शिव महा-पुराण की हिंदी कहानियों की सूची भाग-1 ( Shiv Mahapuran Listed Hindi Stories Part-1 )

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श्री शिव महापुराण कथा सूची  ( Maha Shiv puran)

माहात्म्य  importance 

1.शौनक जी के साधन विषयक प्रश्न करने पर सूत जी का उन्हें शिवमहा पुराण की  महिमा सुनना

श्रीशौनकजी बोले- हे महाज्ञानी सूतजी ! सम्पूर्ण सिद्धान्तोंके ज्ञाता हे प्रभो! मुझसे पुराणोंकी | कथाओंके सारतत्त्वका विशेषरूपसे वर्णन कीजिये ॥ १ ॥

सदाचार, भगवद्भक्ति और विवेककी वृद्धि कैसे होती है तथा साधुपुरुष किस प्रकार अपने काम-क्रोध आदि मानसिक विकारोंका निवारण करते हैं ? ॥ २ ॥

इस घोर कलियुगमें जीव प्रायः आसुर स्वभावके हो गये हैं, उस जीवसमुदायको शुद्ध (दैवी सम्पत्तिसे युक्त) बनानेके लिये सर्वश्रेष्ठ उपाय क्या है ? ॥ ३ ॥ आप इस समय मुझे ऐसा कोई शाश्वत साधन बताइये, जो कल्याणकारी वस्तुओंमें भी सबसे उत्कृष्ट एवं परम मंगलकारी हो तथा पवित्र करनेवाले उपायोंमें भी सर्वोत्तम पवित्रकारक उपाय हो ॥ ४ ॥ तात! वह साधन ऐसा हो, जिसके अनुष्ठानसे शीघ्र ही अन्तःकरणकी विशेष शुद्धि हो जाय तथा उससे निर्मल चित्तवाले पुरुषको सदाके लिये शिवकी प्राप्ति हो जाय ॥ ५ ॥

सूतजी बोले- मुनिश्रेष्ठ शौनक ! आप धन्य हैं; आपके हृदयमें पुराण कथा सुननेके प्रति विशेष प्रेम एवं लालसा है, इसलिये मैं शुद्ध बुद्धिसे विचारकर परम उत्तम शास्त्रका वर्णन करता हूँ ॥ ६ ॥ वत्स! सम्पूर्ण शास्त्रोंके सिद्धान्तसे सम्पन्न, भक्ति आदिको बढ़ानेवाले, भगवान् शिवको सन्तुष्ट करनेवाले तथा कानोंके लिये रसायनस्वरूप दिव्य पुराणका श्रवण कीजिये ॥ ७ ॥

यह उत्तम शिवपुराण कालरूपी सर्पसे प्राप्त होनेवाले महान् त्रास का विनाश करनेवाला है। है मुने! पूर्वकालमें शिवजीने इसे कहा था। गुरुदेव

[अ०: | व्यासजीने सनत्कुमार मुनिका उपदेश पाकर कोल प्राणियोंके कल्याणके लिये बड़े आदरसे संक्षेप पुराणका प्रतिपादन किया है ।। ८-९ ॥

हे मुने। विशेष रूपसे कलियुगक प्राणियो चित्तशुद्धिके लिये इस शिवपुराणके अतिरिक्त अन्य साधन नहीं है ॥ १० ॥

हे मुने! जिस बुद्धिमान् मनुष्यके पूर्वजन्मके पुण्य होते हैं, उसी महाभाग्यशाली व्यक्तिको पुराणमें प्रीति होती है ॥ ११ ॥

यह शिवपुराण परम उत्तम शास्त्र है। इसे | भूतलपर भगवान् शिवका वाङ्मय स्वरूप समझना चा | और सब प्रकारसे इसका सेवन करना चाहिये ॥ १२॥

इसके पठन और श्रवणसे शिवभक्त पा श्रेष्ठतम स्थितिमें पहुँचा हुआ मनुष्य शीघ्र शिवपदको प्राप्त कर लेता है। इसलिये सम्पूर्ण कर करके मनुष्योंने इस पुराणके अध्ययनको अभोक साधन माना है और इसका प्रेमपूर्वक श्रवण में सम्पूर्ण वांछित फलोंको देनेवाला है ॥ १३-१४ ॥

भगवान् शिवके इस पुराणको सुननेसे मनुष्य सब पापोंसे मुक्त हो जाता है तथा बड़े-बड़े उत्कृष्ट भोगोंका उपभोग करके [अन्तमें] शिवलोकको प्राप्त कर लेता है ॥ १५ ॥

राजसूययज्ञ और सैकड़ों अग्निष्टोमयज्ञोंसे के पुण्य प्राप्त होता है, वह भगवान् शिवकी कथा सुननेमात्रसे प्राप्त हो जाता है ॥ १६ ॥

हे मुने! जो लोग इस श्रेष्ठ शास्त्र शिवपुराणक श्रवण करते हैं, उन्हें मनुष्य नहीं समझना चाहिये; वे रुद्रस्वरूप ही हैं; इसमें सन्देह नहीं है ॥ १७ ॥

इस पुराणका श्रवण और कीर्तन करनेवालोंके चरण- कमलकी धूलिको मुनिगण तीर्थ ही समझते हैं ॥ १८ ॥ जो प्राणी परमपदको प्राप्त करना चाहते हैं. उन्हें सदा भक्तिपूर्वक इस निर्मल शिवपुराणका श्रवण करना चाहिये ॥ १९ ॥

हे मुनिश्रेष्ठ! यदि मनुष्य सदा इसे सुननेमें समर्थ न हो, तो उसे प्रतिदिन स्थिर चित्तसे एक मुहूर्त भी इसको सुनना चाहिये। हे मुने! यदि मनुष्य प्रतिदिन सुननेमें भी अशक्त हो, तो उसे किसी पवित्र महीने में १ | इस शिवपुराणका श्रवण करना चाहिये ॥ २०-२१॥

जो लोग एक मुहूर्त, उसका आधा, उसका भी आधा अथवा क्षणमात्र भी इस पुराणका श्रवण करते हैं, उनकी दुर्गति नहीं होती ॥ २२ ॥

हे मुनीश्वर ! जो पुरुष इस शिवपुराणकी कथाको सुनता है, वह सुननेवाला पुरुष कर्मरूपी महावनको जलाकर संसारके पार हो जाता है ।। २३ ॥

हे मुने! सभी दानों और सभी यज्ञोंसे जो पुण्य मिलता है, वह फल भगवान् शिवके इस पुराणको सुननेसे निश्चल हो जाता है ॥ २४ ॥ हे मुने! विशेषकर इस कलिकालमें तो शिवपुराणके श्रवणके अतिरिक्त मनुष्योंके लिये मुक्तिदायक कोई अन्य श्रेष्ठ साधन नहीं है ॥ २५ ॥

शिवपुराणका श्रवण और भगवान् शंकरके नामका संकीर्तन-दोनों ही मनुष्योंको कल्पवृक्षके समान सम्यक् फल देनेवाले हैं, इसमें सन्देह नहीं है ॥ २६ ॥ कलियुगमें धर्माचरणसे शून्य चित्तवाले दुर्बुद्धि मनुष्योंके उद्धारके लिये भगवान् शिवने अमृतरसस्वरूप शिवपुराणकी उद्भावना की है ॥ २७ ॥

अमृतपान करनेसे तो केवल अमृतपान करनेवाला ही मनुष्य अजर-अमर होता है, किंतु भगवान् शिवका यह कथामृत सम्पूर्ण कुलको ही अजर-अमर कर देता है ॥ २८ ॥

इस शिवपुराणकी परम पवित्र कथाका विशेष रूपसे सदा ही सेवन करना चाहिये, करना ही चाहिये, करना ही चाहिये। इस शिवपुराणकी कथाके श्रवणका क्या फल कहूँ? इसके श्रवणमात्रसे भगवान् सदाशिव उस प्राणीके हृदयमें विराजमान हो जाते हैं ।। २९-३० ।।

यह [शिवपुराण नामक] ग्रन्थ चौबीस हजार श्लोकोंसे युक्त है। इसमें सात संहिताएँ हैं। मनुष्यको चाहिये कि वह भक्ति, ज्ञान और वैराग्यसे भली-भाँति सम्पन्न हो बड़े आदरसे इसका श्रवण करे ॥ ३१ ॥

पहली विद्येश्वरसंहिता, दूसरी रुद्रसंहिता, तीसरी शतरुद्रसंहिता, चौथी कोटिरुद्रसंहिता और पाँचवीं उमासंहिता कही गयी है; छठी कैलाससंहिता और सातवीं वायवीय-संहिता – इस प्रकार इसमें सात संहिताएँ हैं ॥ ३२-३३ ॥

सात संहिताओंसे युक्त यह दिव्य परब्रह्म परमात्माके समान विराजमान है और | उत्कृष्ट गति प्रदान करनेवाला है ।। ३४ ।। सात संहिताओंवाले मनुष्य शिवपुराणको आदरपूर्वक पूरा पढ़ता है, वह जीव जो कहा जाता है ॥ ३५ ॥ हे मुने! जबतक इस उत्तम शिवपुराणको सुअवसर नहीं प्राप्त होता, तबतक अज्ञानवश इस संसार-चक्रमें भटकता रहता है ॥ ३६ ॥

भ्रमित कर देनेवाले अनेक शास्त्रों और पुराने श्रवणसे क्या लाभ हैं, जबकि एक शिवपुराण। मुक्ति प्रदान करनेके लिये गर्जन कर रहा है। दे

जिस घर में इस शिवपुराणकी कथा होती है, घर तीर्थस्वरूप ही है और उसमें निवास करनेवालों पाप यह नष्ट कर देता है ॥ ३८ ॥

हजारों अश्वमेधयज्ञ और सैकड़ों वाजपे शिवपुराणकी सोलहवीं कलाकी भी बराबरी नहीं सकते ।। ३९ ।।

हे मुनिश्रेष्ठ! कोई अधम प्राणी जबतक भक्तिपु शिवपुराणका श्रवण नहीं करता, तभीतक उसे कहा जा सकता है ॥ ४० ॥

गंगा आदि पवित्र नदियाँ, [मुक्तिदायिनी] स पुरियाँ तथा गयादि तीर्थ इस शिवपुराणकी सम कभी नहीं कर सकते ।। ४१ ।।

जिसे परमगतिकी कामना हो, उसे नि शिवपुराणके एक श्लोक अथवा आधे श्लोकका स्वयं भक्तिपूर्वक पाठ करना चाहिये ॥ ४२ ॥

जो निरन्तर अर्थानुसन्धानपूर्वक इस शिवपुराण्ड बाँचता है अथवा नित्य प्रेमपूर्वक इसका पाठमात्र क है, वह पुण्यात्मा है, इसमें संशय नहीं है ॥ ४३ ॥

जो उत्तम बुद्धिवाला पुरुष अन्तकालमें भक्तिपूर ४ इस पुराणको सुनता है, उसपर अत्यन्त प्रसन्न हु | भगवान् महेश्वर उसे अपना पद (धाम) प्रदान कर हैं ॥ ४४ ॥

जो प्रतिदिन आदरपूर्वक इस शिवपुराणका पूर | करता है, वह इस संसारमें सम्पूर्ण भोगोंको भोग | अन्तमें भगवान् शिवके पदको प्राप्त कर लेता है ।। ४

जो प्रतिदिन आलस्यरहित रेशमी वस्त्र आदिके वेष्टनसे इस शिवपुराणका सत्कार करता है, वह सदा सुखी होता है ॥ ४६ ॥

यह शिवपुराण निर्मल तथा शैवोंका सर्वस्व है;  इहलोक और परलोकमें सुख चाहनेवालेको आदरके साथ प्रयत्नपूर्वक इसका सेवन करना चाहिये ॥ ४७ ॥ यह निर्मल एवं उत्तम शिवपुराण धर्म, अर्थ, काम और मोक्षरूप चारों पुरुषार्थोंको देनेवाला है, अतः सदा प्रेमपूर्वक इसका श्रवण एवं विशेष रूपसे पाठ करना चाहिये ॥ ४८ ॥

वेद, इतिहास तथा अन्य शास्त्रों में यह शिवपुराण विशेष कल्याणकारी है-ऐसा मुमुक्षुजनोंको समझना चाहिये ॥ ४९ ॥

यह शिवपुराण आत्मतत्त्वज्ञोंके लिये सदा सेवनीय है, सत्पुरुषोंके लिये पूजनीय है, तीनों प्रकारके तापोंका शमन करनेवाला है, सुख प्रदान करनेवाला है तथा ब्रह्मा-विष्णु-महेशादि देवताओंको प्राणोंके समान प्रिय है ॥ ५० ॥

ऐसे शिवपुराणको मैं प्रसन्नचित्तसे सदा वन्दन करता हूँ। भगवान् शंकर मुझपर प्रसन्न हों और अपने चरणकमलोंकी भक्ति मुझे प्रदान करें ॥ ५१ ॥

शिव पुराण हिंदी में पहली कथा समाप्त.

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दूसरी कहानी के लिए नीचे क्लिक करें. 

2.शिव पुराण के श्रवण से  देवराज को हुई थी शिवलोक की प्राप्ति.

3.चंचुला का पाप से भय एवं संसार से वैराग्य.

4.चंचुला की प्रार्थना से ब्राह्मण का उसे पूरा शिवपुराण सुनना और समयानुसार शरीर छोड़कर शिवलोक में जा चंचुला का देवी पार्वती का सखी होना

5.चंचुला के प्रयत्न से पार्वती की आज्ञा पाकर तुम्बुरु का विन्ध्य पर्वत  पर शिव पुराण की कथा सुनाकर बिंदु का पिशाच  योनि से उद्धार करना तथा उन दोनों दंपत्ति का शिवधाम में सुखी होना

6.शिव पुराण के श्रवण की विधि

7.श्रोताओं के पालन करने योग्य नियमों का वर्णन.

विद्धेश्वरसंहिता 

शिव पुराण कथा सूची . ( Shiv Puran story list)

1.प्रायग में सूत जी से मुनियों का शीघ्र पापनाश  करने वाले साधन के विषय में प्रश्न

2.शिव पुराण माहात्म्य एवं परिचय. शिव पुराण का महत्व और परिचय.

3.साध्य-साधन आदि का विचार

4.श्रवण,कीर्तन और मनन- इन साधनों की श्रेष्ठता का प्रतिपादन

5.भगवान शिव केलिंग एवं साकार विग्रह की पूजा के रहस्य तथा महत्व का वर्णन

6.ब्रह्मा और विष्णु के भयंकर युद्ध को देखकर देवताओं का कैलाश शिखर पर गमन

7.भगवान  शंकर का ब्रह्मा और विष्णु  के युद्ध में अग्निस्तम्भ रूप में प्राकट्य , स्तम्भ के आदि और अंत की जानकारी लिए दोनों का प्रस्थान

8.भगवान शंकर द्वारा ब्रह्मा और केतकी पुष्प को श्राप देना और पुन: अनुग्रह करना

9.महेश्वर ब्रह्मा और विष्णु को अपने निष्कल और सकल स्वरुप का परिचय देते हुए लिंग-पूजन का महत्व बताना.

10.सृष्टी, स्थितिआदि पांच कृत्यों का प्रतिपादन प्रणव एवं पंचाक्षर- मन्त्र की महत्ता , ब्रह्मा-विष्णु द्वारा भगवान शिव की स्तुति तथा उनका अंतर्धान होना

11.शिवलिंग की स्थापना, उसके लक्ष्ण और पूजन की विधि का वर्णन तथा शिव पद की प्राप्ति करने वाले सत्कर्मों का विवेचन

12.मोक्षदायक पुण्य क्षेत्रों का वर्णन , कालविशेष मे विभिन्न नदियों के जल में स्नान के उत्तम फल का निर्देश तथा तीर्थों में पाप से बचे रहने की चेतावनी

13.सदाचार, शौचार, स्नान , भष्म धारण, संध्या वंदन,प्रणव जप , गायत्री जप ,दान , न्यायत: धनोपार्जन तथा अ अग्निहोत्र आदि की विधि एवं उनकी महिमा वर्णन

14. अग्नियज्ञ ,देवयज्ञ और ब्रह्म यज्ञ आदि का वर्णन, भगवान शिव के द्वार सातों वारों का निर्माण तथा उनमे देवाराधन से विभिन्न प्रकार के फलों की प्राप्ति का कथन .

15.देश , काल,पात्र और दान आदि का विचार.

16.मृत्तिका आदि से निर्मित देवप्रतिमाओं के पूजन की विधि,उनके लिए नैवेध्य विचार ,पूजन के विभिन्न उपचारों का फल,विशेष मास,वार तिथि एवं नक्षत्रों के योग में पूजन का विशेष फल तथा लिंग केवैगानिक स्वरुप का विवेचन

17.षडलिंगस्वरुप प्रणव का महत्व ,उसके सूक्ष्म रुप ॐ कार और स्थूल रुप पंचाक्षर मंत्र का विवेचन , उसके जप की एवं महिमा कार्य ब्रह्म के लोकों से लेकर कारणरूद्र के लोकों तक का विवेचन करके कालातीत ,पंचावरण विशिष्ठ शिवलोक के अनिवर्चनीय वैभव का निरुपम तथा शिवभक्तों में सत्कार की महत्ता.

18.बंधन और मोक्ष विवेचन,शिव पूजा का उपदेश, लिंग आदि में शिवपूजन का विधान, भष्म के स्वरुप का निरुपम और महत्व शिव के भष्म धारण का रहस्य,शिव एवं गुरु शब्द की व्युत्पत्ति तथा विघ्न्शान्तिके उपाय और शिवधर्म का निरुपम

19.पार्थिव  शिवलिंग के पूजन का महत्व

20 .पार्थिव शिवलिंग के निर्माण की रीति तथा वेद मन्त्रों  द्वारा उसके पूजन की विस्तृत एवं संक्षिप्त  विधि का वर्णन

21.कामना भेद से पार्थिव लिंग के पूजन का विधान

22.शिव-नैवैध्य -भक्षण का निर्णय एवं बिल्वपत्र का महत्व

23. भष्म ,रुद्राक्ष शिव के नाम का महत्व और  वर्णन

24.भष्म का महत्व और निरुपम

25.रुद्राक्षधारी की महिमा तथा उसके विवध  भेदों का वर्णन.

सृष्टी खंड 

शिव पुराण कथा सूची . ( Shiv Puran story list)

1.ऋषियों के प्रश्न उत्तर में श्रीसूत जी द्वारा नारद-ब्रह्म संवाद की अवतारणा

2. नारदमुनि  की तपस्या , इंद्र द्वारा तपस्या में विघ्न उपस्थित करना, नाराद का काम पर विजय पानाऔर अहेंकार से युक्त होकर ब्रह्मा, विष्णु और रूद्र से अपने तप का कथन.

3.मायानिर्मित नगर में शीलनिधि की कन्या पर मोहित हुए नारद जी का भगवान विष्णु से  उनका रूप मांगना, भगवान का अपने रुप के साथ वानर का -सा मुँह देना, कन्या का भगवान को वरन करना और कुपित हुए नारद का शिव गणों को शाप देना

4. नारद जी का भगवान विष्णु को क्रोध पूर्वक फटकारना और शाप देना, फिर माया के दूर हो जाने पर पश्चात्प पूर्वक भगवान के चरणों में गिरना और शुद्धि का उपाय पूछना तथा  भगवान विष्णु का उन्हें समझा- बुझाकर  शिव का महत्व जानने के लिए ब्रह्मा जी के पास जाने का आदेश और  शिव भजन का उपदेश देना.

5.नारद जी का शिव तीर्थों में भ्रमण, शिवगणों को शापोंउद्धार की बात बताना तथा ब्रह्मलोक में जाकर ब्रह्मा जी शिवतत्त्व के विषय में प्रश्न करना.

6.महाप्रलय काल में केवल सद्ब्रह्म की सत्ता का प्रतिपादन , उस निर्गुण-निराकार ब्रह्म से ईश्वर मूर्ती  ( सदाशिव ) का प्राकट्य, सदा शिव द्वारा स्वरुपभूत शक्ति ( अम्बिका ) का प्रकटीकरण, उन दोनों के द्वारा उत्तम क्षेत्र में ( काशी या आनंदवन) का पादुर्भाव, शिव के वामांग में परम पुरुष ( विष्णु) का आविर्भाव. तथा उनके सकाश से प्राकृत क्रमश: उत्पत्ति का वर्णन.

7.भगवान् विष्णु की नाभि से कमल का पादुर्भाव, शिव इच्छा से ब्रह्मा जी का प्रकट होना,कमल के नाल के उद्गम का पता लगाने में असमर्थ ब्रह्मा का तप करना , श्रीहरि का उन्हें दर्शन देना , विवादग्रस्त  ब्रह्मा -विष्णु के बीच में अग्निस्तम्भ का प्रकट होना तथा उसके ओर-छोर का पता न  पाकर उन दोनों  को उसे प्रणाम प्रणाम करना.

8.ब्रह्मा और विष्णु को भगवान शिव के शब्दमय शरीर का दर्शन

9.उमसहित भगवान शिव का प्राकट्य,उनके द्वारा अपने स्वरुप का विवेचन तथा ब्रह्मा आदि  तीनों देवताओं की एकता का प्रतिपादन .

10.श्रीहरि को सृष्टी की रक्षा का भार एवं भोग-मोक्ष दान का अधिकार देकर भगवान शिव का अंतर्धान होना

11.शिव पूजन की विधि तथा उसका फल

12. भगवान शिव की श्रेष्ठता तथा उनके पूजन की अनिवार्य आवश्यकता का प्रतिपादन

13.शिव पूजन की सर्वोत्तम विधि का वर्णन

14.विभिन्न पुष्पों, अन्नों तथा जलादी की धाराओं से शिवजी की पूजा का महत्व

15.ब्रह्मा की की संतानों का वर्णन तथा सती और शिव की महत्ता का प्रतिपादन

16.यज्ञदत्त के पुत्र गुणनिधि का चरित्र

18.शिव मंदिर में दीपदान के प्रभाव से पापमुक्त होकर गुणनिधि का दुसरे जन्म में कलिंग देश का राजा बनना और फिर शिव भक्ति के कारण कुबेर पद की प्राप्ति

19.कुबेर का काशीपुर में आकर तप करना, तपस्या  से प्रसन्न उमसहित भगवान विश्ववनाथ का प्रकट हो उसे दर्शन देना और अनेक वर प्रदान करना. कुबेर द्वारा शिव मैत्री प्राप्त करना

20.भगवान शिव का कैलास पर्वत पर गमन तथा सृष्टी खंड का उपसंहार

सतीखंड 

शिव पुराण कथा सूची . ( Shiv Puran story list)

1.सती चरित्र वर्णन, दक्षयज्ञ विध्वंस का संक्षिप्त वृत्तांत तथा सती का पार्वती रुप में हिमालय के यहाँ जन्म लेना.

2.सदाशिव त्रिदेवों की उत्पत्ति , ब्रह्मा जी से देवता आदि की सृष्टी के पश्चात देवी संध्या तथा कामदेव का प्राकट्य

3.कामदेव को विविध नामों एवं वरों की प्राप्ति, काम के प्रभाव से ब्रह्मा तथा  ऋषि गणों का मुग्ध होना, धर्मद्वारा स्तुति करने पर भगवान  शिव का प्राकट्य और ब्रह्मा तथा ऋषियों को समझाना. ब्रह्मा तथा ऋषियों से  अग्निश्वात आदि पितृगणों की उत्पत्ति, ब्रह्मा द्वारा काम को शाप की प्राप्ति तथा निवारण का उपाय

4.कामदेव के विवाह का वर्णन

5.ब्रह्मा की मानसी कुमारी संध्या की कथा

6.संध्या द्वारा तपस्या करना ,  प्रसन्न हो भगवान शिव का उसे दर्शन देना, संध्या द्वारा कि  गयी शिवस्तुति, संध्या को अनेकों वर की प्राप्ति तथा महर्षि मेधातिथि के यज्ञ में जाने का आदेश प्राप्त होना.

7.महर्षि मेधातिथि की यज्ञ अग्नि में संध्या द्वारा शरीर त्याग, पुन: अरुणधती के रूप में यज्ञ अग्नि से उत्पत्ति एवं वशिष्ठ मुनि के साथ उनका विवाह

8.कामदेव के सहचर वसंत के आविर्भाव का वर्णन

9.कामदेव द्वारा भगवान शिव को विचलित ना कर पाना, ब्रह्मा जी द्वारा कामदेव के सहायक मारगणों की उत्पत्ति ,ब्रह्माजी का उन सबको शिव के पास भेजना, उनका वहां विफल होना, गणों सहित कामदेव का वापस अपने आश्रम लौटना.

10.ब्रह्मा और विष्णु के संवाद में शिव के महत्व का वर्णन

11.ब्रह्मा द्वारा जगदम्बिका शिवा की स्तुति तथा वर की प्राप्ति.

12.दक्ष प्रजापति का तपस्या के प्रभाव से शक्ति का प्रदर्शन  और उनसे रूद्र मोहन की प्रार्थना

13.ब्रह्मा की आज्ञा से दक्ष द्वारा मैथुनी सृष्टी का आरम्भ, अपने पुत्र हर्यश्वों तथा सबलाश्वों को निविर्त्ति मार्ग में भेजने के कारण  दक्ष का नारद को श्राप देना.

14.दक्ष की साथ कन्याओं का विवाह, दक्ष के यहाँ देवी शिवा ( सती) – का प्राकट्य सती की बाललीला का वर्णन

15. सती द्वारा नंदा-व्रत का अनुष्ठान तथा देवताओं द्वारा शिव स्तुति

16.ब्रह्मा और विष्णु द्वारा शिव से विवाह के लिए प्रार्थना करना तथा उनकी इसके लिए स्वीकृति

17.भगवान शिव द्वारा सती को वर-प्राप्ति और शिव का ब्रह्मा जी को दक्ष प्रजापति के पास जाना

18.देवताओं और मुनियों सहित भगवान शिव का दक्ष  के घर जाना ,दक्ष द्वारा सबका सत्कार एवं सती तथा शिव का विवाह

19.शिव का सती के साथ विवाह, विवाह के समय शंभू की माया से ब्रह्मा का मोहित होना और विष्णु द्वारा शिवतत्त्व का निरुपम

20.ब्रह्मा जी का ‘रुद्रशिर’ नाम पड़ने का कारण सती शिव का विवाह महोत्सव , विवाह के अनंतर शिव और सती का वृषभारूढ़ हो कैलास के लिए प्रस्थान.

21. कैलास पर्वत पर भगवान शिव एवं सती की मधुर लीलाएं

22.सती और शिव का विहार – वर्णन

23.सती के पूछने पर शिव द्वारा भक्ति की महिमा तथा नवधा भक्ति का निरुपम

24.दंडकारण्य में शिव को राम के प्रति मस्तक देख सती का मोह तथा शिव की आज्ञा से उनके द्वारा राम की परीक्षा

25.श्री शिव के  द्वारा गोलोक धाम में श्री विष्णु गोपेश के पद पर अभिषेक, श्री राम द्वारा सती के मन का संदेह दूर करना, शिव द्वारा सती का मानसिक रुप से परित्याग

26.सती की कथा में शिव के साथ विरोध  वर्णन.

27 .दक्ष प्रजापति द्वारा महान यज्ञ का आरम्भ,  यज्ञ में दक्ष द्वारा शिव के ना बुलाये जाने पर दधिची द्वारा दक्ष की भर्त्सना करना,दक्ष के द्वारा शिव-निंदा करने पर दधीची का का वहां से प्रस्थान

28.दक्ष का समाचार पाकर एवं शिव की आज्ञा प्राप्त कर देवी सती का शिवगणों के साथ पिता के यज्ञ मंडप के लिए प्रस्थान करना.

29. यज्ञ शाला में शिव का भाग देखकर तथा दक्ष द्वारा शिव निंदा सुनकर क्रुद्ध हो  सती का दक्ष तथा देवताओं का फटकारना और प्राण त्यागने का निश्चय करना.

30.दक्ष यज्ञ में सती का योगअग्नि से अपने शरीर को भष्म कर देना,भृगु  द्वारा यज्ञ कुंड से ऋभुओं को प्रकट करना, ऋभुओ और शंकर के गणों का युद्ध. भयभीत गणों का पलायित होना.

31.यज्ञ मंडप में आकाशवाणी द्वारा दक्ष को फटकारना तथा देवताओं को सावधान करना

32.सती के दग्ध होने का समाचार सुनकर कुपित हुआ शिव का अपनी जटा से वीर भद्र और महाकाली को प्रकट करके उन्हें यज्ञ-विध्वंस करने की आज्ञा देना

33. गणों सहित वीर भद्र और महाकाली का दक्ष यज्ञ -विध्वंस के लिए प्रस्थान

34.दक्ष तथा देवताओं का अनेको अपशकुनों एवं उत्पात सूचक लक्षणों  को देखकर भयभीत होना.

35.दक्ष द्वारा यज्ञ की रक्षा के लिए भगवान विष्णु से प्रार्थना,भगवान का शिवद्रोह जनित संकटों को टालने मेंअपनी असमर्थता बताते हुए दक्ष को समझाना तथा सेना सहित वीरभद्र का आगमन

36.युद्ध में शिवगणों से पराजित हो देवताओं का पलायन, इंद्र आदि के पूछने पर  बृहस्पति का रूद्र देव की अजेयता बताना, वीर भद्र का देवताओं को युद्ध के लिए ललकारना,विष्णु और वीरभद्र की बातचीत

37.गणों सहित वीर भद्र द्वारा दक्ष के यज्ञ का नाश, दक्ष का वध, वीर भद्र का वापस कैलास पर्वत जाना,प्रसन्न भगवान शिव द्वारा उसे गणाध्यक्ष का पद प्रदान करना.

38.दधिची मुनि और राजा क्षुव  के विवाद का इतिहास, शुक्रचार्या द्वारा दधिची को महा-मृतुन्जय -मंत्र का उपदेश, मृतुन्जय के अनुष्ठान से दधिची को अवध्य्ता की प्राप्ति.

39. श्रीविष्णु और देवताओं से अपराजित दधिची द्वारा देवताओं को शाप देना तथा राजा क्षुवक पर अनुग्रह करना

40 . देवताओं सहित ब्रह्मा का विष्णुलोक में जाकर अपना दुःख निवेदन करना, उन सभी को लेकर विष्णु का कैलास गमन तथा भगवान  से मिलना.

41.देवताओं द्वारा भगवान की स्तुति

42.भगवान शिव का देवता आदि पर अनुग्रह, दक्षयज्ञ मंडप में पधारकर दक्ष को जीवित करना तथा दक्ष और विष्णु आदि द्वारा शिव की स्तुति.

43.भगवान शिव का दक्ष को अपनी भक्तवत्सलता, ज्ञानी भक्त की श्रेष्ठता तथा तीनों देवों की एकता बताना, दक्ष का अपने यज्ञ को पूर्ण करना,देवताओं का अपने अपनेलोकों को प्रस्थान तथा सती खंड का उपसंहार और महत्व.

पार्वती खंड.

शिव पुराण कथा सूची . ( Shiv Puran story list)

1.पितरों की कन्या मेना के साथ हिमालय के  विवाह का वर्णन

2.पितरों की तीन मानसी कन्याओं -मेना, धन्या और कलावती के पूर्वजन्म की कथा का वृत्तांत  और सनकादिक द्वारा प्राप्त शाप एवं वरदान का वर्णन

3.विष्णु आदि देवताओं का हिमालय के पास जाना, उन्हें उमारा धन की विधि बता स्वयं भी देवी जगदम्बा की स्तुति करना

4.उमा देवी का दिव्या रूप में देवताओं को दर्शन देना और अवतार ग्रहण करने का आश्वाशन देना

5.मेनका की तपस्या से प्रसन्न होकर देवी का उन्हें प्रत्यक्ष दर्शन देकर वरदान देना, मेना से मैनाक का जन्म

6.देवी उमा का हिमावन के ह्रदय तथा मेना के गर्भ में आना, गार्भावस्था देवी का देवताओं द्वारा स्तवन , देवी का दिव्य रूप में प्रादुर्भाव , माता मेना से वार्तालाप तथा पनु: नवजात कन्या के रूप में परिवर्तित होना

7.पार्वती का नामकरण तथा उनकी बाल लीलाएं एवं विद्या अध्ययन

8.नारद मुनि का हिमालय के समीप गमन , वहां पार्वती का हाथ देखकर भावी लक्षणों को बताना,चिंतित हिमवान को शिव महीमा बताना तथा शिव से विवाह करने का परामर्श देना.

9.पार्वती के विवाह के सम्बन्ध में मेना और हिमालय वार्तालाप,पार्वती और हिमालय द्वारा देखे गए अपने स्वपन्न का वर्णन

10.शिव जी के ललाट से भौमोत्पत्ति

11.भगवान शिव का तपस्या के लिए हिमालय पर आगमन,वहां पर्वत राज हिमालय से वार्तालाप

12.हिमवान का पार्वती को शिव की सेवा में रखने के लिए उनसे आज्ञा मांगना, शिव द्वारा कारण बताते हुए इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर देना

13.पार्वती और परमेश्वर का दार्शनिक संवाद, शिव का पार्वती को अपनी सेवा के लिए आज्ञा देना पार्वती का महेश्वर की सेवा में तत्पर रहना

14. तारकासुर की उत्पत्ति के प्रसंग में दिति पुत्र वज्रांग की कथा , उसकी तपस्या तथा वर प्राप्ति का वर्णन

15.वरांगी के पुत्र तारकासुरकी उत्पत्ति, तारकासुर की तपस्या एवं ब्रह्मा जी द्वारा उसे वर प्राप्ति, वरदान के प्रभाव से तीनों लोकों पर उसका अत्याचार

16.तारकासुर से उत्पीडित देवताओं को ब्रह्मा जी द्वारा सान्तवना प्रदान करना

17.इंद्र के स्मरण करने पर कामदेव का उपस्थित होना , शिव को तप से विचलित करने के लिए इंद्र द्वारा काम देव को भेजना

18.कामदेव द्वारा असमय में वसंत-ऋतु का प्रभाव प्रकट करना,कुछ क्षणों के लिए शिव का मोहित होना, पुन: वैराग्य -भाव धारण करना

19.भगवान शिव की नेत्र ज्वाला से कामदेव का भष्म होना और रति का विलाप. देवताओं द्वारा रति को सान्तवना प्रदान करना और भगवान शिव से काम को जीवित करने की प्रार्थना करना

20.शिव की क्रोधाग्नि का वडवारुप धारण और ब्रह्मा द्वारा उसे समुद्र में समर्पित करना

21.कामदेव के भष्म हो जाने पर पार्वती का अपने घर आगमन . हिमवान तथा मेना द्वारा उन्हें धैर्य प्रदान करना, नारद द्वारा पार्वती को पंचाक्षर मंत्र का उपदेश

22.पार्वती की तपस्या एवं उसके प्रभाव का वर्णन

23.हिमालय आदि का तपस्यानिरित पार्वती के पास जाना, पार्वती का पिटा हिमालय आदि को अपने तप के विषय में दृढ निश्चय की बात बताना.पार्वती के ताप के प्रभाव से  त्रेलोक्य का संतप्त होना, सभी देवताओं का भगवान शंकर के पास जाना

24.देवताओं का भगवान शिव से पार्वती के साथ विवाह करने का अनुरोध ,भगवान का विवाह के दोष  बताकर अस्वीकार करना तथा उनके पुन: प्रार्थना करने पर स्वीकार कर लेना

25.भगवान शंकर की आज्ञा से सप्तऋषियों द्वारा पार्वती के शिव विषयक अनुराग की परीक्षा करना और वह वृत्तांत भगवान शिव को बताकर स्वर्गलोक जाना

26.पार्वती की परीक्षा लेने भगवान शिव का जटाधारी ब्राह्मण का वेश धारण पार्वती के समीप जाना, शिव पार्वती संवाद .

27.जटाधारी ब्राह्मण द्वारा पार्वती के समक्ष शिव जी के स्वरुप की निंदा करना.

28 .पार्वती द्वारा  परमेश्वर शिव की महत्ता के बारे बताना और  रौषपूर्वक जटाधारी ब्रह्मण को फटकारना,शिव का पार्वती के समक्ष प्रकट होना.

29.शिव और पार्वती संवाद, विवाह विषयक पार्वती के अनुरोध को शिव द्वारा स्वीकार करना

30.पार्वती के पिता के घर में आने पर महा महोत्सव का होना, महादेव जी का नटरुप धारण कर वहन उपस्थित होना तथा लीलाएं दिखाना, शिव पार्वती की याचना किन्तु माता पिता के द्वारा मना करने पर अन्तर्धान हो जाना.

31. देवताओं के कहने पर शिव का ब्र्ढ़मन वेश में हिमालय के यहाँ जाना और शिव की निंदा करना

32.ब्रह्मण -वेशधारी शिव द्वारा शिवरुप की निंदा सुनकर मेना का कोप भवन में गमन.शिव द्वारा सप्तऋषियों का स्मरण और उन्हें हिमालय के घर भेजना, हिमालय की शोभा का वर्णन तथा हिमालय द्वारा सप्त ऋषियों का स्वागत

33.वशिष्ठ की पत्नी अरुंधती द्वारा मेनका को समझाना तथा सप्त ऋषियों द्वारा हिमालय को शिव का महत्व बताना.

34.  सप्त ऋषियों द्वारा हिमालय को राजा अनरण्य की कथा सुनाकर पार्वती का विवाह शिव से करने की प्रेरणा दना.

35.धर्मराज द्वारा मुनि पिप्लाद की भार्या सती पद्मा के पातिव्रत्य की परीक्षा, पद्मा द्वारा धर्मराज को श्राप प्रदान करना तथा पुन: चारो युगों में शाप की व्यवस्था करना, पातिव्रत्य से प्रसन्न हो धर्म राज द्वारा पद्मा को अनेक वरदान प्रदान करना, महर्षि वशिष्ठ द्वारा हिमावन से पद्मा के दृष्टांत कहानी द्वारा अपनी पुत्री शिव को सौपने के लिए कहना .

36.सप्त ऋषियों के समझाने पर हिमवान का शिव के साथ अपनी पुत्री के विवाह का निश्चय करना,सप्त ऋषियों द्वारा शिव के पास जाकर उन्हें  सम्पूर्ण वृत्तांत बताकर अपने धाम को जाना

37.हिमालय द्वारा विवाह के लिए लग्न पत्रिका प्रेष, विवाह की सामाग्रियों की तैय्यारी तथा अनेक पर्वतों एवं नदियों का दिव्य रुप में सपरिवार हिमालय के घर जाना.

38 .हिमालय पुरी की सजावट, विश्वकर्मा द्वारा दिव्य मंडप एवं देवताओं के निवास के लिए दिव्य लोकों का निर्माण करना.

39.भगवान शिव का नारद जी के द्वारा सब देवताओं को निमंत्रण दिलवाना ,सबका आगमन तथाशिव का मंगलाचार एवं गृह पूजन आदि करके कैलास से  बाहार निकलना

40.शिव बरात की शोभा, भगवान शिव का बरात लेकर हिमालय पुरी की ओर प्रस्थान

41.नारद द्वारा हिमालय गृह में जाकर विश्वकर्मा  द्वारा बनाए गए विवाह मंडप का दर्शन कर मोहित होना और वापस आकर उस पवित्र रचना का वर्णन करना

42.हिमालय द्वारा प्रेषित मूर्तिमान पर्वतों और ब्राह्मणों द्वारा बरात की अगवानी,देवताओं और पर्वतों के मिलाप का वर्णन

43.मेनका द्वारा शिव को देखने के  लिए महल के  छत पर जाना, नारद द्वारा सका दर्शन कराना. शिव द्वारा अद्भूत लीला का प्रदर्शन, शिवगणों  तथा शिव के भयंकर वेश को देखकर मेनका का मूर्छित  होना

44.शिव जी के रूप को देखकर मेनका का विलाप, पार्वती तथा नारद आदि सभी को फटकारना, शिव के साथ कन्या का विवाह न करने का हठ, विष्णु द्वारा मेनका को समझाना

45.भगवान शिव का अपने परम दिव्य रूप को प्रकट करना, मेनका की प्रसन्नता और क्षमा-प्रार्थना तथा पुरवासिनी स्त्रियों का शिव के रूप का दर्शन करके जन्म और जीवन को सफल मानना.

46.नगर में बारातियों का प्रवेश,द्वाराचार ,तथा पार्वती  द्वाराकुलदेवता का पूजन

47.पाणिग्रहण के लिए हिमालय के घर  शिव के गमनोत्सव का वर्णन

48.शिव-पार्वती के विवाह का आरम्भ, हिमालय द्वरा शिव के गोत्र के विषय में प्रश्न होने पर नारद जी द्वारा उत्तर के रुप में शिव के महत्व के बारे में बताना, हर्ष युक्त  हिमालय द्वारा कन्यादान कर विविध उपहार प्रदान करना

49.अग्नि परिक्रमा करते समय पार्वती के पद नख को देखकरब्रह्मा का मोहग्रस्त होना, बालखिल्य ऋषियों की उत्पत्ति, शिव का कुपित होना, देवताओं द्वारा शिव स्तुति

50.शिवा -शिव के विवाह कृत्य संपादन के अनंतर देवियों का शिव से मधुर वार्तालाप

51.रति के अनुरोध पर श्री शिव शंकर का कामदेव को जीवित करना, देवताओं द्वारा शिव स्तुति

52.हिमालय द्वारा सभी बारातियों को भोजन करवाना, शिव का विश्वकर्मा द्वारा निर्मित वासगृह में शयन करके प्रात: काल जनवासे में आगमन

53. चतुर्थी कर्म, बरात का कई दिनों तक ठहरना, सप्त ऋषियों के समझाने से हिमालय का बरात को विदा करने के लिए राजी होना, मेनका का शिव को अपनी कन्या सौपना तथा बरात पुरी के बाहर जाकर ठहरना

54.मेनका की इच्छा के अनुसार एक ब्राह्मण पत्नी का पार्वती को पतिव्रत धर्म का उपदेश बतलाना

55. शिव पार्वती तथा बरात की विदाई,भगवान शिव का समस्त देवताओं को विदा करके कैलास पर रहना और शिव-विवाह की महिमा.

कुमार खंड

शिव पुराण कथा सूची . ( Shiv Puran story list)

1.कैलास पर भगवान शिव एवं पार्वती का विहार

2.भगवान शिव के तेज से स्कन्द का प्रादुर्भाव और सर्वत्र महान आनंद उत्सव का होना

3.महर्षि विश्वामित्र द्वारा बालक स्कन्द का संस्कार सम्पन्न करना, बालक सकंद द्वारा क्रौंच पर्वत का भेदन, इंद्र द्वारा बालक पर वज्र प्रहार, शाख  विशाख आदि का उत्पन्न होना , कार्तिकेय का षन्मुख होकर छ: क्रित्तिकाओं का दुग्धपान करना.

4.पार्वती के कहने पर शिव द्वारा देवताओं तथा कर्म साक्षी धर्मादी को से कार्तिकेय के विषय में जिज्ञासा करना और अपने गणों को क्रित्तिकाओं के पास भेजना, नंदिकेश्वर तथा कार्तिकेय का वार्तालाप , कार्तिकेय का कैलास के लिए प्रस्थान

5.पार्वती द्वारा प्रेषित रथ पर  आरुढ़ हो कार्तिकेय का कैलास गमन, कैलास पर महान उत्सव होना,कार्तिकेय का महाभिषेक तथा देवताओं द्वारा विविध अस्त्र-शस्त्र तथा रत्ना भूषण प्रदान करना, कार्तिकेय का ब्रह्मांड का अधिपतित्व प्राप्त करना.

6.कुमार कार्तिकेय की ऐश्वर्यमयी बाललीला

7.तारकासुर से सम्बद्ध देवासुर संग्राम

8.देवराज इंद्र, विष्णु तथा वीरक आदि के साथ तारकासुर का युद्ध

9.ब्रह्माजी का कार्तिकेय को तारक के वध के लिए प्रेरित करना, तारकासुर द्वारा विष्णु तथा इंद्र की भर्त्सना ,पुन: इंद्र के साथ तारकासुर का वध

10.कुमार कार्तिकेय और तारकासुर का भीषण संग्राम, कार्तिकेय द्वारा तारकासुर का वध, देवताओं द्वारा दैत्य सेना पर विजय प्राप्त करना. देवताओं द्वारा  शिवा-शिव तथा कुमार की स्तुति

11. कार्तिकेय द्वारा बाण तथा प्रलम्ब आदि असुरों का वध, कार्तिकेय चरति के श्रवण का महत्व.

12.विष्णु आदि देवताओं तथा पर्वतों द्वारा कार्तिकेय की स्तुति और वर प्राप्ति. देवताओं के साथ कुमार का कैलास गमन. कुमार को देखकर शिव पार्वती का आनंदित होना, देवों द्वारा शिव स्तुति.

13.गणेश जन्म की कथा. पारवर्ती का अपने पुत्र विनायक को अपने द्वार पर नियुक्त करना, शिव और गणेश का वार्तालाप .

14. द्वार रक्षक गणेश  तथा शिव गणों का परस्पर विवाद

15.गणेश तथा शिवगणों का भयंकर युद्ध, पार्वती द्वारा  दो शक्तियों का प्राकट्य,शक्तियों का अद्भूत पराक्रम और शिव का कुपित होना

16.विष्णु तथा गणेश का युद्ध, शिव द्वारा त्रिशूल से गणेश का सिर काटा जाना

17. पुत्र के वध से कुपित जगदम्बा का अनेक शक्तियों को उत्पन्न करना और उनके द्वारा प्रलय मचाया जाना,देवताओं और ऋषियों का स्तवन द्वारा पार्वती को प्रसन्न करना.शिव जी के आज्ञानुसार हाथी का सिर लाया जाना और उसे गणेश के धड से जोड़कर उन्हें जीवित करना

18.पार्वती द्वारा गणेश को वरदान,देवों द्वारा उन्हें प्रथमपूज्य माना जाना.शिव जी द्वारा गणेश को सर्वाध्यक्ष  पद प्रदान करना करना, गणेश चतुर्थी व्रत विधान तथा उसका महत्व. देवताओं का स्वलोक गमन.

19.स्वामी कार्तिकेय और गणेश की बाल लीला, विवाह के विषय में दोनों का परस्पर विवाद,शिवजी द्वारा पृथ्वी -परिक्रमा का आदेश, कार्तिकेय का प्रस्थान, बुद्धिमान गणेश जी का पृथ्वीरुप माता पिता की परिक्रमा और प्रसन्न शिवा-शिव द्वारा गणेश के प्रथम विवाह की स्वीकृति

20.प्रजापति विश्वरुप की सिद्धि बुद्धि नामक दो कन्याओं के साथ गणेश जी का विवाह तथा तथा उनसे क्षेम  तथा लाभ नामक दो पुत्रों  की उत्पत्ति, कुमार कार्तिकेय का पृथ्वी की परिक्रमा कर लौटना और क्षुब्ध होकर क्रोंच पर्वत चले जाना,कुमार खंड के श्रवण की महिमा.

युद्ध खंड

शिव पुराण कथा सूची . ( Shiv Puran story list)

1.तारकासुर के पुत्र  तारकाक्ष , विन्धुन्माली एवं कमलाकक्ष की तपस्या से प्रसन्न  ब्रह्मा द्वारा उन्हें वरदान की प्राप्ति, तीनो पुरों की शोभा का वर्णन.

2.तारक पुत्रों से पीड़ित देवताओं का ब्रह्माजी के पास जाना और उनके परामर्श के अनुसार असुर -वध के लिए भगवान शंकर की स्तुति करना .

3.त्रिपुर  विनाश के देवताओं का विष्णु से निवेदन करना, विष्णु द्वारा त्रिपुर विनाश के लिए यज्ञ कुंड से भूत समुदाय को प्रकट करना, त्रिपुर के भय से भूतों का भागना.पुन: विष्णु द्वारा देव कार्य की सिद्धि के लिए उपाय सोचना

4.त्रिपुरवासी दैत्यों को मोहित करने के लिए भगवान विष्णु द्वारा एक मुनिरुप की उत्पत्ति, उनकी सहायता के लिए  नारद जी का त्रिपुर में गमन,  त्रिपुराधिप का दीक्षा ग्रहण करना

5.मायावी यति द्वारा अपने धर्म का उपदेश  त्रिपुर वासियों का उसे स्वीकार करना, वेद धर्म के नष्ट हो जाने से त्रिपुर में अधर्माचरण की प्रवृत्ति

6.त्रिपुर ध्वंश के के लिए देवताओं द्वारा भगवान शिव की स्तुति

7.भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए देवताओं द्वारा मंत्र, जप , शिव का प्राकट्य  तथा त्रिपुर विनाश के लिए दिव्य रथ आदि के निर्माण के लिए विष्णु जी से कहना

8.विश्वकर्मा द्वारा निर्मित सर्व देवमय दिव्य रथ का वर्णन

9.ब्रह्मा जी को सारथि बनाकर भगवान शंकर का दिव्य रथ में आरूढ़ होकर अपने गणों तथा देव सेना के साथ त्रिपुर वध के लिए प्रस्थान, शिव का पशुपति  पड़ने का कारण

10.भगवान शिव का त्रिपुर पर संधान करना, गणेश जी का विघ्न उपस्थित करना, आकाशवाणी द्वारा बोधित होने पर शिव द्वारा विघ्ननाशक गणेश का पूजन, अभिजित  मुहूर्त में तीनों पुरों का एकत्र होना और शिव द्वारा अग्नि बाण से सम्पूर्ण त्रिपुर को भष्म करना. मय दानव का बचा रहना.

11.त्रिपुरदाह के अनंतर भगवान शिव के रौद्र रुप से भयभीत देवताओं द्वारा उनकी स्तुति और उनसे भक्ति का वरदान प्राप्त करना.

12.त्रिपुर दाह के अनंतर शिव भक्त मय दानव का भगवान  शिव की शरण में आना, शिव द्वारा उसे अपनी शक्ति प्रदान कर वितललोक में निवास अकरने की आज्ञा देना. देव कार्य संपन्न कर शिव जी का अपने धाम जाना.

13.देव गुरु बृहस्पति  और देवराज इंद्र का शिव दर्शन के लिए कैलास की ओर प्रस्थान करना, सर्वज्ञ शिव का उनकी परीक्षा लेने के लिए दिगंबर जटाधारी रुप धारण कर मार्ग रोकना , क्रिधित इंद्र द्वारा उन पर वज्र प्रहार की चेष्टा करना, शंकर द्वारा उनकी भूजा को स्तंभित कर देना, बृहस्पति द्वारा उनकी स्तुति , शिव का प्रसन्न होना और अपनी नेत्राग्नि को क्षार समुद्र में फेंकना.

14. क्षार समुद्र में प्रक्षिप्त भगवान शंकर की नेत्राग्नि से समुद्र के पुत्र के रुप में जलंधर का प्राकट्य, कालनेमि की पुत्री वृंदा के साथ जलंधर का विवाह.

15.राहू के शिरच्छेद तथा समुद्र मंथन के समय के देवताओं  के छल को जानकार जलंधर द्वारा क्रुद्ध होकर स्वर्ग पर आक्रमण करना. इंद्र सहित सभी देवताओं की पराजय ,अमरावती पर जलंधर का आधिपत्य ,भयभीत देवताओं का सुमेरु की गुफाओं में छिपना.

16.जलंधर से भयभीत देवताओं का विष्णु के समीप जाकर स्तुति  करना, विष्णु सहित देवताओं का जलंधर की सेना के साथ भयंकर युद्ध

17.विष्णु और जलंधर युद्ध में  जलंधर के पराक्रम से संतुष्ट विष्णु का देवों एवं लक्ष्मी सहित उसके नगर नगर में निवास करना

18.जलंधर के आधिपत्य में रहने वाले दुखी देवताओं द्वारा शंकर की स्तुति , शंकर जी का देवर्षि नारद को जलंधर के पास भेजना, वहां के देवों को आश्वस्त करके  जलंधर की सभा में जाना,उसके  ऐश्वर्य को देखना तथा पार्वती के सौंदर्य का वर्णकर उसे प्राप्त करने के लिए जलंधर को परामर्श  देना.

19.पार्वती को प्राप्त करने के लिए जलंधर का शंकर के पास दूत भेजना,उसके वचन से उत्पन  क्रोध से शंभू के भ्रू मध्य से एक भयंकर पुरुष की उत्पत्ति, उससे भयभीत जलंधर के दूत का पलायन , उस पुरुष का कीर्तिमुख नाम से शिवगणों में प्रतिष्ठित होना तथा शिव द्वार पर स्थित होना.

20.दूत के द्वारा कैलास का वृतांत जानकार जलंधर का अपनी सेना को युद्ध का आदेश देना,भयभीत देवों की शिव की शरण में आना, शिवगणों तथा जलंधर की सेना का युद्ध, शिव द्वारा कृत्या को उत्पन्न  करना कृत्या द्वारा शुक्राचार्य को छिपा लेना

21.नंदी, गणेश, कार्तिकेय आदि शिवगणों का कालनेमि,शुभ तथा निशुम्भ के साथ घोर संग्राम, वीर भद्र तथा जलंधर का युद्ध  भयाकुल शिवगणों का शिव जी को सारा वृत्तांत बताना.

22.शिव और जलंधर का  युद्ध , जलंधर द्वारा गांधर्वी , माया से शिव को मोहित कर शीघ्र ही पार्वती के पास पहुंचना , उसकी माया को जानकार पार्वती का आदृश्य हो जाना और भगवान विष्णु को जलंधर पत्नी वृंदा के पास जाने के लिए कहना

23.विष्णु द्वारा माया उत्पन्न कर वृंदा को सपने के माध्यम से  मोहित करना और स्वयं जलंधर का रुप धारण कर वृंदा के पातिव्रत का हरण करना , वृंदा द्वारा विष्णु को शाप देना तथा वृंदा के तेज का पार्वती में विलीन हो जाना.

24.दैत्यराज जलंधर तथा भगवान शिव का घोर संग्राम,भगवान शिव द्वारा चक्र से जलंधर का शिरश्छेदन ,जलंधर का तेज शिव में प्रविष्ट होना, जलंधरवध से जगत में सर्वत्र शान्ति का विस्तार

25.जलंधर वध से प्रसन्न देवताओं द्वारा भगवान शिव की स्तुति

26.विष्णु जी के मोह भंग के लिए शंकर जी की प्रेरणा से देवों द्वारा मूल प्रकृति की स्तुति ,मूलप्रकृति द्वारा आकाशवाणी के रुप में देवों को आश्वासन , देवताओं द्वारा त्रिगुणात्मिक देवियों का स्तवन, विष्णु का मोहनाश , धात्री ( आंवला ),मालती तथा तुलसी की उत्पत्ति का वर्णन

27.शंखचुड की उत्पत्ति की कथा

28.शंखचूड की पुष्कर -क्षेत्र में तपस्या ,ब्रह्मा द्वारा उसे वर की प्राप्ति .ब्रह्मा की प्रेरणा से शंखचूड का तुलसी से विवाह

29.शंखचूड का राज्यपद पर अभिषेक उसके द्वारा देवों पर विजयी , दुखी देवों का ब्रह्मा जी के साथ वैकुण्ठगमन ,विष्णु द्वारा शंखचूड के पूर्व जन्म की कथा और विष्णु तथा ब्रह्मा का शिवलोक गमन

30.ब्रह्मा तथा विष्णु का शिवलोक पहुंचना ,शिव लोक की तथा शिव सभा की शोभा का वर्णन, शिव सभा के मध्य उन्हें अम्बा सहित भगवान शिव के दिव्य स्वरुप का दर्शन और शंखचूड से प्राप्त कष्टों से मुक्ति के लिए प्रार्थना…..

31.शिव द्वारा ब्रह्मा विष्णु को शंख चूड का पूर्व वृत्तांत बताना और देवों को शंख चूड वध का आश्वाशन देना.

32.भगवान शिव के द्वारा शंखचूड को समझाने के लिए गंधर्वराज चित्ररथ ( पुष्प दन्त) को दूत के रुप में भेजना,शंख चूड द्वारा सन्देश की अवहेलना और युद्ध करने का अपना निश्चय बताना, पुष्प दन्त का वापस आकर सारा वृत्तांत शिव से निवेदित करना.

33.शंखचूड से युद्ध के लिए अपने गणों के साथ  भगवान शिव का प्रस्थान

34.तुलसी से विदा लेकर शंखचूड का युद्ध के लिएसैन्य सहित पुष्पभद्रा नदी के  तट पर पहुंचना

35.शंखचूड का अपने एक बुद्धिमान दूत को शंकर के पास भेजना, दूत तथा शिव की वार्ता, शंकर का सन्देश लेकर दूत का वापस  शंखचूड के पास आना.

36. शंखचूड का उद्धेश्य देवताओं का दानवों के साथ महा संग्राम.

37.शंखचूड के साथ कार्तिकेय आदि महावीरों का युद्ध

38.श्री काली का शंखचूड के साथ महान युद्ध, आकाशवाणी सुनकर काली का शिव के पास आकर युद्ध का वृत्तांत बताना

39.शिव और शंखचूड के महा-भयंकर युद्ध में शंखचूड के सैनिकों के संहार का वर्णन

40.शिव और शंखचूड का युद्ध, आकाशवाणी द्वारा शंकर को युद्ध से विरत करना, विष्णु का ब्रह्मण रुप धारण कर शंख चूड का कवच मांगना, कवचहीन  शंखचूड का भगवान शिव द्वारा वध,सर्वत्र प्रसन्नता का माहौल.

41.शंखचूड का रुप धारण कर भगवान विष्णु द्वारा तुलसी के शील का हरण करना. तुलसी द्वारा विष्णु को पाषण होने का शाप देना, शंकर जी द्वारा तुलसी को सांत्वना,शंख,तुलसी गण्ड एवं शालग्राम की उत्पत्ति तथा इनके महत्व की कथा

42.अंधकासुर की उत्पत्ति कथा,शिव के वरदान से हिरण्याक्ष द्वारा अन्धक को पुत्र के रुप में प्राप्त करना, हिरण्याक्ष द्वारा पृथ्वी को पाताल लोक में ले जाना, भगवान विष्णु द्वारा वराह रुप धारण कर हिरण्याक्ष का वध कर पृथ्वी को यथा स्थान स्थापित करना

43. हिरन्यकश्य्पू  की तपस्या, ब्रह्मा  से वरदान पाकर उसका अत्याचार , भगवान नृसिंह द्वारा उसका वध और प्रह्लाद को राज्य प्राप्ति

44.अंधकासुर की तपस्या,ब्रह्मा द्वारा उसे अनेक वरों की प्राप्ति, त्रिलोक को जीतकर उसका स्वेच्छाचार से प्रवृत्त होना, मंत्रियों द्वारा पार्वती के सौंदर्य को सुनकर मुग्ध हो शिव के पास सन्देश भेजना और शिव का उत्तर सुनकर क्रुद्ध हो युद्ध के लिए उद्धोग करना

45.अंधकासुर का शिव की सेना के साथ युद्ध

46.भगवान शिव और अंधकासुर युद्ध ,अन्धक की माया से उसके रक्त से अनेक अन्धक गणों की उत्पत्ति,शिव की प्रेरणा से विष्णु का कालीरुप धारण कर दानवों के रक्त का पान करना,शिव द्वारा अन्धक को अपने त्रिशूल में लटका लेना, अन्धक की स्तुति से प्रसन्न हो शिव द्वारा उसे गाणपत्य  पद प्राप्त करना

47.शुक्रचार्या द्वारा युद्ध में मरे हुए दैत्यों को संजीविनी विद्या से जीवित करना, दैत्यों का युद्ध के लिए पुन: प्रयास करना. नंदिध्वर द्वारा शिव को यह वृत्तांत बतलाना, शिव की आज्ञा से नंदी द्वारा युद्ध स्थल से शुक्राचार्य को शिव के पास लाना, शिव द्वारा शुक्राचार्य को निगलना

48.शुक्राचार्य की अनुपस्थिति में अन्धक आदि दैत्यों का दुखी होना, शिव के उदर में शुक्रचार्या द्वारा सभी लोकों तथा अंधकासुर  के युद्ध को देखना और फिर शिव के शुक्र रुप में बाहर आना, शिव पार्वती का उन्हें पुत्र के रुप  में स्वीकार कर विदा करना.

49.शुक्राचार्य  द्वारा शिव के उदर जपे गए मंत्र का वर्णन, अन्धक द्वारा भगवान शिव की नामरुपी स्तुति- प्रार्थना करना, भगवान शिव द्वारा अंधकासुर को जीवन दान पूर्वक गाणपत्य पद प्रदान करना

50.शुक्राचार्य द्वारा काशी में शुक्रेश्वर लिंग की स्थापना कर उनकी अराधना करना, मूर्त्यषटक स्त्रोत से उनका स्तवन , शिव जी का प्रसन्न होकर उन्हें मृत्संजिविनी विद्या प्रदान करना और ग्रहों के मध्य प्रतिष्ठित करना.

51.प्रह्लाद की वंश परंपरा में बलिपुत्र बाणासुर की उत्पत्ति की कथा . शिव भक्त बाणासुर द्वारा तांडव नृत्य के प्रदर्शन से शंकर को प्रसन्न करना, वरदान के रूप में शंकर का बाणासुर की नगरी में निवास करना, शिव पार्वती का विहार,पार्वती द्वारा बाण पुत्री उषा को वरदान.

52.अभिमानी बाणासुर द्वारा भगवान शिव से युद्ध की याचना ,बाण पुत्री उषा का रात्रीं के समय स्वपन्न में अनिरुद्ध के साथ मिलन, चित्रलेखा द्वारा योग बल से अनिरुद्ध् का द्वारका से अपहरण, अंत:पुर में अनिरुद्ध और उषा का मिलन तथा द्वारपालों द्वारा यह समाचार बाणासुर को बताना.

53.क्रुद्ध बाणासुर का अपनी सेना के साथ अनिरुद्ध पर आक्रमण कर उसे नागपाश में बाँधना ,दुर्गा के स्तवन द्वारा अनिरुद्ध का बंधन मुक्त होना.

54.नारद जी द्वारा अनिरुद्ध के बंधन का सामाचार पाकर श्री कृष्ण की शोणितपुर पर चढ़ाई, शिव के साथ उनका घोर  युद्ध, शिव की आज्ञा से श्रीकृष्ण का उन्हें जृम्भणासत्र सेमोहित करके बाणासुर की सेना का संहार करना

55.भगवान कृष्ण तथा बाणासुर संग्राम , श्रीकृष्ण द्वारा बाण की भुजाओं का काटा जाना, सिर काटने के लिए उद्धत हुए श्री कृष्ण को शिव का रोकनाऔर उन्हें समझना, बाण के गर्व का हरण, कृष्ण और बाणासुर की मित्रता, उषा और अनिरुद्ध को लेकर श्री कृष्ण का द्वारका आना

56.बाणासुर का तांडव नृत्य द्वारा भगवान को प्रसन्न करना , शिव द्वारा उसे अनेक मनो अभिलाषित वरदानों की प्राप्ति, बाणासुर कृत शिव स्तुति.

57.महिषासुर के पुत्र गजासुर की तपस्या तथा ब्रह्मा द्वारा वर प्राप्ति , उन्मत गजासुर द्वारा अत्याचार , उसका काशी में आना, देवताओं द्वारा भगवान शिव से उसके वध की प्रार्थना , शिव द्वारा उसका वध और उसकी प्रार्थना  से उसका चर्म धारण कर कृत्तिवासा नाम से विख्यात होना एवं कृत्तिवासेश्वर लिंग की स्थापना करना.

58.काशी के व्याघेश्वर लिंग -महत्व के सन्दर्भ में दैत्य दुन्दुभिनीहार्द के वध की कथा

59.काशी के कन्दुकेश्वर शिवलिंग के प्रादुर्भाव में पार्वती द्वारा विदल एवं उत्पल दैत्यों के वध की कथा. रुद्र संहिता का उपसंहार तथा इसका महत्व.

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