Guru Nanak Dev Ji Autobiography | गुरु नानक देव का जीवन परिचय : दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्मसुधारक, समाजसुधारक, कवि, देशभक्त, विश्वबन्धु और सिखों के प्रथम गुरु हैं।

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नानक (पंजाबी:ਨਾਨਕ) (कार्तिक पूर्णिमा 1469 – 22 सितंबर 1539) सिखों के प्रथम (आदि )गुरु हैं। इनके अनुयायी इन्हें नानक, नानक देव जी, बाबा नानक और नानकशाह नामों से सम्बोधित करते हैं। नानक अपने व्यक्तित्व में दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्मसुधारक, समाजसुधारक, कवि, देशभक्त और विश्वबन्धु – सभी के गुण समेटे हुए थे। इनका जन्म स्थान गुरुद्वारा ननकाना साहिब पाकिस्तान में और समाधि स्थल करतारपुर साहिब पाकिस्तान में स्थित है।

नानक देव जी
जन्म गुरु नानक देव जी
कार्तिक पूर्णिमा, संवत् १५२७ अथवा 29 October/अक्तूबर 1469
राय भोई की तलवंडी, (वर्तमान ननकाना साहिब, पंजाब, पाकिस्तान, पाकिस्तान)
मृत्यु 22 सितंबर 1539
करतारपुर
स्मारक समाधि करतारपुर
कार्यकाल 1469–1539
पूर्वाधिकारी जन्म से
उत्तराधिकारी गुरु अंगद देव
धार्मिक मान्यता सिख पंथ की स्थापना
जीवनसाथी सुलक्खनी देवी
माता-पिता लाला कल्याण राय (मेहता कालू जी), माता तृप्ता देवी जी के यहां हिन्दू परिवार में
अंतिम स्थान करतारपुर

पीरों के पीर, फकीरों के फ़क़ीर, संतों के संत और गुरुओं के गुरु थे धन श्री गुरु नानक देव जी |

वैसे तो गुरु नानक देव जी के जीवन के बारे में बताना हमारे बस की बात नहीं है | क्यूंकि ना तो मुझ में इतनी बुद्धि है ना ही उनके बारे में बताना संभव है | फिर भी किताबों, ग्रंथों और इंटरनेट के माध्यम से जो जानकारी हमने इकठ्ठा की है उसे हम आपके साथ साँझा करने जा रहे हैं |

जब जब दुनिया में अत्याचार बढ़ता है तब तब इस दुनिया में ईश्वर के भेजे हुए अवतार जन्म लेते हैं | भगवान अधर्म के विनाश और धर्म की स्थापना के लिए सच्चे योद्धाओं और फकीरों को इस धरती पर भेजते रहते हैं |

ऐसे ही एक फकीर थे श्री गुरु नानक देव जी | नयी पीढ़ी जो बहुत तर्कशील है और ईश्वर में बहुत कम यकीन रखती है उन्हें गुरु नानक देव जी की कहानी को ज़रूर पढ़ना चाहिए |

श्री गुरु नानक देव जी का जन्म उस समय में हुआ था जब दुनिया धर्म, जाति और वर्णों के आधार पर बहुत बंटी हुई थी | कबीर दास जी की भांति ही गुरु नानक देव जी भी धर्म, जाति और वर्णों के आधार पर भेदभाव के विरुद्ध थे |

कई लोगों का मानना है के गुरु नानक देव जी और महान संत कबीर एक ही समय काल में थे।

पर कुछ लोग इनके समय काल को अलग मानते हैं पर इतिहासकारों और धर्मगुरुओं के मुताबिक संत कबीर जी बनारस में 1450 ईस्वी से 1520 तक रहे और गुरु नानक देव जी 1469 ईस्वी से 1539 तक थे।

गुरु नानक देव जी की जन्म कथा (Guru Nanak Dev Ji Birthday)

सतगुर नानक प्रगटिया मिटी धुंध जग चानन होया

गुरु नानक का जन्म 29 नवंबर 1469 को हुआ था, लेकिन सिख कैलेंडर के अनुसार उनका जन्म 15 अप्रैल, 1469 को मनाया जाता है |

Guru Nanak Dev Ji का जन्म एक खत्री परिवार में हुआ था | उनके पिता का नाम कल्याण चंद मेहता था जिन्हें लोग मेहता कालू भी कहते थे | उनकी माता का नाम त्रिपता देवी था |

उनका जन्म पाकिस्तान के तलवंडी में हुआ था जो कि आज ननकाना साहिब है |

हिन्दू धर्म की रीत के मुताबिक जब बचपन में उनके माता पिता ने उन्हें जनेऊ पहनना चाहा तो गुरु जी ने मना कर दिया और कहा

दइआ कपाह संतोखु सूतु जतु गंढी सतु वटु ॥ एहु जनेऊ जीअ का हई त पाडे घतु ॥ 

पंडित जी आप दया को कपाह बनाइये, संतोष को धागा, संयम की गांठ लगा कर सत्य का मोड़ बनाइये। ये सच का पवित्र जनेऊ है और अगर आपके यह है तो मुझे पहना दीजिये |

उनकी एक बड़ी बहन भी थी जिसका नाम नानकी था |

गुरु नानक के पिता तलवंडी में पटवारी एक थे | वो चाहते थे कि गुरु नानक पढ़ लिख कर कोई अच्छा बिज़नेस व्यापार करे |

लेकिन गुरु नानक का मन पढ़ाई लिखाई में नही लगता था | वो बचपन से ही ध्यान करने लगे थे | जब उन्हें पंडित जी के पास पढ़ने भेजा तो पंडित जी ने मेहता कालू जी से शिकायत की के गुरु नानक देव जी उनसे ऐसे ऐसे सवाल पूछते हैं जिनके जवाब उन्हें भी नहीं पता। वो पढ़ने की बजाय मुझे ही पढ़ा रहे हैं।

उन्होने अरबी और फ़ारसी भाषाएँ आसानी से सीख ली थी |

गुरु नानक देव जी के चमत्कार (Guru Nanak Dev Miracles)

उनके पिता चाहते थे कि वो पढ़ें लिखें और घर का काम काज भी संभालें | ऐसे में एक दिन उनके पिता ने उनको अपने मवेशियों को चराने के लिए उन्हें साथ भेजा | तो वो मवेशियों की खुला छोड़ कर ध्यान में लीन हो गये |

मवेशी किसी दूसरे के खेतों में घुस कर सारी फसल बर्बाद कर आए | इस पर उन खेतों के मलिक बहुत गुस्सा हुए|

लेकिन जब वो सब लोग दोबारा उस फसल को देखने गये थे तो उन्होने एक अद्भुत चमत्कार देखा, जो फसल पूरी तरह खराब हो गयी थी वो पहले की तरह से लहलहा रही थी |

तब से सब जान गये थे कि गुरु नानक कोई आम इंसान नही हैं बल्कि वो कोई एक ईश्वरीय अवतार हैं |

क्यूंकि श्री गुरु नानक देव जी संसार से परे थे उनकी बुद्धि बहुत तेज थी वो तर्क की बात किया करते थे | उन्हें शिक्षा देने वाले गुरु ने उनकी अद्भुत प्रतिभा को पहचान लिया था | उन्होने गुरु नानक के पिता को बताया कि वो कोई साधारण बालक नही हैं |

इस पर गुरु नानक के पिता जी बहुत मायूस हुए क्यूंकि उन्हें तो अपने परिवार को संभालने वाला एक पुत्र चाहिए था | जो उनकी तरह काम धंधे की ओर ध्यान दे |

अपने पुत्र को कारोबार की समझ देने के लिए उनके पिता मेहता कालू ने उन्हें 20 रुपये देकर सौदा खरीद कर व्यापार करने को कहा |

लेकिन नानक तो फकीर थे उनसे किसी की पीड़ा देखी नही जाती थी उन्होने 20 रुपये जो कि उस समय में बहुत रकम थी, उससे जो भी राशन खरीदा वो ग़रीब भूखे लोगों को खिला दिया |

इस पर जब उनके पिता जी ने उनसे पूछा कि उन्होने ये क्या किया तो श्री गुरु नानक ने कहा उन्होने सच्चा सौदा किया है |

इस पर उनके पिता को लगा की अब तो उनका पुत्र उनके हाथ से बिल्कुल ही निकल गया | तो उन्होने सोचा की गुरु नानक का विवाह करवा देना चाहिए जिससे उन पर गृहस्थी की ज़िम्मेवारी आ जाएगी और गुरु नानक का ध्यान संसारिक कामों में लगने लग जाएगा |

गुरु नानक का विवाह (Guru Nanak Marriage)

24 सितंबर, 1487 को उनका विवाह गुरुदासपुर जिले के पास लाखौकी गांव में रहने वाले मूल चंद की बेटी सुलक्षणा देवी से कर दिया गया | उनके दो पुत्र हुए जिनका नाम श्रीचन्द और लक्ष्मीदास था |

गुरु नानक का अपनी बहन नानकी से बहुत स्नेह था जिसका विवाह जय राम से हुआ था जो Sultanpur में रहते थे|

उनके जीजा जयराम ने गुरु नानक देव जी को सुल्तानपुर बुला लिया | अपने जीजा के कहने पर वो सुल्तानपुर में गवर्नर दौलत ख़ान के पास काम करने लगे |

गुरु जी लोगों को पैसों के बदले अनाज देते थे और सबको सब तेरा सब तेरा कहकर अनाज तोलकर देते थे।

जब एक अफसर ने गुरु जी को कम पैसों के बदले ज्यादा अनाज तोलते देखा तो उनकी शिकायत सुल्तानपुर के दौलत खान लोधी से कर दी और गुरु जी को महल में बुलाया गया।

जब अफसरों द्वारा अनाज का माप तोल किया तो अनाज पूरा निकला। यानी अनाज में कोई कमी नहीं थी बल्कि वो पहले से ज्यादा था। दौलत खान समझ गए थे के उनके सामने कोई मामूली इंसान नहीं खड़ा।

इसके बाद दौलत खान ने गुरु जी को राज्य में बड़े से बड़ा पद देने का प्रस्ताव रखा पर गुरु जी ने वो सब ठुकरा दिया।

कुछ साल उन्होने वहीं काम किया, वो जो भी कमाते उसका अधिकांश भाग ग़रीबों में बाँट देते थे |

ज्ञान की प्राप्ति

1496 में श्री गुरु नानक देव जी को असल ज्ञान की प्रति हुई थी | उस समय श्री गुरु नानक देव जी सुल्तानपुर में ही थे | वो रोजाना वहाँ बेई नदी में स्नान करने जाया करते थे लेकिन एक दिन जब वो स्नान करने के लिए नदी में गये तो तीन दिन तक वापिस नही आए |

उस समय उन्हें असल ज्ञान की प्राप्ति हुई | जब श्री गुरु नानक वापिस आए तो उन्होने जो पहले शब्द कहे थे वो थे “यहाँ कोई हिंदू और कोई मुसलमान नही है”

ये वो समय था जब श्री गुरु नानक जी को अपना असली मकसद पता चल गया था | इसके बाद उन्होने अपना घर बार त्याग दिया और वो पूरी दुनिया को असल ज्ञान बताने के लिए निकल पड़े |

गुरु नानक देव जी की उदासी (यात्राएँ) (Guru Nanak Dev Ji Journeys)

पूरी दुनिया में ही वैर विरोध फैला हुआ था। लोग तरह तरह के अंध विश्वासों में फंसे हुए थे। धर्म के नाम पर लड़ रहे थे। गुरु जी ने उन नासमझ लोगों को सही ज्ञान देने के लिए चारों दिशाओं की यात्रायें की।

गुरु जी के साथ इन यात्राओं पर मरदाना जी, बाला जी साथ थे। पर सबसे ज्यादा मरदाना जी ही गुरु जी के साथ रहे। और इसी वजह से आज भी गुरु जी के साथ भाई मरदाना जी को भी याद किया जाता है।

उन्होने पैदल ही बड़ी लंबी लंबी यात्राएं की जिन्हें उदासी भी कहा जाता है | श्री गुरु नानक देव जी ने 28000 किलोमीटर की 5 लंबी यात्राएँ पूरी की |

श्री गुरु नानक देव जी ने काशी, अयोध्या, कुरुक्षेत्र, श्री लंका, सिक्किम, बग़दाद, मक्का मदीना और कंधार तक की यात्राएं की |

अपनी यात्राओं में उन्होने लोगों को एक ईश्वर को मानने, मेहनत हक़ हलाल की कमाई करने जैसे संदेश दिए |

उन्होने लोगों को बताया कि भगवान, रब्ब, अल्लाह हमारे अंदर है उसे बाहर ढूंढ़ने की बजाए अंदर ही उसकी खोज करनी चाहिए |

पहली उदासी 

गुरु जी ने पहली उदासी 1500 में शुरू की। इस उदासी में गुरु जी भारत के साथ साथ पाकिस्तान के बहुत इलाकों में गए और लोगों को धर्म का पाठ पढ़ाया और इंसानियत से परिचित करवाया।

इस उदासी में वो पानीपत, दिल्ली, बनारस, आदि जगहों पर भी गए। गुरु जी ने 6 साल तक इन इलाकों का भ्रमण किया।

दूसरी उदासी 

दूसरी उदासी में गुरु जी ने श्रीलंका की यात्रा की। वहां पर रहते लोगों को एक भगवान को मनाने का उपदेश दिया।

तीसरी उदासी

तीसरी उदासी में गुरु जी ने उत्तर दिशा की तरफ यात्रा की। हिमालय के कई क्षेत्र, नेपाल, सिक्किम, तिब्बत, ताशकंद जैसे इलाकों की यात्रायें की और अपने ज्ञान को पर्वतों में रहने वाले लोगों तक पहुंचाया।

चौथी उदासी

चौथी उदासी में गुरु जी ने मक्का, मदीना, बगदाद, इत्यादि जगहों की यात्रा की।

पांचवीं उदासी

पांचवीं उदासी में गुरु जी ने पंजाब की यात्रा की।  गुरु नानक जहाँ भी जाते वो अपने तर्कों और अपने शब्दों से लोगों के दिलों को जीतते हुए जाते | इस उदासी में नानक ने 2334 किलोमीटर का सफर तय किया |

अपनी 5 यात्राएं पूरी करने के बाद वो करतारपुर साहिब पाकिस्तान में आकर रहने लगे |

गुरु नानक देव जी की रचनाएं (Guru Nanak Writings)

गुरु जी ने बहुत सारी रचनाएं भी की जिनमें से

  • जपु जी
  • झूठी देखी प्रीत
  • को काहू को भाई
  • जो नर दुख में दुख नहिं मानै
  • सूरा एक न आँखिए
  • राम सुमिर, राम सुमिर
  • सब कछु जीवित कौ ब्यौहार
  • हौं कुरबाने जाउँ पियारे
  • मुरसिद मेरा मरहमी
  • काहे रे बन खोजन जाई
  • प्रभु मेरे प्रीतम प्रान पियारे
  • अब मैं कौन उपाय करूँ
  • या जग मित न देख्यो कोई
  • जो नर दुख में दुख नहिं माने
  • यह मन नेक न कह्यौ करे प्रमुख हैं।

गुरु नानक देव के सन्देश (Guru Nanak Teachings)

श्री गुरु नानक ने लोगों को नाम जपो, कीर्त करो और वंड छको का संदेश दिया |

नाम जपो – नाम जपो का अर्थ है की नाम का जाप करें | उस रब्ब, अल्लाह की खोज अपने अंदर ही करनी चाहिए| नाम जप कर ही ईश्वर की प्राप्ति की जा सकती है |

कीर्त करो – कीर्त करो का अर्थ है मेहनत, हक़ हलाल की कमाई करके खाओ | बेईमानी और धोखेबाजी से कमाया धन सुख और शांति नही दे सकता |

वंड छको – जो भी खाओ मिल बाँट के खाओ |

ये संदेश गुरु नानक देव जी ने संसार को दिए थे जिन पर चलना आज के समय में बहुत ज़रूरी है | हम इन संदेशों को सुन तो लेते हैं लेकिन इन्हें अमल में नही लाते |

वरना कोई भी इस संसार में दुखी नही रहता |

हक़ हलाल की कमाई का सन्देश 

गुरु नानक देव जी ने सदा ही मेहनत दी कमाई करके खाने के सन्देश दिया है | इसीलिए जब उन्हें मालिक भागो और भाई लालो के घर खाने न्यौता मिला तो उन्होंने मालिक भागो का न्योता ठुकरा कर भाई लालो के घर खाना खाया |

जब मालिक भागो ने गुरु जी को पूछा के उन्होंने उस गरीब का खाना क्यों खाया तो गुरु जी ने एक हाथ में भाई लालो की रोटी और एक हाथ में मालिक भागो की रोटी पकड़ी तो मालिक भागो की रोटी से खून और भाई लालो की रोटी से दूध निकला।

जो बताता था के मालिक भागो ने अपनी रोटी बेईमानी से कमाई है जबकि भाई लालो ने कड़ी मेहनत से। जिसके बाद मालिक भागो का हृदय परिवर्तित हो गया।

गुरु नानक देव जी का अंतिम समय (Guru Nanak Death)

अपने अंतिम समय से पहले गुरु नानक देव जी करतारपुर में आकर बस गए | अपने जीवन के आख़िरी 17-18 साल उन्होने करतारपुर में ही बिताए | वही करतारपुर जिसके लिए भारत और पाकिस्तान ने मिलकर करतारपुर कॉरिडोर बनाया है |

करतारपुर रहने के दौरान भी गुरु जी ने छोटी छोटी कुछ यात्राएं की | इसके बाद गुरु जी ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में भाई लहना को नियुक्त किया और उनका नाम बदलकर गुरु अंगद रख दिया |

गुरु नानक देव जी ने 1539 में करतारपुर साहिब में देह त्याग कर दिया।

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