Homai Vyarawalla Autobiography | होमी व्यारावाला का जीवन परिचय : कैमरे में कहानियाँ कैद करने वाली पहली भारतीय महिला
आज के समय में तस्वीरें खींचना कितना आसान है न ?
सबके पास मोबाइल है, मोबाइल में ही कैमरा और भले ही ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी महिलाओं तक इसकी पहुंच नहीं, लेकिन शहरी इलाकों में महिलाओं तक इसकी पहुंच ज़रूर है।
आज से क़रीब 89 सालों पहले, एक लड़की का खबरों और घटनाओं को अपने कैमरे में उतारना क़रीब असंभव – सी बात लगती है। सिर्फ इसीलिए नहीं क्योंकि वह एक लड़की थी, बल्कि इसीलिए भी क्योंकि वह ‘फोटो जनर्लिज़्म’ के क्षेत्र में आने वाली पहली भारतीय लड़की थी !
होमी व्यारावाला – भारत की पहली महिला फोटो जर्नलिस्ट
9 दिसंबर, साल 1913, को पारसी दंपति दोसाभाई और सूनाबाई हाथीराम के घर गुजरात के नवसारी में जन्मी होमी ने अपना अधिकतर बचपन यात्रा करते हुए ही बिताया क्योंकि उनके पिता एक यात्रा करने वाले थिएटर ग्रुप में अभिनेता थे।
फिर उनका परिवार मुंबई में आकर बस गया, जहाँ उनके माता – पिता ने उनकी बेहतर शिक्षा के लिए एक अच्छे स्कूल में उनका एडमिशन कराया।उस स्कूल के 36 विद्यार्थियों में से दसवीं की परीक्षा में उत्तीर्ण होने वाली वो इकलौती लड़की थीं। जेजे स्कूल ऑफ आर्ट्स में आगे की पढ़ाई करने से पहले होमी सेंट जेवियर कॉलेज से डिप्लोमा करने के लिए मुंबई आई।
वहीं उनकी मुलाकात मानेकशॉ व्यारावाला से हुई जो टाइम्स ऑफ इंडिया में फोटोग्राफर थे। उन्होंने ही होमी का परिचय फोटोग्राफी से कराया था। बाद में उनकी और होमी की शादी हुई।
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पीठ पर कैमेरा लेकर घूमती लड़की
होमी कॉलेज में ही थीं जब उन्हें फोटोग्राफी के लिए पहला असाइनमेंट हासिल हुआ।उनकी शुरुआती तस्वीरों में विभिन्न हालात से गुज़रते लोगों की तस्वीरें शामिल थीं। साल 1942 में होमी दिल्ली आ गईं, यहाँ उन्होंने ब्रिटिश इन्फॉर्मेशन सर्विस के लिए बतौर फोटोग्राफर काम करना शुरू किया। अपनी पीठ पर क़रीब नौ किलो का कैमरा बांधे वे दिल्ली को अक्सर साइकल से नापा करती थीं।
द हिंदू को दिए एक साक्षात्कार में होमी ने बताया था कि,‘अनगिनत मौकों पर आधी रात के बाद जब मैं अकेले वापस लौटा करती थी, मुझे कभी भी किसी असुविधा का सामना नहीं करना पड़ा, न ही मुझे कभी भी डर लगा। युद्ध के दौरान, सड़कों के सभी निशान हटा दिए गए थे और जब संशय हो तो मुझे सिर्फ किसी भी दरवाज़े पर दस्तक देनी होती थी, लोग भी हमेशा मददगार साबित होते थे। बाद में ही बुरी तरह से बदलाव होने लगें।’
ध्यान देने वाली बात है कि आज दिल्ली में या असल में कहीं भी आधी रात को एक आम लड़की अकेले तो बिल्कुल नहीं घूम सकती। ऐसी घटनाएँ भी होती रहीं हैं जहाँ महिला पत्रकारों को सड़क पर छेड़खानी का सामना करना पड़ा है।
अमूमन महिलाएँ अगर पुरुषों के वर्चस्व वाले क्षेत्रों में काम करना शुरू करती हैं तो उन्हें कई बार कड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
भारतीय राजनीति की तस्वीरें
होमी व्यारावाला ने फोटो पत्रकार के तौर पर भारतीय राजनीति की कई घटनाओं की तस्वीरें खींची। कई राजनीतिक हस्तियों की महत्वपूर्ण तस्वीरें भी उन्होंने ली। महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, मुहम्मद अली जिन्ना, इंदिरा गांधी और नेहरू – गांधी परिवार की कई महत्वपूर्ण तस्वीरें उन्हीं के द्वारा ली गई थीं।
साल 1956 में उन्होंने लाइफ मैगज़ीन के लिए चौदहवें दलाई लामा की तस्वीर तब खींची थी जब वे पहली बार भारत के सिक्किम में आए थे। इसके अतिरिक्त, भारत की स्वतंत्रता के शुरुआती दौर की कई महत्वपूर्ण तस्वीरों को खींचने का श्रेय भी होमी को ही जाता है। साल 1970 में उन्होंने अपने करियर की आखिरी तस्वीर खींची, जो कि इंदिरा गांधी की थी।
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साल 2010 में उन्हें नेशनल फोटो अवॉर्ड फॉर लाइफटाइम अचीवमेंट से सम्मानित किया गया था, इसके अगले साल ही उन्हें पद्म विभूषण से भी नवाज़ा गया। 15 जनवरी, 2012 को उनका देहांत हो गया था। एक ऐसा क्षेत्र जिसमें पुरुषों का होना आम और महिलाओं का होना मुमकिन तक नहीं था, वहाँ होमी का दखल देना वाकई प्रेरणादायक तो था ही। लेकिन इसके साथ ही एक दिलचस्प बात यह भी थी कि होमी को कभी भी ऐसा अनुभव नहीं हुआ कि एक महिला होने के कारण उनके काम को कम आंका जा रहा है या फिर उनके साथ भेदभाव किया जा रहा है।
ऐसा होना बहुत ही दुलर्भ बात है, अमूमन महिलाएँ अगर पुरुषों के वर्चस्व वाले क्षेत्रों में काम करना शुरू करती हैं तो उन्हें कई बार कड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। होमी ने जिस काम की शुरुआत की थी, उसे उनकी आगे की पीढ़ी की लड़कियों ने जारी रखा है। आज चीना कपूर, सौम्या खंडेलवाल, दीप्ति अस्थाना, अनुश्री फड़वनिस जैसे कई नाम हैं जो फोटो पत्रकारिता में न केवल सक्रिय हैं, बल्कि जेंडर, सेक्सुअलिटी और समानता जैसे विषयों पर तस्वीरों के ज़रिए जागरुकता फैलाने का काम भी कर रही हैं।