गणेश चालीसा || Ganesh chalisa
हिंदू धर्म के लोगों की धर्म में बहुत आस्था है। हिंदू धर्म में बहुत से देवी-देवताओं की पूजा की जाती है। लेकिन सबसे पहले गणेश जी की पूजा करने का विधान है। आज हम जानेंगे ऐसा क्यों है, क्यों सभी देवताओं से पहले गणेश जी की पूजा होती है और इसके पीछे की कहानी क्या है।
|| श्री गणेश चालीसा (Ganesh Chalisa) ||
जय गणपति सद्गुण सदन कविवर बदन कृपाल।
विघ्न हरण मंगल करण जय जय गिरिजालाल॥
जय जय जय गणपति राजू। मंगल भरण करण शुभ काजू॥
जय गजबदन सदन सुखदाता। विश्व विनायक बुद्धि विधाता॥
वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन। तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥
राजित मणि मुक्तन उर माला। स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं। मोदक भोग सुगन्धित फूलं॥
सुन्दर पीताम्बर तन साजित। चरण पादुका मुनि मन राजित॥
धनि शिवसुवन षडानन भ्राता। गौरी ललन विश्व-विधाता॥
ऋद्धि सिद्धि तव चँवर डुलावे। मूषक वाहन सोहत द्वारे॥
कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी। अति शुचि पावन मंगल कारी॥
एक समय गिरिराज कुमारी। पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी॥
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा। तब पहुंच्यो तुम धरि द्विज रूपा।
अतिथि जानि कै गौरी सुखारी। बहु विधि सेवा करी तुम्हारी॥
अति प्रसन्न ह्वै तुम वर दीन्हा। मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा॥
मिलहि पुत्र तुहि बुद्धि विशाला। बिना गर्भ धारण यहि काला॥
गणनायक गुण ज्ञान निधाना। पूजित प्रथम रूप भगवाना॥
अस कहि अन्तर्धान रूप ह्वै। पलना पर बालक स्वरूप ह्वै॥
बनि शिशु रुदन जबहि तुम ठाना। लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना॥
सकल मगन सुख मंगल गावहिं। नभ ते सुरन सुमन वर्षावहिं॥
शम्भु उमा बहुदान लुटावहिं। सुर मुनि जन सुत देखन आवहिं॥
लखि अति आनन्द मंगल साजा। देखन भी आए शनि राजा॥
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं। बालक देखन चाहत नाहीं॥
गिरजा कछु मन भेद बढ़ायो। उत्सव मोर न शनि तुहि भायो॥
कहन लगे शनि मन सकुचाई। का करिहौ शिशु मोहि दिखाई॥
नहिं विश्वास उमा कर भयऊ। शनि सों बालक देखन कह्यऊ॥
पड़तहिं शनि दृग कोण प्रकाशा। बालक शिर उड़ि गयो आकाशा॥
गिरजा गिरीं विकल ह्वै धरणी। सो दुख दशा गयो नहिं वरणी॥
हाहाकार मच्यो कैलाशा। शनि कीन्ह्यों लखि सुत को नाशा॥
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधाए। काटि चक्र सो गज शिर लाए॥
बालक के धड़ ऊपर धारयो। प्राण मन्त्र पढ़ शंकर डारयो॥
नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे। प्रथम पूज्य बुद्धि निधि वर दीन्हे॥
बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा। पृथ्वी की प्रदक्षिणा लीन्हा॥
चले षडानन भरमि भुलाई। रची बैठ तुम बुद्धि उपाई॥
चरण मातु-पितु के धर लीन्हें। तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें॥
धनि गणेश कहि शिव हिय हरषे। नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे॥
तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई। शेष सहस मुख सकै न गाई॥
मैं मति हीन मलीन दुखारी। करहुं कौन बिधि विनय तुम्हारी॥
भजत रामसुन्दर प्रभुदासा। लख प्रयाग ककरा दुर्वासा॥
अब प्रभु दया दीन पर कीजै। अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै॥
|| दोहा ||
श्री गणेश यह चालीसा पाठ करें धर ध्यान।
नित नव मंगल गृह बसै लहे जगत सन्मान॥
सम्वत् अपन सहस्र दश ऋषि पंचमी दिनेश।
पूरण चालीसा भयो मंगल मूर्ति गणेश॥
प्रथम पूज्य गणेश जी गणेश जी को प्रथम पूज्य भी कहा जाता है। इसके पीछे एक कहानी है। तो आइए जानते हैं कहानी। एक बार सभी देवता अपने आप को श्रेष्ठ साबित करने की कोशिश कर रहे थे। और एक दूसरे से कह रहे थे कि मेरी पूजा पहले होनी चाहिए। सभी देवताओं में वाद विवाद हो रहा था कि किसकी पूजा सबसे पहले होनी चाहिए। सभी देवता अपने प्रश्न को लेकर ब्रह्मा जी के पास गए और उनसे कहा कि आप बताएं
ब्रह्मदेव की सबसे पहले पूजा किसकी हो..?
इसका निर्णय करने से पहले ब्रह्मा जी ने एक प्रतियोगिता का आयोजन किया और उन्होंने कहा कि जो जो देवता पृथ्वी की सात प्रदक्षिणा करके सबसे पहले आएगा वही प्रथम पूज्य देव कहलाएगा। सभी देवता अपने वाहन पर विराजमान होकर पृथ्वी की प्रदक्षिणा करने लगे। गणेश जी का वाहन चूहा था। अब चूहे पर बैठकर पूरी पृथ्वी की सात प्रदक्षिणा करके सबसे पहले पहुंचना असंभव था। गणेश जी बुद्धिमान थे और उन्होंने अपने माता पिता शिवजी और पार्वती जी की सात प्रदक्षिणा कर ली और वही विराजमान हो गए। जब सभी देवता पृथ्वी की सात प्रदक्षिणा करके वहां पहुंचे तो गणेश जी पहले से ही वहां विराजमान थे। जब उनसे पूछा गया कि आपने पृथ्वी की प्रदक्षिणा क्यों नहीं की..? तो गणेश जी ने कहा मेरे लिए तो मेरे माता-पिता ही मेरी पृथ्वी है, मेरे माता-पिता ही मेरा ब्रह्मांड है, तो मैंने इन्हीं की प्रदक्षिणा कर ली। उनका जवाब सुनकर सभी आश्चर्यचकित हो गए और ब्रह्मदेव ने गणेश जी को ही प्रथम पूज्य देवता का वरदान दिया। इस प्रकार गणेश जी अपनी बुद्धिमानी के कारण प्रथम पूज्य देवता कहलाए। किसी भी शुभ कार्य में गणेश जी की पूजा सर्वप्रथम होती है। शादी में भी सर्वप्रथम गणेश जी को ही निमंत्रण पत्र भेजा जाता है।
पुराणों में भी श्री गणेश जी के बारे में कहा गया है…
“चरण मात-पितु के धर लिन्हे,
तिनके सात प्रदक्षिणा किन्हे’
धनि गणेश कही शिव हिय हर्ष्यो,
नभ ते सुरण-सुमन बहु बरस्यो।”
श्री गणेश जी के लिए उनका पूरी दुनिया, ब्रह्मांड उनके माता-पिता ही हैं। जब गणेश जी ने शिव और पार्वती जी की सात प्रदक्षिणा कि तब पुष्पों की बरसात हुई और उन्हें प्रथम पूज्य देवता होने का गौरव प्राप्त हुआ।
गणेश चालीसा का पाठ करने का महत्व/फायदे Benefits of Ganesh Chalisa Hindi
- गणेश जी का चालीसा का पाठ करने से घर में आर्थिक समृद्धि आती है।
- गणेश चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति बुद्धिमान होता है।
- गणेश जी का चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति में आत्मविश्वास की वृद्धि होती है, एकाग्रता बढ़ती है।
- व्यापार में वृद्धि होती है।
- घर में संपन्नता होती है।
- गणेश जी विघ्नहर्ता है, इसलिए इनका पाठ करने से सभी विघ्न दूर होते हैं और कार्य सफल होता है। गणेश जी बुध ग्रह के स्वामी हैं, इसलिए इनकी पूजा करने से विवाह में होने वाली बाधाएं दूर होती हैं।
- गणेश जी की पूजा करने से घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
- गणेश जी का पाठ करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा की वृद्धि होती है।
- गणेश जी का पाठ करने से शत्रुओं का नाश होता है।
गणेश जी के मंत्र Shri Ganesh Mantra
गणेश जी विघ्नहर्ता हैं। इसलिए गणेश जी की पूजा करने से सारी बाधाएं दूर होती है। गणेश जी के कुछ मंत्र हैं, जिनका पाठ करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है और कार्य बिना किसी बाधा के सफल होता है।आइये जानते हैं गणेश जी के मंत्र…
तांत्रिक गणेश मंत्र:
ॐ ग्लौम गौरी पुत्र, वक्रतुंड, गणपति गुरू गणेश।
ग्लौम गणपति, ऋदि्ध पति, सिदि्ध पति, मेरे कर दूर क्लेश।।
इस मंत्र का 108 बार जाप करना चाहिए। सुबह स्नान आदि से निवृत होकर भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश जी की पूजा करने के पश्चात इस पाठ का जाप करना चाहिए। इस मंत्र का जाप करने से जीवन के सभी दुख, दर्द और समस्याएं दूर हो जाती है।
गणेश गायत्री मंत्र:
ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुंडाय
धीमहि तन्नो बुदि्ध प्रचोदयात।।
गणेश जी के इस मंत्र का पाठ बुधवार के दिन किया जाना चाहिए। इसका पाठ बुधवार के दिन से शुरू करना चाहिए। इस मंत्र का जाप 108 बार करना चाहिए। इस मंत्र का जाप करने से भाग्य का उदय होता है। जीवन के हर क्षेत्र में सफलता की प्राप्ति होती है।
गणेश कुबेर मंत्र:
ॐ नमो गणपतये कुबेर येकद्रिको फट् स्वाहा।:
गणेश कुबेर मंत्र का जाप करने से व्यक्ति को आर्थिक कष्टों से मुक्ति मिलती हैं। घर में इसका नियमित पाठ करने से व्यक्ति को कर्ज से मुक्ति मिलती है और आमदनी बढ़ती है। घर में पर्याप्त धन की प्राप्ति होती है। सभी सुख सुविधाओं का विस्तार होता है।
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