पकड़ा गया शेर Pakada Gaya Sher Tenalirama Stories

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तेनालीराम कई दिन बाद अपने गांव गया तो पता चला कि गांव वाले एक शेर के कारण बहुत दुखी हैं। शेर जंगल से भागकर गांव में आ गया था और पास ही झाड़ियों में छिपकर रह रहा था। गांव के कई लोगों को उसने अपना शिकार बनाया था।

जब तेनालीराम घर पहुंचा, तो एक बूढ़े आदमी ने कहा – अरे, तेनालीराम तुम्हारी चतुराई के चारों ओर खूब चर्चे हैं तो तुम शेर के आतंक से गांव वालों को क्यों नहीं बचाते?

तेनालीराम चकराया। बोला – लेकिन शेर को तो शिकारी पकड़ेंगे। मैं भला इसमें क्या कर सकता हूं? हां, वापस राजदरबार जाऊंगा तो किसी कुशल शिकारी को यहां भेज दूंगा। जो आप लोगों को शेर के आतंक से मुक्त कराए।

तब तक तो यह दुष्ट शेर और कईयों को अपना शिकार बना लेगा। जो तुमसे हो सकता है करो। तुम्हारे लिए यह इतना मुश्किल तो नहीं है – उस बूढ़े आदमी ने थोड़ी नाराजगी से कहा। गांव में एक युवक तेनालीराम से बहुत जलता था। उसने तीखे कटाक्ष के साथ कहा – अरे रहने दीजिए इनकी चतुराई तो राजमहल में ही चलती है, गांव में आते ही सारी चतुराई हवा हो जाती है। यह भला क्या करेंगे और क्यों करेंगे?

तेनालीराम कुछ बोला नहीं, चुप रहा। अगले दिन उसने पजा लगाया कि शेर अक्सर गांव की बाहरी सीमा पर पूर्व से पश्चिम की ओर जाता है। वहीं उसके पैरों के निशान थे। ज्यादातर गांव वालों को यह बात पता थी, इसलिए अब वे उधर नहीं जाते थे। पर अनजान लोगों को यह सब पता नहीं था और वे शेर के चंगुल में फंसकर मर जाते थे। रोज कोई न कोई हादसा हो जाता था।

तेनालीराम ने कुछ देर सोचा। फिर कहा- कुछ नौजवान हाथ में लाठी, रस्सी और फावड़ा लेकर मेरे साथ चलें। मैं देखना चाहता हूं, वह जगह कौन-सी है? शेर नहीं तो जरा शेर के पावों के ही दर्शन कर लूं। सुनकर सब मुस्कुराए।

आखिर तेनालीराम सबके साथ उस जगह पहुंचा, जहां शेर ने ज्यादातर लोगों का शिकार किया था। उसने चारों तरफ नजरें दौड़ाई, फिर बीच में एक जगह गड्ढ़ा खोदने के लिए कहा। फिर उस गड्ढ़े को घास-फूस और झाड़ियों से अच्छी तरह से ढक दिया। गडढ़े के दूसरी और एक बकरी बांध दिया गया। फिर सब एक ऊंचे मचान पर बैठ गए।

थोड़ी देर में ही शेर के आने की आहट सुनकर बकरी मिमयाने लगी। बकरी जितनी तेजी से मे-मे चिल्ला रही थी, शेर भी उतनी ही तेजी से पूंछ उठाए उसकी ओर चला जा रहा था पर थोड़ा आगे आते ही अचानक गड्ढ़े में उसका पैर पड़ा और वह धप्प से उसमें गिर गया। उसी समय झटपट गांव के जवान लाठियां लिए हुए आए और शेर को बांधकर एक जंगल में छोड़ आए। फिर जंगल और गांव के बीच बड़े-बड़े कंटीले तार लगवा दिए गए।

कुछ दिन बाद छुट्टियां खत्म होते ही तेनालीराम अपने गांव से राजदरबार पहुंचा। तब तक शेर को पकड़ने का किस्सा भी विजयनगर में पहुंच चुका था। राजा कृष्णदेव राय ने तेनालीराम से पूछा – सुना है तेनालीराम तुमने गांव में कोई शेर पकड़ा है, तुम्हें डर नहीं लगा?

तेनालीराम हंसकर बोला – महाराज यहां राजदरबार में ऐसे-ऐसे महान शूरवीरों के व्यंग बाण झेलता हूं और उन्हें भी बर्दाश्त करता हूं। तो फिर भला जंगल का एक अदना-सा शेर मेरा क्या बिगाड़ लेता? सुनकर महाराज हंस पड़े, परन्तु मंत्री और राजदरबारी कुछ झेंप गए थे।

शिक्षा (Tenali’s Moral): समझदारी और चालाकी में जमीन-आसमान का अन्तर है। कई बार सामने वाले को सबक सिखाने के लिए चालाकी से भी काम लेना पड़ता है।

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