महाभारत के पात्र धृतराष्ट्र की कथा | Story of Dhritarashtra in hindi | Mahabharat Jivani धृतराष्ट्र जीवनी

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महाभारत ग्रंथ अपने अंदर बहुत से रहस्यों को समेटे हुए हैं। हम इसे जितना पढ़ते हैं इसके बारे में और ज्यादा जानने की जिज्ञासा हमारे मन में उत्पन्न होती है। आज हम आपको अपने इस पोस्ट में महाभारत के एक बहुत ही प्रमुख पात्र धृतराष्ट्र के बारे में बताने वाले हैं। दोस्तों धृतराष्ट्र महाभारत में जन्म से ही अंधे थे। लेकिन उन्हें यह अंधापन एक श्राप के कारण मिला था। शायद आप में से बहुत ही कम लोग जानते होंगे कि धृतराष्ट्र ने अपनी पत्नी गांधारी के समस्त परिवार को मरवा दिया था। लेकिन उन्होंने ऐसा क्यों किया था? और उन्होंने पिछले जन्म में ऐसा क्या किया था? कि उन्हें अंधे होने का श्राप मिला था। यह सारी रहस्यों के बारे में आज हम आपको अपने इस पोस्ट में बताएंगे।

महाभारत का युद्ध लड़ते समय भीम ने धृतराष्ट्र के प्रिय पुत्र दुर्योधन और दुशासन को बड़ी निर्दयता से मार डाला था। इस कारण राजा धृतराष्ट्र भीम को भी मार डालना चाहते थे। जब महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ तो श्रीकृष्ण के साथ पांचो पांडव धृतराष्ट्र और गांधारी के दर्शन हेतु महाराज धृतराष्ट्र के महल में पहुंचे। भगवान श्री कृष्ण के साथ पांचों पांडवों ने धृतराष्ट्र और गांधारी को प्रणाम किया। और एक-एक करके अपने अपने नाम बोले। श्री कृष्ण महाराज धृतराष्ट्र के मन में चल रही बात को पहले ही समझ गए थे। कि अपने पुत्र की मृत्यु का बदला लेने के लिए महाराज धृतराष्ट्र भीम को मारना चाहते हैं। महाराज धृतराष्ट्र ने भीम को अपने गले लगाने की इच्छा जाहिर की, तब भगवान श्रीकृष्ण ने तुरंत ही भीम के स्थान पर भीम के लोहे की बनी मूर्ति महाराज के आगे बढ़ा दी। दोस्तों महाराज धृतराष्ट्र जन्म से ही बहुत ही ज्यादा शक्तिशाली थे। उन्होंने क्रोध में आकर लोहे से बनी भीम की मूर्ति को अपने दोनों हाथों से दबा कर मूर्ति को तोड़ डाला। मूर्ति तोड़ने की वजह से उनके मुंह से खून निकलने लगा। और वह जमीन पर गिर पड़े, कुछ देर के बाद जब महाराज धृतराष्ट्र का क्रोध शांत हुआ तो एक जोर जोर से रोने लगे। उन्हें लगा कि उन्होंने भीम को मार डाला है। तब भगवान श्रीकृष्ण ने महाराज धृतराष्ट्र से कहा कि महाराज भीम अभी जिंदा है। वह तो भीम की बनी एक लोहे की मूर्ति थी जिसे आपने अपनी भुजाओं में दबाकर तोड़ा था। इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण ने एक बार फिर पांडवों में से भीम की जान बचा लिए।

धृतराष्ट्र जन्म से ही अंधे थे
दोस्तों अगर आपने महाभारत पढ़ी होगी तो आपको पता होगा कि महाराज शांतनु और उनकी पत्नी के दो पुत्र हुए। जिनका नाम था विचित्रवीर्य और चित्रांगद। चित्रांगदा बहुत ही कम उम्र में एक युद्ध लड़ते हुए मारे गए थे। इसके बाद पितामह भीष्म ने विचित्रवीर्य का विवाह काशी की राजकुमारी अंबिका और अंबालिका से करवाया था। विवाह के कुछ समय बाद ही बीमारी के कारण विचित्रवीर्य की भी मृत्यु हो गई। अभी तक विचित्रवीर्य की पत्नी अंबिका और अंबालिका संतान हिन् थी। इस बात को लेकर माता सत्यवती के मन में बहुत ही ज्यादा चिंता उत्पन्न हो गयी कि अब कौरव वंश आगे कैसे बढ़ेगा?

तब माता सत्यवती ने अपने कौरव वंश को आगे बढ़ाने के लिए अपने पुत्र वेद व्यास को बुलवा भेजा। महर्षि वेदव्यास जी को जब अपनी माता सत्यवती की आमंत्रण की सूचना मिली तो वह तुरंत ही अपनी माता सत्यवती के सामने उपस्थित हो गए। और माता से बुलावा भेजने का कारण पूछा। तब सत्यवती ने वेदव्यास से कौरव वंश को आगे बढ़ाने का उपाय पूछा। महर्षि वेदव्यास जी माता सत्यवती की चिंता देखकर उन्होंने अपनी दिव्य शक्तियों से अंबिका और अंबालिका से संतान उत्पन्न की थी। दोस्तों अंबिका ने महर्षि वेदव्यास का तेज देख कर अपनी आंखें बंद कर ली थी। इसी कारण से उनकी अंधी संतान के रूप में धृतराष्ट्र का जन्म हुआ था। और दूसरी रानी अंबालिका महर्षि वेदव्यास से डर गई थी। और उनका शरीर पीला पड़ गया था। तो इस वजह से उनके गर्व से उनके संतान के रूप में पांडु का जन्म हुआ। पांडु अपने जन्म से ही बहुत कमजोर थे। दोनों राजकुमारियों के बाद एक दासी पर भी महर्षि वेदव्यास जी ने अपनी शक्तियों का प्रयोग कर एक पुत्र को जन्म दिया था। उस के संतान के रूप में महात्मा विदुर का जन्म हुआ था।

धृतराष्ट्र को कौन और क्यों अंधे होने का श्राप दिया था?
दोस्तों महाभारत की कथानुसार धृतराष्ट्र अपने पिछले जन्म में एक बहुत ही दुष्ट राजा हुए थे। एक दिन वह वन में विचरण कर रहे थे।तब उन्होंने देखा कि एक नदी में हंस अपने बच्चों के साथ पानी में विचरण कर रहा था। उसी समय उन्होंने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि हंस की आंख फोड़ दी जाए,और और उसके बच्चों को मार दिया जाए। उसी समय हंस ने उन्हें यह श्राप दिया कि अगले जन्म में तुम अंधा पैदा होंगे। और तुम्हारे पुत्र मृत्यु को प्राप्त करेंगे। इसी कारण महाराज धृतराष्ट्र अगले जन्म में अंधा पैदा हुए थे। और उनके सभी पुत्र उसी तरह महाभारत के युद्ध में मृत्यु को प्राप्त हो गए जैसे उस हंस के बच्चे को मृत्यु मिली थी।

कौरव वंश में धृतराष्ट्र से पहले कौन राजा थे?
बचपन में धृतराष्ट्र पांडु और विदुर के पालन पोषण का भार पितामह भीष्म पर था। जब यह तीनों बड़े हुए तो इन तीनों को विद्या अर्जित करने के लिए पितामह भीष्म ने इन्हें गुरुकुल भेज दिया। गुरुकुल में विद्या अर्जित करते हुए। धृतराष्ट्र बल विद्या में श्रेष्ठ हुए, पांडु धनुर्विद्या में श्रेष्ठ हुए, और विदुर धर्म और नीति में पारंगत हो गए। जब धृतराष्ट्र पांडु और विदुर बड़े हुए तो कौरव वंश का राजा पांडु को बनाया गया। क्योंकि धृतराष्ट्र जन्म से ही अंधे थे। और विधुर एक दासी के पुत्र थे। इसलिए उन्हें राजा नहीं बनाया जा सकता था। एक युद्ध में राजा पांडु के मौत के बाद धृतराष्ट्र को कौरव-वंश का राजा बनाया गया। धृतराष्ट्र कभी भी यह नहीं चाहते थे,कि उनके बाद कौरव वंश का राज्य सिहासन युधिष्ठिर को मिले। अर्थात युधिष्ठिर को राजा बनाया जाए। महाराज धृतराष्ट्र हमेशा से अपने पुत्र दुर्योधन को अपने बाद राजा बनाना चाहते थे। इसी कारण से वह लगातार पांडव पुत्रों की उपेक्षा करते रहते थे।

धृतराष्ट्र का विवाह
पितामह भीष्म ने धृतराष्ट्र का विवाह गांधार की राजकुमारी गांधारी से कराया था। विवाह से पहले गांधारी को यह मालूम नहीं था कि उनके होने वाले पति धृतराष्ट्र जन्म से ही अंधे हैं। विवाह के बाद जब गांधारी को धृतराष्ट्र की अंधेपन के बारे में पता चला,तो गांधारी ने भी अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली। इस तरह दोनों पति पत्नी अंधे के समान हो गए थे। बहुत समय हो जाने के बाद भी धृतराष्ट्र और गांधारी की कोई संतान नहीं हुई तब महर्षि वेदव्यास जी की तपोबल के कारण धृतराष्ट्र और गांधारी के सौ पुत्र और एक पुत्री हुई थी। धृतराष्ट्र और गांधारी के सभी पुत्रों में से दुर्योधन सबसे बड़ा और अपने माता-पिता का सबसे प्रिय पुत्र था। धृतराष्ट्र अपने पुत्र मोह के कारण ही दुर्योधन के कुछ गलत करने पर भी उसके कार्यों पर मौन रहे। दुर्योधन की गलत इच्छाओं को पूरा करने में भी उन्होंने सहायता की। वह उस पर कुछ नहीं बोले महाराज धृतराष्ट्र का यही पुत्र मोह आगे चलकर पूरे कौरव वंश के नाश का कारण बना।

धृतराष्ट्र ने क्यों मरवाया था गांधारी के परिवार को?
दोस्तों जैसा कि आप जानते हैं कि धृतराष्ट्र का विवाह गंधार देश की राजकुमारी गांधारी के साथ हुआ था। गांधारी जन्म से ही एक कुंडली दोष लेकर पैदा हुई थी। इसी कारण एक साधु के बताए अनुसार गांधारी का यह कुंडली दोष दूर करने के लिए उनका विवाह पहले एक बकरे के साथ किया गया था। और विवाह के बाद उस बकरे की बलि दे दी गई थी। और ये बात धृतराष्ट्र और गांधारी के विवाह के समय छुपाई गई थी। जब धृतराष्ट्र को गांधारी की इस बात का पता चला तो महाराज धृतराष्ट्र को अपने ससुर अर्थात गंधार नरेश सुवाला और उनके सौ पुत्रों पर बहुत ज्यादा गुस्सा आया। और उन्होंने गांधार नरेश सुबाला और उसके सौ पुत्रों को कारावास में डालकर बहुत यातनाएं देने की आदेश दे दी।

कारावास मैं कष्ट सहते हुए गांधार नरेश सुवाला और उनके सौ पुत्रों की एक-एक करके मृत्यु होने लगी। उन्हें कारावास में खाने के लिए सिर्फ एक मुट्ठी चावल दिए जाते थे। सुबाला ने महाराज धृतराष्ट्र से इसका प्रतिशोध लेने के लिए अपने छोटे बेटे शकुनि को इसके लिए तैयार किया। सुवाला और उसके अन्य बेटे अपने हिस्से का चावल शकुनी को दे देते थे। ताकि वह जिंदा रहे और आगे चलकर कौरव वंश का नाश कर सके। मृत्यु के पहले गांधार नरेश सुबाला ने महाराज धृतराष्ट्र से अपने छोटे बेटे शकुनि को छोड़ने की विनम्र निवेदन किया। सुबाला की अंतिम निवेदन धृतराष्ट्र ने स्वीकार कर लिया। और शकुनि को कारावास से मुक्त कर दिया। सुवाला ने अपने पुत्र शकुनि को अपनी रीड की हड्डी के पासे बनाने के लिए कहा था। वही पासे आगे चलकर कौरव वंश के नाश का कारण बने।

सबसे पहले शकुनि ने हस्तिनापुर में रहकर सबका विश्वास जीता। वह महाराज धृतराष्ट्र और उनके सौ पुत्रों का विश्वास पात्र बन गया। शकुनि ने ना केवल अपने भांजे दुर्योधन को युधिष्ठिर के खिलाफ भड़काया बल्कि महाभारत के युद्ध की नीव और आधार भी बनाया।

धृतराष्ट्र चले गए बन में
दोस्तों महाभारत के युद्ध के बाद धृतराष्ट्र और गांधारी पांडवों के साथ एक ही महल में बहुत समय तक रहने लगे थे। लेकिन भीम अक्सर महाराज धृतराष्ट्र से ऐसी बातें करते थे,जो उन्हें पसंद नहीं थी। भीम के ऐसे व्यवहार से धृतराष्ट्र चिंतित रहने लगे। धीरे धीरे उन्होंने भोजन करना कम कर दिया। इस तरह धृतराष्ट्र पांडवों के साथ रहते-रहते 15 बरस बीत गए। एक दिन धृतराष्ट्र के मन में वैराग्य का भाव जाग गया। और वह अपनी पत्नी गांधारी सहित कुछ और लोगों के साथ वन में तपस्या करने चले गए।

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