पुण्य फलिभूत हुआ – अमरनाथ श्रीवास्तव
पुण्य फलिभूत हुआ कल्प है नया सोने की जीभ मिली स्वाद तो गया छाया के आदी हैं गमलों के पौधे...
पुण्य फलिभूत हुआ कल्प है नया सोने की जीभ मिली स्वाद तो गया छाया के आदी हैं गमलों के पौधे...
चाहता हूं‚ कुछ लिखूँ‚ पर कुछ निकलता ही नहीं है दोस्त‚ भीतर आपके काई विकलता ही नहीं है। आप बैठे...
उँगलियाँ थाम के खुद चलना सिखाया था जिसे राह में छोड़ गया राह पे लाया था जिसे। उसने पोंछे ही...
साँस चलती है तुझे चलना पड़ेगा ही मुसाफिर! चल रहा है तारकों का दल गगन में गीत गाता, चल रहा...
एक चाय की चुस्की, एक कहकहा अपना तो इतना सामान ही रहा चुभन और दंशन पैने यथार्थ के पग–पग पर...
ब्याह की यह शाम‚ आधी रात को भाँवर पड़ेंगी। आज तो रो लो तनिक‚ सखि। गूँजती हैं ढोलके– औ’ तेज...
बार–बार चिल्लाया सूरज का नाम जाली में बांध गई केसरिया शाम दर्द फूटना चाहा अनचाहे छंद मिले दरवाज़े बंद मिले।...
आज मैं भी नहीं अकेला हूं शाम है‚ दर्द है‚ उदासी है। एक खामोश सांझ–तारा है दूर छूटा हुआ किनारा...
चिर सजग आँखें उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना! जाग तुझको दूर जाना! अचल हिमगिरि के हॄदय में आज चाहे कम्प...
जब-जब सिर उठाया अपनी चौखट से टकराया। मस्तक पर लगी चोट, मन में उठी कचोट, अपनी ही भूल पर मैं,...
जीवन के रेतीले तट पर‚ मैं आँधी तूफा.न लिये हूँ। अंतर में गुमनाम पीर है गहरे तम से भी है...
जीवन कभी सूना न हो कुछ मैं कहूं‚ कुछ तुम कहो। तुमने मुझे अपना लिया यह तो बड़ा अच्छा किया...