Rukmini Devi Arundale Autobiography | रुक्मिणी देवी अरुंडेल का जीवन परिचय : जिन्होंने नृत्य के लिए राष्ट्रपति बनने से किया था इनकार
साल 1956 में पद्म भूषण से सम्मानित, रुक्मिणी देवी अरुंडेल को नृत्य, संस्कृति और शिक्षा के क्षेत्र में उनके दूरदर्शी कार्य के लिए जाना जाता है। अपने लंबे और शानदार जीवन के दौरान उन्होंने शास्त्रीय नृत्यों विशेष रूप से भरतनाट्यम के कई पहलुओं को पुनर्जीवित किया और पूरी दुनिया के सामने उनके नये वैभव का प्रदर्शन किया। हालांकि, कम ही लोग जानते हैं कि अगर उन्होंने साल 1977 में प्रधान मंत्री मोरारजी देसाई द्वारा प्रस्ताव स्वीकार कर लिया होता तो वह भारत की पहली महिला राष्ट्रपति हो सकती थीं।
प्रारंभिक जीवन
29 फरवरी, साल 1904 में मदुरै में जन्मी रुक्मिणी नीलकंठ शास्त्री और शेषम्मल की आठ संतानों में से एक थीं। उनके पिता, एक संस्कृत विद्वान और इतिहासकार, एक उत्साही अनुयायी थे और मद्रास की थियोसोफिकल सोसायटी के करीबी सहयोगी थे। चूंकि उनकी मां की संगीत में बेहद दिलचस्पी थी तो इसके कारण रुक्मिणी देवी भी अपने घर की परिधि में नृत्य, संगीत और संस्कृति से अवगत रही।
रुक्मिणी न केवल अपने पिता से बल्कि भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन की समर्थक, महिला अधिकार कार्यकर्ता एनी बेसेंट से भी बहुत प्रभावित थीं। वह महज़ 16 साल की ही थीं जब वह, शिक्षक, थियोसोफिस्ट और एनी बेसेंट के भरोसेमंद लेफ्टिनेंट, जॉर्ज अरुंडेल से मिलीं और उनसे प्यार हो गया। साल 1920 में उन्होंने अपने से 24 साल बड़े जॉर्ज से शादी के बंधन में बंधकर अपने परिवार और समाज को चौंका दिया। उस दौरान उनके समाज में इस शादी का कड़ा विरोध भी किया गया था।
यात्रा, अनुभव और आजीविका
अपनी शादी के बाद, वह अपने पति और बेसेंट के साथ थियोसोफिकल मिशन पर विभिन्न देशों की यात्रा पर जाती रही। इसी दौरान रुक्मिणी शास्त्रीय नृत्य से रूबरू हुई। साल 1928 में, वह विश्व प्रसिद्ध रूसी नृत्यांगना अन्ना पावलोवा से मिलीं, जो एक परफॉर्मेंस के सिलसिले में बॉम्बे आई हुई थीं। पावलोवा के अनुरोध पर रुक्मिणी ने बैले सीखना शुरू किया। पावलोवा ने उन्हें शास्त्रीय भारतीय नृत्य रूपों में प्रेरणा लेकर अपने भीतर की नर्तकी को प्रोत्साहित करने की सलाह दी।