Breaking India: Western Interventions in Dravidian and Dalit Faultlines – Rajiv Malhotra | Hindi pdf download || भारत विखंडन- राजीव मल्होत्रा
महाशक्ति या विखण्डित युद्ध क्षेत्र?
सभ्यता हमें एक साझी पहचान देती है, जो जन समुदाय के रूप में हमारी छवि, इतिहास के एक समेकित दृष्टिकोण, और एक साझी नियति को मिलाकर बनती है। यह एक निश्चित समझ देती है कि ‘हम’ कौन हैं, और हमारे बीच एक गहरा मानसिक सम्बन्ध सनिश्चित करने के साथ यह भाव भी उपजाती है कि यह देश रक्षा करने योग्य है। बिना इस गहरे सम्बन्ध के ऐसे प्रश्न उपस्थित ही नहीं होते कि कौन है यह ‘हम’ जिसकी रक्षा की जानी है, और बलिदान किसलिए करने हैं? किसी सभ्यता को विखण्डित करना व्यक्ति के मेरुदण्ड को तोड़ने के समान है। एक विखण्डित सभ्यता बिखर कर टुकड़े-टुकड़े हो सकती है, और जिन क्षेत्रों को विखण्डित किया गया है वे अन्धकार भरे रूपान्तरण के माध्यम से दुष्ट राज्यों में बदल सकते हैं. एक सम्पूर्ण क्षेत्र को विराट हिंसा और उपद्रव से ग्रस्त विनाशकारी स्थितियों में डालते हुए। क्या भारतीय सभ्यता का मेरुदण्ड ऐसे ही विखण्डन का शिकार हो सकता है? और वे कौन-सी शक्तियाँ हैं, अगर हैं, जो ऐसा करने का प्रयास कर रही है? वे बाहरी हैं या आन्तरिक, या दोनों? उनका स्रोत कहाँ है? वे कैसे विकसित होती हैं? उनका प्रबन्धन कैसे होता है? यह पुस्तक ऐसे ही प्रश्नों पर विचार करती है, विशेषकर द्रविड़ और दलित पहचान के सन्दर्भ में, और इनका लाभ उठाने में लगे पश्चिम के देशों की भूमिका के बारे में।
Superpower or disbanded war zone?
Civilization gives us a shared identity, which is formed by combining our image as a mass community, a cohesive view of history, and a common destiny. It gives a definite understanding of who ‘we’ are, and along with ensuring a deep mental connection between us, the feeling that this country is worth protecting. Without this deep connection, such questions do not exist, who is this ‘we’ that has to be protected, and what is the sacrifice to do? To disintegrate a civilization is like breaking a person’s backbone. A fragmented civilization can disintegrate and crumble, and the regions that have been fragmented can turn into evil kingdoms through a dark transition. Placing an entire region in devastating situations prone to rampant violence and nuisance. Can the spine of Indian civilization be the victim of such fragmentation? And what are those powers, if any, that are trying to do? Are they external or internal, or both? Where is their source? How do they develop? How are they managed? This book considers similar questions, particularly in the context of Dravidian and Dalit identities, and the role of Western countries in taking advantage of them……..