्यं कृत्वा मन्त्रं जपेत् पुनः ।

अर्द्धरात्रव्यतीते तु महानादं विमुञ्चति ।

कुरुतेऽट्टाट्टहासञ्च वदेत्तं भक्षयाम्यहम् ।

भयं तत्र न कर्त्तव्यं क्रोधबीजमनुं स्मरेत् ।

मन्त्रोच्चारणमात्रेण सुस्थः साध्योऽत्र भैरवः ।

दद्यात्त्रधातुकं राज्यं सर्वाशाः पूरयत्यपि ।

क्रोधभीत्या विनश्यन्ति सर्वलौकिकदेवताः ।। १२ ।।

वामपाद से आक्रमण करके भैरव मन्त्र ७ दिन ( ८००० नित्य ) जपे । प्रतिदिन जपान्त में पूजा करे, मनुष्य-तैल से दीप जलाये और मनुष्य-मांस द्वारा धूपदान करे। तदनन्तर मांस का नैवेद्य देकर जप करे। ऐसा करते-करते आधी रात में एक महाशब्द सुनाई पड़ता है। तदनन्तर अट्टहास के उपरान्त सुनाई पड़ता है कि मैं ( तुम्हें ) खाऊँगा। साधक भयभीत न होकर क्रोधमन्त्र का जप करे । मन्त्र के स्मरण मात्र से देवता शान्त होकर साधक की आशा परिपूर्ण करके त्रैलोक्य का राज्य प्रदान करते हैं। इस प्रकार से सिद्ध होने पर भी क्रोधराज के भय से समस्त लौकिक देवता ( पिशाचादि ) नष्ट हो जाते हैं ।। १२ ।।

वामपादेन चाक्रम्य नटेशं पूर्ववज्जपेत् ।

आगत्य किङ्करः स स्यादन्यथा म्रियते ध्रुवम् ॥ १३ ॥

वामपाद से आक्रमण करते हुए पूर्ववत् विधि से नटेश्वर का मन्त्र जपे । नटेश्वर जपान्त में आकर साधक के दास बन जाते हैं। ऐसा न करने पर उनकी मृत्यु हो जाती है ।। १३ ।।

महाकालं वामपादेनाक्रम्याष्टसहस्रकम् ।

दिनानि सप्त प्रजपेदागच्छति गणान्वितः ।

चेटको भवति क्षिप्रमन्यथा म्रियते क्षणात् ॥ १४ ॥

वामपाद से आक्रमण करते हुए ७ दिन पर्यन्त ८००० महाकाल मन्त्र जपे । जपान्त में महाकाल अपने परिजनों के साथ आते हैं और साधक के दास बन जाते हैं । अन्यथा तत्क्षण महाकाल की मृत्यु हो जाती है ।। १४ ।।

ईश्वरायतनं गत्वाऽयुतं सप्त दिनानि च ।

जपेच्चतुर्मुखं वामपादेनाक्रम्य साधकः ।

आगत्य परिवाराढ्यः किङ्करो भवति क्षणात् ।

आरोप्य पृष्ठे त्रिदिवं दर्शयत्यपि यच्छति ।

समानीयोवंशीं देवीं भोज्यं काम्यं रसायनम् ।

अन्यथा म्रियते प्राह स्वयं क्रोधाधिपोऽसकृत् ।

एवं संसाधयेत् सिद्धि कैङ्करीं क्रोधभक्तितः ।। १५ ।।

शिवालय में ७ दिन पूर्ववत् चतुर्मुख ब्रह्मा को वामपाद से आक्रान्त करते हुए प्रतिदिन १०००० जप करें। जपान्त में चतुर्मुख अपने परिवार के साथ आकर साधक के दास हो जाते हैं तथा साधक को पीठ पर बैठाकर स्वयं ले जाते हैं, उर्वशी अप्सरा को ले आते हैं, विविध प्रकार के भोजन देते हैं, इच्छित पदार्थों तथा रस रसायनों को देते हैं। ऐसा न करने पर चतुर्मुख की मृत्यु हो जाती है, इस प्रकार क्रोधराज ने बार-बार कहा है। क्रोधराज के प्रति भक्ति करने से ये सब सिद्धियाँ मिल जाती हैं ।। १५ ।।

इति भूतडामरे महातन्त्रे कैङ्करीसाधनं नाम सप्तमं पटलम् ।

भूतडामर महातन्त्र का सातवाँ पटल समाप्त ।

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