क्या वह नहीं होगा – कुंवर नारायण
क्या फिर वही होगा जिसका हमें डर है? क्या वह नहीं होगा जिसकी हमें आशा थी? क्या हम उसी तरह...
क्या फिर वही होगा जिसका हमें डर है? क्या वह नहीं होगा जिसकी हमें आशा थी? क्या हम उसी तरह...
तुमुल कोलाहल कलह में, मैं हृदय की बात रे मन। विकल हो कर नित्य चंचल खोजती जब नींद के पल...
मत कहो आकाश में कोहरा घना है, यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है। सूर्य हमने भी नहीं देखा सुबह से,...
गांव में मैैं गीत के आया‚ मुझे ऐसा लगा‚ मेरा खरापन शेष है। वृक्ष था मैं एक‚ पतझड़ में रहा...
निर्मम कुम्हार की थापी से कितने रूपों में कुटी-पिटी, हर बार बिखेरी गई, किंतु मिट्टी फिर भी तो नहीं मिटी।...
आया प्रभात चंदा जग से कर चुका बात गिन गिन जिनको थी कटी किसी की दीर्घ रात अनगिन किरणों की...
प्राण तुम्हारी पदरज फूली मुझको कंचन हुई तुम्हारे चंचल चरणों की यह धूली! आईं थीं तो जाना भी था– फिर...
सच हम नहीं सच तुम नहीं, सच है सतत संघर्ष ही। संघर्ष से हट कर जिये तो क्या जिये हम...
सूरज डूब चुका है‚ मेरा मन दुनिया से ऊब चुका है। सुबह उषा किरणों ने मुझको यों दुलराया‚ जैसे मेरा...
जानी अनजानी‚ तुम जानो या मैं जानूँ। यह रात अधूरेपन की‚ बिखरे ख्वाबों की सुनसान खंडहरों की‚ टूटी मेहराबों की...
तुम कभी थे सूर्य लेकिन अब दियों तक आ गये‚ थे कभी मुखपृष्ठ पर अब हाशियों तक आ गये। यवनिका...
कैसी है तुम्हारी हंसी? ऊंचाई से गिरती जलधारा सी? कल कल छल छल करती मैं चकित सी देखती रह गई...