Sahitya

प्राण तुम्हारी पदरज फूली – सच्‍चिदानन्‍द हीरानन्‍द वात्‍स्‍यायन ‘अज्ञेय’

प्राण तुम्हारी पदरज फूली मुझको कंचन हुई तुम्हारे चंचल चरणों की यह धूली! आईं थीं तो जाना भी था– फिर...