Ida Laura Pfeiffer Autobiography | इडा लॉरा फ़ाएफर का जीवन परिचय : दुनिया की पहली महिला घुमक्कड़

0

साल 1797 में जन्मी इडा लॉरा फ़ाएफर दुनिया की पहली महिला ट्रैवलर मानी जाती हैं। साल 1846 से 1855 तक ज़मीन पर 32,000 किलोमीटर, पानी के रास्ते 240,000 किलोमीटर दक्षिण-पूर्वी एशिया, अमरीका, मध्य पूर्व और अफ्रीका इडा लॉरा फ़ाएफर एक यात्री के रूप में नाप चुकी थी। इडा विएना की मूल निवासी थी। वह अलग-अलग जगहों पर घूमती थी और जिन जगहों पर वे जाती थी, वहां के लोगों के बारे में अपने अनुभवों को लिखती थी।

इडा लॉरा फ़ाएफर का जन्म रेयर नाम के एक व्यापारी के घर हुआ था। वह उस घर की छः संतानों में से एक थी। लड़कियों को खेलने के लिए दी गई गुड़िया से ज्यादा इडा को अपने छोटे भाईयों के खिलौने, तलवार, बंदूक आदि आकर्षित करते थे। उनकी परवरिश बड़े ही अनुशासित माहौल में की गई थी। हालांकि उनके पिता ने उन्हें कभी उन खेलों को खेलने से मना नहीं किया जिसे खेलने की उनके समाज की उस उम्र की लड़कियों की अनुमति नहीं थी। इडा जब दस साल की थी तब उनके पिता की मृत्यु हो गई और उनकी देखभाल के जिम्मा मां के ऊपर आ गया। इडा की मां यह समझ पाने में विफल थी कि औरतों के परिधान पेटिकोट से ज्यादा इडा को आसपास के पुरुषों द्वारा पहने जाने वाले परिधान ट्राउज़र क्यों पसंद आते थे? उनकी मां इडा को नासमझ मानती थी।

और पढ़ें : गौहर जान: भारत की पहली रिकॉर्डिंग सुपरस्टार |

1809 में नेपोलियन की फ्रांसीसी सेना ने विएना पर कब्ज़ा किया था। इडा की मां के अनुसार फ्रांसीसी लोगों के साथ इज्ज़त से पेश आना उनकी तरफ से एक राजनीतिक व्यवहार था जबकि इडा नेपोलियन के प्रति अपनी नापसंद का प्रदर्शन करती रही। इस बर्ताव की सजा उन्हें अपनी मां से मिली थी। इडा लिखती हैं, “तेरह साल की उम्र में मुझे ठीक करने के लिए एक ट्यूटर की निगरानी में डाल दिया गया था। वह मेरे साथ संजीदगी से पेश आते। मैं जिस डर के साथ अपने माता-पिता के साथ रहती थी वह डर यहां नहीं था।” इडा ट्यूटर को पसंद करने लगी। वह सिलाई, बुनाई सीखने लगी। वह लिखती हैं, “मुझे लगने लगा कि मैं अपने ट्यूटर के साथ स्नेह के कारण ‘एक हुड़दंगी’ से ‘एक शांत लडक़ी’ में तब्दील होने लगी हूं।” इस तरह से बदलाव महसूस करते भी हुए इडा के घुमक्कड़ बनने के सपने कहीं से कम नहीं हुए। वह यात्रा वृत्तांत बहुत उत्सुकता से पढ़ती और अपने जेंडर को ऐसे उन्हें ऐसे कारनामे करने में बाधक मानती।

22 मार्च, 1842 को वह विएना से एक स्टीमर पर सवार होकर रवाना हुई। उन्हें ‘होली लैंड्स’ जाना था। जफ़्फ़ा, येरुसलमे, कैरो, सैंडी रेगिस्तान, लाल समंदर, पार करती हुई वह मिस्त्र पहुंची, फिर इटली, रोम, फ्लोरेंस के रास्ते 1842 में विएना लौटी।

इडा की मां को जब उनके प्रेम के बारे में पता चला तो उन्होंने उस ट्यूटर को हटा दिया। इडा भावनात्मक रूप से टूट गई थी, वह बीमार पड़ गई। ठीक होते ही उनकी शादी उनसे चौबीस साल बड़े डॉक्टर फएफ़र से करवा दी गई। उनकी शादी एक सामान्य शादी की तरह थी। उस शादी से उनके बच्चे भी हुए। उस दौरान अपने निज़ी जीवन को लेकर इडा लिखती हैं, “शादी के अठारह साल मैंने जो सहा वह मेरे पति के बुरे बर्ताव के कारण नहीं था, उसका कारण था ग़रीबी और चाहत।” साल 1838 में पति की मौत के बाद इडा के अंदर अपने पुराने सपनों को फिर से जीने की इच्छा जगी। उनके पास सीमित संसाधन थे, लेकिन बचपन में सीखे हुए छोटे-मोटे शारीरिक बल के खेल उनका मजबूत पक्ष थे।

22 मार्च, 1842 को वह विएना से एक स्टीमर पर सवार होकर रवाना हुई। उन्हें ‘होली लैंड्स’ जाना था। जफ़्फ़ा, येरुसलमे, कैरो, सैंडी रेगिस्तान, लाल समंदर, पार करती हुई वह मिस्त्र पहुंची, फिर इटली, रोम, फ्लोरेंस के रास्ते 1842 में विएना लौटी। उन्होंने अपने अनुभवों पर आधारित पहली क़िताब लिखी। क़िताब को अच्छी संख्या में पढ़ा गया और ये किताब दो अन्य भाषाओं में चेक और अंग्रेजी में भी अनुदित हुई। अपनी किताबों की बिक्री से जोड़े गए पैसे उन्हें नई यात्रा पर निकलने के लिए प्रेरित करते। साल 1845 में उन्होंने आइसलैंड की यात्रा के लिए अंग्रेजी और डेनिश भाषा सीखी। साथ ही उन्होंने चीज़ों को संरक्षित करने का विज्ञान सीखा। इस तरह घुम्मकड़ी का यह सिलसिला आगे बढ़ता गया। कई बार इडा को आर्थिक तंगी झेलने पड़ी। वे दूर-दराज़ के जगहों से लाए गए समान, पौधे, कीड़े बेचती, कई जर्नल्स लिखती और घूमने के पैसे जोड़ती। इडा की लिखी एक किताब का नाम है ‘अ वुमनस जर्नी अराउंड द वर्ल्ड ‘। यह क़िताब उनकी चीन, भारत, अमरीका, पर्सिया, ग्रीस आदि जगहों पर आधारित विश्व-यात्रा के अनुभव हैं ।

इडा लॉरा फ़ाएफर मृत्यु वर्ष 1858 में हुई। 1892 में वह पहली महिला बनी जिन्हें विएना सोसाइटी फ़ॉर वुमन एजुकेशनल द्वारा सम्मानित करने के लिए उन लोगों में जगह मिली जिनके अवशेषों को विएना के सेंट्रल सेमेट्री में रखा गया। इडा लॉरा फ़ाएफर के सम्मान में म्युनिक की एक सड़क का नाम साल 2000 में उनके नाम पर रखा गया। इडा के बेटे द्वारा लिखी गई इडा की जीवनी 1861 में प्रकाशित की गई।

और पढ़ें : नूर इनायत ख़ान : द्वितीय विश्व युद्ध की ‘स्पाई प्रिसेंस’ की कहानी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *