राग और द्वेष से मुक्त होकर ही सुखी जीवन संभव है Rag Aur Dwesh Se Mukt Hokar Hi Sukhi Jivan Sambhav Hai
राग और द्वेष से मुक्त होकर ही सुखी जीवन संभव है
राग और द्वेष ये दोनों हमारे जीवन के लिए हानिकारक हैं।
कभी –कभी हमें किसी के प्रति इतना लगाव हो जाता है की हम चाहकर भी उससे दूर नहीं हो पाते। हमारी आशक्ति उसके प्रति गहरी हो जाती है और कभी हमें किसी के प्रति इतनी नफरत हो जाती है की हम उसे देखना भी नहीं चाहते
ये दोनों इस तरह है की बिना एक के दूसरा हो नहीं सकता । और दोनों एक साथ रह भी नहीं सकते क्योंकि जब राग होगा तब द्वेष नहीं होगा । और जब द्वेष होगा तब राग नहीं होगा।जिस प्रकार एक म्यान में तो तलवार नहीं रह सकती ठीक उसी प्रकार राग और द्वेष एक साथ नहीं रह सकते
राग – Rag
राग का अर्थ है आशक्ति ,लगाव जब किसी व्यक्ति को किसी बस्तु या व्यक्ति के प्रति लगाव हो जाय। वह उसके लगाव में इस प्रकार अधीर हो जाय की चाहकर भी वह उससे दूर न हो पाए तो उसको राग कहते है । राग सजीव के साथ तो होता है लेकिन निर्जीव के प्रति भी राग उत्पन्न होता है।। जैसे कोठी ,बंगला ,कार ,आदि के प्रति भी गहरा लगाव हो जाता है हमें यह लगने लगता है की बिना इनके जीवन संभव नहीं ।इन्ही नश्वर चीजो के साथ आशक्ति हो जाती है इनके मिलने से सुख और न मिलने से दुःख होता है ।
द्वेष – Dwesh
द्वेष का अर्थ है ईर्ष्या ,जलन ,नफरत जब हमें किसी के प्रति नफरत हो जाती है तो उसे द्वेष कहते है ।द्वेष बिना राग के संभव नहीं है ।यदि हमें किसी से ईर्ष्या है नफरत है तो पहले हमको उसके प्रति राग रहा है प्रेम रहा है । क्योंकि जिससे कल मित्रता थी या जिसके प्रति राग था ।आज वही सत्रु है उसे हम देखना नहीं चाहते हमें उस पर क्रोध आता है क्योंकि बिना राग के द्वेष उत्पन्न ही नहीं हो सकता ।
जब कोई व्यक्ति हमारी इच्छा ,आकांक्षा के प्रति खरा नहीं उतरता है। तब द्वेष होता है ।जब हम किसी से इतनी ज्यादा उम्मीद कर लेते है। की अमुक व्यक्ति हमारा यह कार्य कर देगा लेकिन जब वह व्यक्ति उस कार्य को नहीं कर पाता ।कार्य करने में असमर्थता जाहिर करता है तब उसके प्रति द्वेष हो जाता है। इसी लिए कहा गया है की बिना राग के द्वेष नहीं हो सकता है । बिना मित्रता के शत्रुता नहीं हो सकती
राग की आसक्ति में व्यक्ति को होश नहीं रहता है उसे लगता है कि यही सत्य है और यही जीवन की वास्तविकता है। और वह इसके सम्मोहन में इस कदर खो जाता है कि वह उसे बाहर निकलना नहीं चाहता और जीवन भर अपने किए गए कर्मों के द्वारा जो भी संचित किया हुआ होता है। वह सब लुटा देता है राग और द्वेष आकर्षण और प्रतिकर्षण है। एक हमें बांध देता है तो दूसरा हमें दूर करता है।
लेकिन वास्तव में यह दोनों हमें बांध लेते हैं हम द्वेष के ही चक्कर में पड़े रहते हैं। और हम यह नहीं देख पाते कि प्रत्येक व्यक्ति अपने स्वभाव के अनुरूप ही व्यवहार करता है। और हम व्यवहार को बदलना चाहते हैं। इस प्रकृति को परिवर्तन नहीं किया जा सकता। जैसे बिच्छू का स्वभाव है डंक मारना हम उसे कितना ही प्यार करें लेकिन वह अपने स्वभाव से बाज नहीं आएगा। वह डंक अवश्य मारेगा हम उसके क्रोध का बदला नहीं ले सकते।
क्योंकि यह उसका स्वभाव है ।विवेक महान व्यक्ति जीवन के प्रत्येक क्षण को उपयोग करते हैं वह ना तो कभी राग की डोरी में बनते हैं और ना ही कभी द्वेष से पीड़ित होते हैं।
राग और द्वेष से निकलने का एकमात्र उपाय – Rag Aur Dwesh Se Nikalne Ka Ekmatr Upay
ध्यान और विवेक। महर्षि पतंजलि ने राग और द्वेष से दूर होने को वीतराग पुरुष का ध्यान करने के लिए कहा। वितराग वह जिसके सभी राग समस्त और वृत्तियाँ शांत हो चुकी हो ।और वह सभी इन चीजों से पार जा चुका है। जैसे वशिष्ठ जी, विश्वामित्र, नारद, भगवान कृष्ण ,प्रभु श्रीराम के प्रति राग होना चाहिए ।
फिर ईश्वर के प्रति राग उत्पन्न हो जाए तो हमारा जीवन धन्य हो जाए। जो नष्ट होने वाली चीजें हैं। उनके प्रति राग उत्पन्न होना और जो समस्त सृष्टि का संचालक है जो कण कण में है। जो सदैव रहने वाला है , यदि उसके प्रति राग हो जाए, गहरा लगाव हो जाए तो जीवन धन्य बन जाए।