देखो, टूट रहा है तारा – हरिवंश राय बच्चन

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देखो, टूट रहा है तारा।

नभ के सीमाहीन पटल पर
एक चमकती रेखा चलकर
लुप्त शून्य में होती-बुझता एक निशा का दीप दुलारा।
देखो, टूट रहा है तारा।

हुआ न उडुगन में क्रंदन भी,
गिरे न आँसू के दो कण भी
किसके उर में आह उठेगी होगा जब लघु अंत हमारा।
देखो, टूट रहा है तारा।

यह परवशता या निर्ममता
निर्बलता या बल की क्षमता
मिटता एक, देखता रहता दूर खड़ा तारक-दल सारा।
देखो, टूट रहा है तारा।

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