मेरे पीछे इसीलिये तो धोकर हाथ पड़ी है दुनिया – राम अवतार त्यागी

0

मेरे पीछे इसीलिये तो धोकर हाथ पड़ी है दुनिया
मैंने किसी नुमाइश घर में सजने से इन्कार कर दिया।

विनती करती, हुक्म चलाती
रोती, फिर हँसती, फिर गाती;
दुनिया मुझ भोले को छलने,
क्या–क्या रूप बदल कर आती;

मंदिर ने बस इसीलिये तो मेरी पूजा ठुकरा दी है,
मैंने सिंहासन के हाथों पुजने से इन्कार कर दिया।

चाहा मन की बाल अभागिन,
पीड़ा के फेरे फिर जाएँ;
उठकर रोज़ सवेरे मैंने,
देखी हाथों की रेखाएँ;

जो भी दण्ड मिलेगा कम है, मैं उस मुरली का गुंजन हूँ,
जिसने जग के आदेशों पर बजने से इन्कार कर दिया।

मन का घाव हरा रखने को
अनचाहा हँसना पड़ता है;
दीपक की खातिर अँगारा,
अधरों में कसना पड़ता है;

आँखों को रोते रहने का खुद मैंने अधिकार दिया है,
सच को मैंने सुख की खातिर तजने से इन्कार कर दिया।

अर्पित हो जाने की तृष्णा,
जागी, मैं हो गया कलंकित;
कुण्ठा ने मेरी निन्दाएँ,
कर दी हर मन्दिर पर अँकित;

मैं वह सतवंती श्रद्धा के खण्डहर का बीमार दिया हूँ,
जिसने आँधी के चिढ़ने पर बुझने से इन्कार कर दिया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *