फूले फूल बबूल कौन सुख‚ अनफूले कचनार। – नरेश सक्सेना
फूले फूल बबूल कौन सुख‚ अनफूले कचनार।
वही शाम पीले पत्तों की
गुमसुम और उदास
वही रोज का मन का कुछ —
खो जाने का अहसास
टाँग रही है मन को एक नुकीले खालीपन से
बहुत दूर चिड़ियों की कोई उड़ती हुई कतार।
फूले फूल बबूल कौन सुख‚ अनफूले कचनार।
जाने कैसी–कैसी बातें
सुना रहे सन्नाटे
सुन कर सचमुच अंग–अंग में
उग आते हैं काँटे
बदहवास‚ गिरती–पड़ती सी‚ लगीं दौड़ते मन में —
अजब–अजब विकृतिया अपने वस्त्र उतार–उतार।
फूले फूल बबूल कौन सुख – अनफूले कचनार।